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अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर समारोह का आयोजन, वक्ताओं ने जताई 'एक और क्रांति' की जरूरत

प्रोफेसर ने कहा कि 9 अगस्त 1942 को करो या मरो का नारा दिया गया था. इसीलिए हमलोग 9 अगस्त को ही क्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं. आज फिर एक और क्रांति की जरूरत है. जो पर्यावरण से जुड़ी हुई है, क्योंकि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी हमलोग भी सुरक्षित रहेंगे.

77वें अगस्त क्रांति  दिवस का आयोजन

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Published : Aug 10, 2019, 3:29 PM IST

सारण: जिले के जयप्रकाश विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल के सभागार में 77वें अगस्त क्रांति दिवस का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जयकांत सिंह जय मौजूद थे.

77वें अगस्त क्रांति दिवस कार्यक्रम

अंग्रेजों से लड़ने के लिए करो या मरो का नारा
प्रो. जयकांत सिंह जय ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों से कहा था कि आप मुझे लड़ाई में सहयोग करें. उसके बाद भारत को आजाद कर देंगे. लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद वो अपने वायदे से मुकर गए. जिसको लेकर अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए करो या मरो का नारा दिया था. वहीं वीरकुंवर सिंह विश्वविद्यालय भोजपुर के विभागाध्यक्ष प्रो दिवाकर पाण्डेय ने कहा कि क्रांति की शुरूआत तो बहुत पहले ही हो गई थी. लेकिन 9 अगस्त 1942 को करो या मरो का नारा दिया गया था. इसीलिए हमलोग 9 अगस्त को ही क्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं.

प्रो. जयकांत सिंह जय

एक और क्रांति की जरूरत- दीप्ति सहाय
जेपीयू की प्राध्यापिका प्रो दीप्ति सहाय ने कहा कि आंदोलन को पुर्नजीवित करने के लिए अगस्त क्रांति की शुरुआत की गई थी. आज फिर एक और क्रांति की जरूरत है. जो पर्यावरण से जुड़ी हुई है क्योंकि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी हमलोग भी सुरक्षित रहेंगे. लेकिन यह पर्यावरण क्रांति कोई नेता या अधिकारी नहीं बल्कि आम जनता करे.

77वें अगस्त क्रांति दिवस का आयोजन

'आज भी बंधे हैं गुलामी की जंजीरों से'
प्रो. केजे वर्मा ने कहा कि अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई. लेकिन आज भी हम गुलामी की जंजीरों से बंधे हुए हैं, क्योंकि आज भी कोई शासक कहीं जाता है तो यातायात को बाधित कर दिया जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में सारण, चंपारण और भोजपुर के स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका महत्वपूर्ण थी.

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