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सारण के रण में कौन मारेगा बाजी! रूडी दोहरायेंगे जीत या चंद्रिका बचा पाएंगे लालू की इज्जत - मुख्यमंत्री कृष्ण सिन्हा

बीते दो दशक से यहां BJP और RJD के बीच कांटे का मुकाबला होता आ रहा है.दिग्गजों का अखाड़ा होने के कारण इस सीट पर सबकी नजर रहती है.

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Published : May 3, 2019, 4:53 PM IST

सारण: सारण लोकसभा जो पहले छपरा के नाम से जाना जाता था. राजनीतिक रूप से यहां की जमीन काफी उर्वरक रही है. बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्ण सिन्हा यहीं से चुनकर लोकसभा पहुंचे थे. ये धरती जय प्रकाश नारायण की है, जिन्होंने देश में संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका था. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू की ये कर्मभूमि है. ये धरती लोकप्रिय क्रांतिकारी भोजपुरी गायक भिखारी ठाकुर के नाम से भी जानी जाती है. यहीं पर गंगा और गंडक का संगम है. ये परिवर्तन की धरती सारण है.

बीते दो दशक से यहां BJP और RJD के बीच कांटे का मुकाबला होता आ रहा है. RJD से जहां लालू यादव चुनाव लड़ते रहे हैं. वहीं BJP से राजीव प्रताप रूडी सारण के रण में उतरते रहे हैं. दिग्गजों का अखाड़ा होने के कारण इस सीट पर सबकी नजर रहती है. लालू परिवार की पारंपरिक सीट रही सारण सीट से इस रूडी के सामने छपरा के परसा से विधायक और तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय मुख्य प्रतिद्वंदि हैं. हालांकि ये सीट चंद्रिका राय को दिये जाने पर तेज प्रताप यादव ने नाराजगी भी जताई थी.

2002 में गठित भारतीय परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सारण संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का गठन हुआ. नये परिसीमन के आधार पर सारण में 2009 में चुनाव हुए. पहले यह छपरा लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. छह मुख्यमंत्री देने वाला जिला सारण 1967 के दशक में कांग्रेसियों का गढ हुआ करता था. इस गढ़ को लालू ने 1977 की जेपी लहर में ध्वस्त किया तो राजद सुप्रीमो के किले को 1996 में पहली बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री रूडी ने तोड़ डाला. लालू प्रसाद यहां से चार बार सांसद बने. इस दौरान उन्होंने दो बार राजीव प्रताप रूडी को हराया.1989, 2004 और 2009 में लालू यादव इस इलाके से लोकसभा पहुंचे. तो वर्तमान सांसद राजीव प्रताप रूडी 1996,1999 और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते.

2014 चुनाव का जनादेश
2014 में सारण सीट से बीजेपी के उम्मीदवार राजीव प्रताप रुडी जीते थे. रुडी ने लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी को हराया. चारा घोटाले में सजा होने के बाद लालू यादव की सदस्यता छिन गई, जिसके बाद राबड़ी देवी सारण से चुनाव मैदान में उतरी थीं लेकिन मोदी लहर में जीत बीजेपी के हाथ लगी. राजीव प्रताप रुडी को 3 लाख 55 हजार 120 वोट मिले थे. जबकि राबड़ी देवी को 3 लाख 14 हजार 172 वोट मिले. वहीं जेडीयू के सलीम परवेज 1 लाख 07 हजार 008 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.

हर चुनाव में यदुवंशी और रघुवंशी होते हैं आमने-सामने
यहां हर चुनाव में यदुवंशी और रघुवंशी ही आमने-सामने होते हैं। कोई तीसरे वर्ग का व्यक्ति भले ही लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दे लेकिन सांसद बनने का गौरव अब तक इन्हीं दोनों में से किसी एक को हासिल होता रहा है. सारण लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 25 प्रतिशत यादव जाति के वोटर हैं. इससे बाद राजपूत 23 फीसदी, वैश्य 20 फीसदी, मुस्लिम 13 प्रतिशत, दलित 12 प्रतिशत और अन्य 7 प्रतिशत हैं. आरजेडी की नजर 'MY' समीकरण पर होती है. तो वहीं BJP को राजपूत और वैश्य वोटों का भरोसा होता है. इस क्षेत्र का जातीय समीकरण ऐसा है कि यहा मुकाबला राजपूत बनाम यादव का होता रहा है.

मतादाताओं की संख्या
सारण लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 15 लाख 38 हजार 744, पुरुष मतदाता 8 लाख 33 हजार 361 हैं, जबकि महिला मतदाता 7 लाख 5 हजार 383 हैं वहीं, थर्ड जेंडर के मतदाताओं की संख्या 27 है.

छह विधानसभाओं को समेटे हुए है सारण
सारण जिले में यूं तो 10 विधानसभा क्षेत्र हैं लेकिन यहां के चार विधान सभा इलाके के वोटर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनने में भागीदारी निभाते हैं। ऐसे में सारण लोकसभा क्षेत्र छह विधानसभा क्षेत्रों को ही समेटे हुए है। इन छह विधान सभा क्षेत्रों का भौगोलिक रूप से राजनीतिक परिदृश्य यह है कि परसा, सोनपुर, गड़खा और मढौरा में राजद का कब्जा है जबकि अमनौर और छपरा सदर की सीट भाजपा के कब्जे में है।

केंद्र की राजनीति में सारण की दखल
सारण इलाके से जीते लालू प्रसाद यादव केन्द्र में कद्दावर मंत्री रहे. तो वहीं BJP के राजीव प्रताप रूडी को केन्द्र सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिली. सारण का सौभाग्य है कि बीते दो दशक से इस क्षेत्र के किसी ना किसी सांसद को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली. बड़े और दिग्गज नेताओं के प्रतिनिधित्व के कारण इस इलाके का जितना विकास होना चाहिए था उतना नहीं हुआ. छपरा नगर निगम का गठन तो हो गया लेकिन सुविधाएं कहीं नज़र नहीं आती. शहर में जाम की समस्या आम है. बरसात में ज्यादातर इलाकों में पानी भर जाता है. युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए नये उद्योग-धंधे नहीं लगे.

वर्तमान सांसद: राजीव प्रताप रूडी
ए-320 विमान के कप्तान और लड़ाकू विमान उड़ाने में अनुभवी राजीव प्रताप रूडी ने छात्र राजनीति से निकलकर 1985 में सारण की सियासत में कदम रखा. 1990 में महज 26 साल की उम्र में विधायक बने. 1996 में पहली बार छपरा संसदीय सीट से बीजेपी के सांसद निर्वाचित हुये. वाजपेयी और नरेंद्र मोदी सरकार में स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री भी रहे. हालांकि 2017 में कैबिनेट मंत्री से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. वर्तमान में वे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सांसद राजीव प्रताप रूडी के रिपोर्ट कार्ड पर नज़र डालें तो 5 साल के दौरान उन्हें क्षेत्र के विकास के लिए 38 करोड़ रुपये मिले. जिससे 280 योजनाओं की स्वीकृति मिली. स्वीकृत 280 योजनाओं में से 104 का काम पूरा हो चुका है. 176 पर काम अभी जारी है.

सारण के रण में कौन मारेगा बाजी

राजीव प्रताप रूडी को मोदी कैबिनेट में कौशल विकास राज्यमंत्री बनाया गया था. मंत्री रहते हुए सांसद ने अपने क्षेत्र के युवाओं को तकनीकी जानकारी दिलाने की कोशिश की. छपरा में कौशल विकास केन्द्र और मोटर व्हीकल ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की.

छपरा में पासपोर्ट कार्यालय खुलवाया. नमामि गंगे योजना के तहत 275 करोड़ रुपये की स्वीकृति दिलाई. बिहार के पहले और देश के सबसे लंबे डबल डेकर फ्लाईओवर का निर्माण छपरा में हो रहा है. सांसद निधि से एम्बुलेंस की व्यवस्था कराई. इसके अलावा भी सांसद क्षेत्र में विकास के कई और दावे कर रहे हैं.

चंद्रिका राय: राजद प्रत्याशी
वहीं अगर बात करें सारण से महागठबंधन के प्रत्याशी चंद्रिका राय की तो उनका नाम भी काफी चर्चित रहा है. वे बिहार के 10वें मुख्यमंत्री दरोगा राय के बेटे हैं और लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के ससुर भी हैं. दरोगा राय कांग्रेसी थे. लेकिन 90 के दशक में जब देश में जनता दल परिवार राजनीति में प्रभावी होने लगा और बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजनीति का उदय हुआ तो दरोगा राय के बेटे चंद्रिका राय ने भी लालू का दामन थाम लिया.

चंद्रिका राय ने 1978 में पटना यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में स्नातक किया और 1981 में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट की डि्ग्री हासिल की. सारण के परसा से राजद विधायक और बिहार सरकार में पूर्व परिवहन मंत्री चंद्रिका राय राजद के कद्दावर नेता हैं. दरअसल, तेजप्रताप नहीं चाहते थे कि इनके ससुर चंद्रिका राय को आरजेडी का टिकट मिले. उन्हें सारण से टिकट मिलने के बाद ऐसी बात भी सामने आई थी कि तेजप्रताप अपने ससुर के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं.

बहरहाल, रूडी हों या चंद्रिका राय दोनों अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. दोनों एक-दूसरे की कमियों को उजागर कर जनता के सामने पेश कर रहे हैं और अपनी आप को बेहतर प्रत्याशी साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. दोनों में से किसका पलड़ा ज्यादा भारी है ये तो आने वाले 23 मई को पता चला ही जायेगा.

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