सारणः देश आज आजादी का जश्न मना रहा है. लालकिला पर पीएम मोदी पर तिरंगा फहराया. देश भर में जश्न देखा जा रहा है. इसी बीच हम उन महापुरुषों को भी याद कर रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी शासन से हमें आजादी दिलाई थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरण जहां-जहां पड़े. उनकी स्मृति को संजोकर रखा गया है. आइये हम बात करते हैं सारण की.
1918 में गांधीजी छपरा आए थे और उनकी स्मृति में दिघवारा में गांधी कुटीर बनाया गया था. लेकिन अब यह गांधी कुटिर बदहाली पर आंसू बहा रहा है. उत्तर में गोपालगंज से लेकर सोनपुर तक 95 मील लंबा और सिवान से छपरा दक्षिण गंगा सरयू तट पर 45 मील में आबद्ध संस्कृति को समेटे हुए सारण गौरवपूर्ण इतिहास व असरदार भूगोल के लिए प्राचीन काल से मुस्कुराता हुआ आया है.
1934 में गांधी जी मलखा चक आए थे
सारण के दिघवारा प्रखंड का गांधी कुटीर उदारवाद उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा का संधि स्थल बन गया था. गांधी कुटीर सहित तमाम गांव में खादी आंदोलन को गति प्रदान कर रहे थे. स्वतंत्रता सेनानी बाबूराम विनोद सिंह, डॉ. सत्यनारायण, वीरांगना शारदा व सरस्वती के कुशल प्रबंधन में मलखा चक गांधी कुटीर की खादी की ख्याति कानपुर के कांग्रेस अधिवेशन में प्रदर्शित हुई और राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की. सारण जिले सहित मलखा चक गांव में गांधी के आगमन की चर्चा है. 1934 में गांधी जी मलखा चक आए थे.
गांधी कुटीर का नहीं हो रहा जीर्णोद्धार
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी कुटीर का नाम तो है, मगर अब तक गांधी कुटीर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका. सरदार भगत सिंह भी सारण के मलखा चक में आए थे. बापू के अलावा उग्र राष्ट्रवादी सरदार भगत सिंह जी सारण के मलखा चक में आए और साइमन कमीशन के विरुद्ध लोगों को मुखर किया था. 1950 में गांधी कुटीर बनाया गया. जो ना गांधी कुटीर रहा ना खादी भंडार, अब तो खादी सिर्फ और सिर्फ राजनेताओं की कैद में है. स्वदेशी अपनाओ सिर्फ स्लोगन ही है. सारण में खादी ग्राम उद्योग अब नहीं रहा. घरों में चरखा गांव में करघा अब नहीं है. छपरा का गांधी चौक गांधी की याद है और डॉ. सत्यनारायण के निधन के बाद मलखा चक गांधी कुटीर जिन उद्धार के लिए तड़प रही है,
गांधी कुटीर पर होती रहती है राजनीति
वहीं इस गांधी कुटीर पर हमेशा राजनीति होती रही है. सारण सांसद राजीव प्रताप रूडी भी गांधी कुटीर पहुंचे थे और उन्होंने गांव के लोगों को आश्वासन दिया था कि गांधी कुटीर के लिए सरकार प्रयासरत है और अच्छा होगा. आज कई साल गुजर जाने के बाद भी गांधी कुटीर का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया. वहीं पूर्व जिला उपाध्यक्ष मलखा चक निवासी ब्रज किशोर सिंह इस गांधी कुटीर को लेकर के सरकार के पास कई बार पत्र के माध्यम से अवगत करा चुके हैं. पर सरकार सुनती नहीं. आपको बता दें कि मलखा चक विधानसभा से ऐतिहासिक ग्राम सिद्ध हो चुका है. सरकार ने भी माना है फिर भी सरकार की नजर इस गांधी कुटीर पर नहीं पड़ती है. ब्रज किशोर सिंह हमेशा से गांधी कुटिर के जीर्णोद्धार और गांधी कुटीर को गांधी सर्किट हाउस और पर्यटक के रूप में शामिल करने की मांग को उठाते रहे हैं.
स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को नहीं मिला आरक्षण सर्टिफिकेट
स्वतंत्रता सेनानी रहे रामजी सिंह के पौत्र अमन सिंह ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी के परिवार का आरक्षण सर्टिफिकेट बनाया जाता है. जिसको लेकर के अमन सिंह, सारण जिला अधिकारी के पास लगभग 3 महीने तक दौड़ करके हार मान गए. लेकिन स्वतंत्रता सेनानी आरक्षण सर्टिफिकेट नहीं बनाया गया. आज कल के चक्कर में अमन सिंह ने जिलाधिकारी के पास जाना छोड़ दिया. अमन सिंह ने बताया कि सरकार स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के साथ अनदेखी कर रही है. ताम्रपत्र सिर्फ सरकार का एक दिखावा था. जो आज शोभा की वस्तु बनकर घर में पड़ी है.
स्वतंत्रा सेनानियों का इतिहास इस गांधी कुटीर से जुड़ा
मलखा चक निवासी और पूर्व पंचायत समिति के सदस्य कुणाल सिंह ने बताया कि ग्रामीण अपने अस्तर से गांधी कुटीर को लेकर के हमेशा प्रयास करते रहे हैं, पर सरकार सुनने को तैयार नहीं. सरकार बड़ी-बड़ी बातें करती है, पर जो जिले का इतिहास और मलखा चक के कई स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास इस गांधी कुटीर से जुड़ा है, उसको सरकार नजर अंदाज करने का काम कर रही है और ना ही इसको पर्यटक के रूप में शामिल कर रही है. यह सरकार की नाकामी है. गांधी जयंती पर गांधी कुटीर या स्मृति पर दो फूल चढ़ाकर के जनप्रतिनिधि चले जाते हैं, पर इसके जीर्णोद्धार के बारे में कोई नहीं सोचता है.