समस्तीपुर जिले का प्रसिद्ध थानेश्वर मंदिर समस्तीपुरः सावन की दूसरी सोमवारी पर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाएगा. सुबह से ही मंदिरों में भीड़ लग जाती है. समस्तीपुर शहर के थानेश्वर मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. जानकार बताते हैं कि थानेश्वर मंदिर मनोकामना सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है. यहां सालों भर लोग पूजा पाठ व जलाभिषेक करने श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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सावन में जुटती है भीड़ः खासकर सावन के महीने में दूर-दूर से कांवरिया गंगाजल भरकर जलाभिषेक करते हैं. इस मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है. समस्तीपुर शहर का थानेश्वर मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर में शिव पार्वती के साथ विराजमान हैं. सच्चे मन से पूजा करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है. यहां मत्था टेकने वाले लोगों की हर मुरादे पूरी होती है.
पीपल के वृक्ष में अवतरित हुए महादेवः समस्तीपुर थानेश्वर मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि 1901 में यहां एक विशाल पीपल का वृक्ष था. उसी के पास महादेव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे. उसके बाद लोगों ने पूजा-अर्चना की शुरुआत की. इस मंदिर का प्रचार प्रसार होता गया और आज एक भव्य मंदिर के रूप में जाना जाता है. यहां दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं. बताया जाता है कि जो सच्चे मन से यहां पूजा अर्चना करने आते हैं, भक्त की सभी मुरादें पूरी होती है.
समस्तीपुर जिले का प्रसिद्ध थानेश्वर मंदिर 1901 में हुई स्थापनाः शहर का थानेश्वर मंदिर जिला मुख्यालय में अवस्थित है. स्टेशन से आने के दो रास्ते हैं. बस स्टैंड के सामने यह मंदिर विराजमान है. इसीलिए इस मंदिर में आने वाले भक्तों को कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. यहां के पुजारी विपिन झा कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना 1901 में की गई थी. विभिन्न इलाके से लोग सावन के महीने में पूजा पाठ करने आते हैं. खासकर सोमवारी के दिन मंदिर में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम रहता है.
क्यों नाम पड़ा थानेश्वरः जानकार बताते हैं कि जब से भगवान पीपल के वृक्ष में अवतरित हुए तब से पूजा अर्चना हो रही है. 1901 में मंदिर की स्थापना की गई. बगल में नगर थाना होने के कारण इस मंदिर का नाम थानेश्वर मंदिर रखा गया. समस्तीपुर जिले के साथ-साथ आसपास के जिलों के भी श्रद्धालुओं की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है.
"1901 में इस मंदिर की स्थापना की गई थी. भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती एक पीपल के वृक्ष में अवतरित हुए थे. तब से यहां पूजा की जा रही है. आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां पूजा करने के लिए आते हैं. लोगों का अटूट आस्था इस मंदिर से जुड़ी है."-विपिन झा, पुजारी