छपरा: कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में किए गए 21 दिन के लॉक डाउन के बीच विभिन्न राज्यों और शहरों से अपने गांव लौटने वालों से इस वक्त बहुत ही धीरज के साथ पेश आने की जरूरत है. इतना बड़ा फैसला लेकर वह गांव इसलिए लौटे हैं कि वहां उनका दुख-दर्द बेहतर तरीके से समझने वाले अपने लोग हैं. ऐसे में सभी की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि उनके हौसले को बढ़ाने में मदद करें. ताकि कोई भी अपने आप को अकेला न समझे. इस दौरान अस्थायी स्क्रीनिंग शिविरों/आश्रय स्थलों (क्वांरेनटाइन) में 14 दिनों के लिए रखे गए लोगों को भी समझाएं कि यह उनके अपने और अपनों की भलाई के लिए किया गया है. ताकि देश कोरोना वायरस को हराने में सफल हो सके.
प्रवासी कामगारों के दर्द को समझें, सहयोग से बढ़ाएं उनका मनोबल
भारी संख्या में मजदूर बाहर से अपने घर पहुंच रहे हैं. ऐसी स्थिति में सरकार को उनकी सहायता करनी चाहिए. साथ ही उनके दुख-दर्द को समझना चाहिए.
बाहर से घर लौट रहे मजदूर
कोरोना संक्रमण के भय से राज्य से बाहर काम करने वाले प्रवासी भारी संख्या में घरों को लौटे रहे हैं. उनके मन में भी संक्रमण को लेकर भय है. सरकार ने बाहर से लौटे लोगों को 14 दिनों की होम क्वारंटाइन में रहने के निर्देश जारी की है. ऐसे में प्रवासियों से सामाजिक दूरी बनाने की भी बात कही जा रही है. लेकिन यह सिर्फ सामाजिक दूरी बनाने की बात है. इसकी जगह प्रवासियों से मानसिक दूरी न बनाएं. उनके दर्द को समझें, क्योंकि विपरीत हालातों में वे अपने काम-काज को छोड़कर घर लौटे हैं. उन्हें मानसिक मनोबल की जरुरत है. इसलिए आस-पास के लोगों को भी इस बात को समझने की जरूरत है. उनके प्रति सहानुभूति रखने की आवश्यकता है.
पीएम ने भी की अपील
प्रधानमंत्री से लेकर स्वास्थ्य विभाग और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा लगातार यह अपील की जा रही है कि इस मुसीबत की घड़ी में किसी के भी मन में एक पल के लिए यह भाव न आने पाए कि वह अकेला है. इस वक्त उसके साथ पूरा देश खड़ा है. कोरोना वायरस के चलते जो स्थिति पैदा हुई है, वह स्थाई रूप से रहने वाली नहीं है. कुछ ही दिनों में यह मुश्किल वक्त खत्म हो जाएगा और फिर से जिन्दगी चल पड़ेगी. ऐसे लोगों के सामने किसी भी तरह की दया दिखाने के बजाय जीत के भाव से पेश आएं. ऐसे वक्त में आगे के रोजी-रोजगार की चिंता उनको हर पल सता रही होगी. ऐसे में वह कोई गलत कदम उठाने को न मजबूर हों. इस बारे में भी सभी को सोचना चाहिए. उनको इस मनोदशा से उबारने के लिए ही सरकार उनकी काउंसिलिंग के लिए मनोचिकित्सकों की भी मदद ले रही है.