सारणःकांग्रेस सरकार ने 2005 में देश की आम जनता को सबसे बड़ा हथियार सूचना का अधिकार दिया था. लेकिन आम आदमी को किसी भी मामले की सूचना देने में संबंधित अधिकारी लेट लतीफी करते रहे हैं. सूचना देने में कोताही करने का ताजा मामला सारण जिले के शिक्षा विभाग से जुड़ा हुआ है. जहां छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति, पोशाक योजना और मध्यान भोजन योजना में हुई गड़बड़ी के बाद शिकायतकर्ता को अब तक पूरी जानकारी आरटीआई विभाग ने नहीं दी.
वीरेन्द्र कुमार सिंह, शिकायतकर्ता छात्रों को मिलने वाली राशि में गड़बड़ी
दरअसल प्राथमिक विद्यालय, पुछरी मठियां के प्रभारी प्राचार्य राजीव कुमार पाण्डेय पर आरोप है कि विद्यालय में व्यापक पैमाने पर छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति, पोशाक योजना, मध्यान भोजन योजना में वितीय वर्ष 2013 से लेकर 2017 तक छात्रों की उपस्थिति मनमाने तरीके से करवा कर राशि का उठाव कर लिया गया. बाद में बनियापुर थाना क्षेत्र के भटकेशरी गांव निवासी वीरेन्द्र कुमार सिंह ने आरटीआई के तहत शिक्षा विभाग और प्रभारी प्राचार्य से इसकी जानकारी मांगी.
राजीव कुमार पाण्डेय, प्रभारी प्रधानाध्यापक शिक्षा विभाग ने दी आधी अधूरी सूचना
इससे संबंधित सूचना 27 जून 2018 को मांगी गई थी. जिसके एवज में जूलाई 2018 को 2 रुपये प्रति छायाप्रति के दर से 1446 रुपये का मनीऑर्डर के साथ 73 रुपये डाक खर्च सहित कुल 1519 रुपये शिकायतकर्ता के जरिए भेजा गया. लेकिन संबंधित जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को ताक पर रखते हुए एक साल के बाद 24 जुलाई 2019 को आधी अधूरी सूचना शिक्षा विभाग के जरिए उपलब्ध कराई गई है. जो कि नियमानुकूल सही नहीं है.
शिकायतकर्ता से बात करते हुए पत्रकार आग बबूला हुए प्रभारी प्रधानाध्यापक
वहीं, इस संबंध में प्राथमिक विद्यालय पुछरी मठिया के प्रभारी प्रधानाध्यापक राजीव कुमार पाण्डेय ने कहा कि ऐसी कोई भी जानकारी हमने नहीं छुपाई है. साथ ही किसी तरह फर्जीवारा उक्त विद्यालय में नहीं हुआ है. संबंधित सूचना उपलब्ध कराने के लिए शिकायतकर्ता से 1446 रुपये लेने के बावजूद साक्ष्य को छुपाते हुए आधी अधूरी सूचना उपलब्ध कराने की बात पुछे जाने पर उनकी बोलती बंद हो गई और आग बबूला हो गए.
राज्य सूचना आयोग में की गई शिकायत
बता दें कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत यह अधिकार मिला था कि किसी भी तरह की कोई जानकारी अगर कोई व्यक्ति या विभाग मांगता है तो, समय रहते उन्हें सूचना उपलब्ध करानी है. लेकिन संबंधित विभाग के अधिकारी प्रथम या द्वितीय अपील तक कोई जानकारी नहीं देते हैं. जबकि तृतीय अपील के रूप में शिकायतकर्ता राज्य सूचना आयोग पहुंचता है. तब सूचना उपलब्ध कराई जाती है, क्योंकि राज्य सूचना आयोग को सूचना नहीं मिलने की स्थिति में 25000 रुपये आर्थिक दंड के रूप में देना पड़ता है. इसी डर से संबंधित जानकारी राज्य सूचना आयोग को उपलब्ध करायी जाती है.