समस्तीपुर: जिले की सभी नदियां उफान पर है, वहीं गंडक नदी का जलस्तर बढ़ने के बाद नदी की गोद में बसे परिवार अपने बच्चे को लेकर बांध पर तो आ गए हैं. लेकिन इनकी हालात के देखने कोई भी जनप्रतिनिधि या प्रशासन वहां नहीं आया है. जिसकी वजह से ये सभी परिवार बेबसी और लाचारी में अपनी जिंदगी काटने को विवश हैं.
घरों में घुसा बाढ़ का पानी लोग साड़ी-पन्नी तानकर रहने को मजबूर
गंडक नदी की गोद में बसा 400 परिवार नदी में बढ़ते जलस्तर के कारण अपने बच्चों के साथ बांध पर तो आ गया. लेकिन पानी से इनका घर लबालब भरा हुआ है. ये लोग बांध पर साड़ी और पन्नी तानकर किसी तरह अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं. रात के अंधेरे में जमीन पर बोरे पर बच्चे सोते हैं. तो कोई सुबह का बना हुआ खाना रात में खाकर अपने पेट की भूख शांत करता है. इनका कहना है कि प्रशासन के नुमाइंदे भी हमारी सुध लेने के लिए नहीं आए हैं. ऐसे में जब ईटीवी भारत की टीम बांध पर रहने वाले इन परिवारों का हाल जानने पहुंची, तो हैरान कर देने वाली सच्चाई सामने आई.
जमीन पर बोरे पर सोते हैं बच्चे क्या कहते हैं पीड़ित
बच्चे बोरा बिछाकर जमीन पर सो रहे थे, तो कई महिलाएं सवेरे का खाना रात में खाकर अपनी पेट की भूख को शांत कर रही थीं. हमारे कैमरे के सामने लाचार बेबस परिवार ने हैरान कर देने वाली दर्दनाक दास्तां बताते हुए कहा कि हम लोग बांध के किनारे गंडक नदी की गोद में बसे हुए हैं. पहले तो अगलगी की घटना ने हम लोगों को तबाह और बर्बाद कर दिया. उससे अभी उबर भी नहीं पाए थे कि गंडक नदी में बाढ़ के पानी और बढ़ते जलस्तर ने हमारे घरों को डुबो दिया. जिसके कारण हम लोग किसी तरह बांध पर रह रहे हैं. लेकिन किसी ने भी हमारी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया. इस हालात को देखने के लिए वार्ड मेंबर से लेकर कोई भी जनप्रतिनिधि अभी तक नहीं पहुंचा है.
बांध पर रहने को मजबूर हैं बाढ़ पीड़ित 15-20 दिनों से यही हैं हालात
वहीं, सरकारी स्तर पर बाढ़ पीड़ितों के लिए सभी व्यवस्थाएं मुफ्त में की जा रही हैं. दो वक्त के भोजन के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं. वहीं, इन परिवारों का कहना है कि 15-20 दिनों से हम लोग इसी तरह जिंदगी काट रहे हैं. हम लोगों की सुध लेने के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आया है.
15-20 दिनों से इसी तरह काट रहे जिंदगी वहीं, दूसरी ओर ये सभी परिवार प्रशासन से भी खासे नाराज दिख रहे हैं. उनका कहना है कि कोई भी हमारी हालात पर तरस खाने को तैयार नहीं है. अब ऐसे में यह देखना लाजमी होगा कि सरकार की तरफ से इन सभी परिवारों की कब तक सुध ली जाती है.