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दीपावली को लेकर कुम्हारों के चाक ने पकड़ी रफ्तार, मुनाफे की जगी आस

इस वर्ष कोरोना संक्रमण के स्तर में आई कमी के बाद एक बार फिर से मिट्टी के दीयों से बाजार के गुलजार होने की उम्मीद है. ऐसे में कुम्हार एक बार फिर से नई उम्मीदों के साथ दीये बनाने के कार्य में जुट गए हैं. पढ़ें पूरी खबर..

Potters engaged in making earthen lamps on Diwali in Saran
Potters engaged in making earthen lamps on Diwali in Saran

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Published : Nov 2, 2021, 9:16 AM IST

सारण:दीपावली (Diwali) को रोशनी और दीयों का त्यौहार कहा जाता है. इस दिन हर तरफ दीये, कैंडल और रंग बिरंगी लाइटों की जगमगाहट देखने को मिलती है. अमीर हो या गरीब कार्तिक मास के अमावस की रात में सबों का घर दीयों से रौशन होता है. ऐसे में घर को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीयों की भारी मांग है. वहीं, कुम्हार एक बार फिर से नई उम्मीदों के साथ मिट्टी के दीये (Earthen Lamps) और बर्तन बनाने में जुट गए हैं.

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दीपावली प्रकाश का पर्व है. इस पावन पर्व पर प्राचीन काल से ही दीप जलाने का कार्य किया जा रहा है. दीपावली में लोग देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाते हैं. लेकिन उसे बनाने वाले कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. इसके बावजूद उन्होंने हालात बेहतर होने की आस लिये चाक की रफ्तार बढ़ा दी है.

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सारण में कुछ कुम्हारों के परिवार मिट्टी के दीए बनाने के कार्य में जुटे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में कुछ पुरानी पीढ़ी के लोग इस परंपरागत रोजगार को बचाए हुए हैं. मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है उनकी माली हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. उनका कहना है कि अब इस कार्य में आने से उनके घर के युवाओं को असहजता महसूस होती है. क्योंकि मिट्टी के काम में ज्यादा मुनाफा नहीं है.

गणेश पंडित का कहना है कि मिट्टी, जलावन सब महंगा हो गया है. बिक्री भी कम होती जा रही है. लोग सिर्फ सगुन के तौर पर मिट्टी के सामान खरीदते हैं. सरसों के तेल का दम बढ़ने के कारण लोग मिट्टी के दीये नहीं खरीद रहे है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का दाम हजार रुपेय हो गया है. जिससे मजदूरी का दाम मिलना भी मुश्किल हो गया है. अगर यही हाल रहा तो जल्द ही ये कारोबार बंद करना पड़ेगा.

प्रजापति समाज का कहना है कि मिट्टी के मूल्य से लेकर लकड़ी, कोयले और रंग आदि के मूल्य में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इन सामानों की लागत खर्च में भी वृद्धि हो रही है. निर्माण कार्य में अधिक खर्च करना पड़ता है. वे लोग अपने पुश्तैनी रोजगार को संजोने के लिए मिट्टी की कला को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. अगर सरकार इस कला को संरक्षण प्रदान करते हुए अनुदान प्रदान करे तो यह कला पुनर्जीवित हो सकती है. अगर इससे संरक्षित नहीं किया तो आने वाले समय में मिट्टी का कला विलुप्त हो जाएगी.

हालांकि, इस वर्ष संक्रमण के स्तर में आई कमी के बाद एक बार फिर से मिट्टी के दीयों के बाजार के गुलजार होने की उम्मीद है. इसी आस में वह अपने परंपरागत कार्य में जुटे हुए है. वहीं इन मिट्टी के दीए को खरीदने आने वाले लोग कहते है कि चाइनीज बाजार के कारण धीरे-धीरे लोगों में मिट्टी के दीया सुरुचि घटती जा रही है. लोगों को चाहिए कि वह अपने त्योहारों को परंपरागत ढंग से मनाए और ऐसे में लोगों को भी बढ़-चढ़कर मिट्टी के दीयों की खरीद दीपावली के मौके पर करनी चाहिए. जिससे मिट्टी के कार्य में जुटे इन कुम्हारों के जीवन में खुशहाली आए.

गौरतलब है कि, दीपावली आगामी 4 नवंबर को मनाई जाएगी. इस मौके पर लोग अपने घर और आंगन को सजाने की तैयारी में जुटे हुए हैं. वहीं, इस रोजगार से जुड़े हुए कुछ कुम्हार भी बताते हैं कि लोगों का अब चाइनीस लाइटों से मोहभंग हुआ है और धीरे-धीरे अब लोग मिट्टी के दीए की खरीद कर रहे हैं. आने वाले वक्त में बाजार और गुलजार होने की उम्मीद है.

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