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समस्तीपुर: 3 विधानसभा सीटों पर 'लाल झंडा' फहराने को बेकरार वाम दल, कभी इन सीटों पर बोलती थी तूती - bihar election update

महागठबंधन के बलबूते अपने खोए वजूद को तलाशने वाले वाम दलों को विरोधी खेमा हल्के में ले रहा है. जदयू के प्रदेश महासचिव दुर्गेश राय का कहना है कि वामपंथियों को बिहार की जनता ने नकार दिया है. वहीं, लोजपा के पूर्व विधायक विश्वनाथ पासवान ने कहा कि वामदलों को सूरज बिहार की सियासत में पूरी तरह से डूब गया है.

समस्तीपुर
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Published : Oct 15, 2020, 1:21 PM IST

Updated : Oct 15, 2020, 2:32 PM IST

समस्तीपुर:90 के दशक में प्रदेश में वामपंथी दलों की मौजूदगी सड़क से लेकर सदन तक दिखाई देती थी. उस दौर में बिहार विधानसभा में लेफ्ट के 30 से अधिक विधायक हुआ करते थे. 6वीं बिहार विधानसभा में 35 विधायकों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सदन में विपक्षी पार्टी बनी थी. लेकिन वर्तमान विधानसभा में वाम दलों के महज 3 विधायक सदन में हैं. ऐसे में अहम सवाल यह उठता है कि कभी किंगमेकर की भूमिका में रहने वाली वाम दल अपना जनाधार किन वजहों से खोते चला गया.

बात अगर 2015 के विधानसभा चुनाव की करें तो अपने वजूद को बचाने के लिए सभी 6 वाम दल बिहार चुनाव में एक साथ चुनावी मैदान में उतरे. विभिन्न वाम दलों के राष्ट्रीय स्तर के लेफ्ट नेता चुनावी प्रचार में बिहार भी पहुंचे. लेकिन काफी जोड़ लगाने के बाद भी वामपंथी 3 सीट से आगे नहीं बढ़ पाए थे. एक बार फिर से राजनीति ने करवट बदली है और इस बार के विधानसभा चुनाव में वाम दल महागठबंधन के घटक दलों में से एक है. महागठबंधन में वाम दलों को इस बार 29 सीटें दी गई है. जिसमें सीपीआइस, सीपीएम की 10 और सीपीआइ एमएल की 19 सीटें मिली हैं. ऐसे में एक बार फिर से वाम दलों के उदय के कयास लगाए जा रहे हैं.

वाम दल के नेता

वामपंथियों का गढ़ माना जाता था विभूतिपुर विधानसभी सीट
इस बार का विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास है. पहल यह कि देश में संक्रमण काल में पहली बार बिहार में चुनाव होने वाले है. वहीं, राजनीतिक स्तर पर देखें तो महगठबंधन में सीटों को लेकर हुई गहमागहमी के कारण कभी महागठबंधन के सहयोगी रहे हम पार्टी, वीआईपी और रालोसपा ने अपने-अपने राह अलग कर लिए. हालांकि, इस दौरान महागठबंधन के वाम दलों के नए सहयोगी भी जुड़े. चुनाव में बदले राजनीतिक समीकरण के बाद एक बार फिर से जिले में वामदलों के उदय को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. बात अगर समस्तीपुर जिला अंतर्गत विभूतिपुर विधानसभा सीट की करें तो, यह सीट कभी वामपंथियों का गढ़ माना जाता था. बता दें कि कर्पूरी की धरती पर अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रहे वाम दलों को समस्तीपुर में 3 विधानसभा सीट दिये गए हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

40 साल तक वामपंथियों का गढ़ रहा था विभूतिपुर
विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 40 साल तक वामपंथियों का परचम लहराता रहा है. सीपीआई नेता रामदेव वर्मा इस विधानसभी सीट से 6 बार जीतने में सफल रहे थे. एक बार फिर से विभूतिपुर सीट वाम दल के खाते में गई है. ऐसे जिले में इस सीट को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हैं. इसको लेकर सीपीआई के जिला सचिव अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि विभूतिपुर हमेशा से ही वाम दलों का गढ़ रहा है. उन्होंने बताया कि बार के चुनाव में विभूतिपुर को वापस पाने के लिए पार्टी पूरी ताकत लगाएगी.

हालांकि, महागठबंधन के बलबूते अपनी खोई वजूद को तलाशने वाली वाम दलों को विरोधी खेमा हल्के में ले रही है. जदयू के प्रदेश महासचिव दुर्गेश राय का कहना है कि वामपंथियों को बिहार की जनता ने नकार दिया है. वहीं, लोजपा के पूर्व विधायक विश्वनाथ पासवान ने कहा कि वामदलों का सूरज बिहार की सियासत में पूरी तरह से डूब गया है.

गौरतलब है कि इस बार समस्तीपुर में वाम दलकल्याणपुर सुरक्षित, वारिसनगर और विभूतिपुर विधानसभा सीट से अपने प्रत्याशियो को चुनाव मैदान में उतार रही है.

Last Updated : Oct 15, 2020, 2:32 PM IST

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