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आज कौमी एकता के जननायक मौलाना मजहरूल हक की 154वीं जयंती, बिहार में होगा राजकीय समारोह - आज का इतिहास

बिहार विधान परिषद के पूर्व उपसभापति ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान कहा कि मौलाना साहब के बलिदान और त्याग को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर हिन्दू-मुस्लिम एकता को एक नई ताकत दी थी.

मौलाना मजहरुल हक की 154 वीं जयंती
मौलाना मजहरुल हक की 154 वीं जयंती

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Published : Dec 22, 2019, 4:51 AM IST

सारण: देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले देशभूषण के नाम से प्रसिद्ध मौलाना मौलाना मजहरूल हक की 154वीं जयंती पर पूरा देश उनको नमन कर याद कर रहा है. इस मौके पर प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार का भी आगमन होना है. जिसको लेकर जिला प्रशासन काफी सजग और तैयारियों में जोर-शोर से लगा हुआ है.

मौलाना मजहरूल हक ट्रस्ट के अध्यक्ष सलीम परवेज बताते है कि मौलाना साहब की जयंती समारोह प्रमंडलीय मुख्यालय छपरा शहर स्थित मौलाना मजहरूल हक चौक के समीप निर्मित प्रतिमा पर माल्यार्पण शुरू किया जाएगा. मुख्यमंत्री का भी आगमन होना है. जिसको लेकर विशेष तैयारियां की जारी है. हक साहब की जयंती राजकीय सम्मान समारोह के रूप में मनाये जाने की परंपरा है. हर साल मुशायरे का आयोजन किया जाता था, लेकिन इस बार कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है.

मौलाना मजहरूल हक की 154 वीं जयंती

मौलाना साहब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
महात्मा गांधी के सहयोगी और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान होमरूल आंदोलन और असहयोग आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में भाग लेने वाले नेता का जन्म 22 दिसंबर 1866 को राजधानी के ब्रह्मपुर में हुआ था. लेकिन उनकी कर्मभूमि छपरा रही है. साल 1898 में बंगाल में मुंसिफ की नौकरी छोड़ कर उन्होंने छपरा व्यवहार न्यायालय में अपनी वकालत करते हुए नगर पालिका के प्रथम उपाध्यक्ष और जिला परिषद छपरा के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया था. उनका जिले से काफी गहरा नाता और लगाव था.

मौलाना मजहरूल हक की प्रतिमा

'देखा था अखंड भारत का सपना'
बिहार विधान परिषद के पूर्व उपसभापति सलीम परवेज ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान कहा कि मौलाना साहब के बलिदान और त्याग को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर हिन्दू-मुस्लिम एकता को एक नई ताकत दी थी. वर्तमान समय में प्रदेश कांग्रेस का कार्यालय हक साहब की जमीन थी, जिन्हें उन्होंने दान में दे दी थी. उन्होंने अखंड भारत की कल्पना की थी.

मौलाना साहब की जमीन पर चल रहा उर्दू कॉलेज

पर्दा प्रथा के खिलाफ चलाया था जनचेतना
मौलाना मजहरूल हक ने प्रदेश में शिक्षा के अवसरों और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए लंबे अरसे तक संघर्ष किया था. उन्होंने अपनी जन्मभूमी को स्कूल और मदरसे के संचालन के लिए दान दे दी थी. देश की स्वाधीनता और सामाजिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ जनचेतना जगाने का भी प्रयास किया था.

मौलाना मजहरूल हक को याद कर रहा देश

देश में है एकमात्र स्मारक
मौलाना साहब देश की गंगा-जमुनी की संस्कृति और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती के रूप में विख्यात थे. छपरा शहर के रामराज्य मोड़ (महमूद चौक) स्थित हक मंजिल में मौलाना साहब का आशियाना था.वर्तमान समय में इसी मकान में मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी और उर्दू विश्वविद्यालय का स्टडी सेंटर चलता है. देश के लिए इतने अहम कदम उठाने के बाद भी वर्तमान समय में उनका एक मात्र समारक है.जो शहर में एकता भवन के नाम से जाना जाता है. इस भवन का निर्माण देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पहल पर करवाया गया था.

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