समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर जिले के धमौन इलाके की छतरी होली (chhatri holi of Samastipur). इसकी तैयारी एक महीने पहले से शुरू हो जाती है. यहां पटोरी अनुमंडल के पांच पंचायतवाले धमौन में दशकों से छतरी होली खेली जाती है. पारंपरिक रूप से मनाई जाने वाली इस होली की तैयारी अंतिम चरण में है. इसकी शुरूआत होली के दिन सुबह से होती है, जब युवाओं की टोली बांस की छतरी के साथ फाग गाते हुए गलियों में निकलते है. इस दौरान गांव की गलियां रंगों से सराबोर हो जाती है.
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समस्तीपुर के धमौन की छतरी होली : बताया जाता है कि होली से पहले इलाके के गांव और टोलों में बांस से बड़े बड़े छाते बनाए जाते (holi celebration under the umbrella) है. जिसके बाद इन सभी छातों को रंगीन कागज से सजाया जाता है. इसी तरह करीब 30 से 35 छतरियों का निर्माण किया जाता है. इसी के साथ होली के दिन सुबह अपने छाते के साथ ग्रामीण अपने कुल देवता स्वामी निरंजन मंदिर में जमा होते है और कुल देवता को रंग- अबीर चढ़ाते है.
ग्रामीण अपने कुल देवता को अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं :कुछ देवता की पूजा के बाद बाद ग्रामीण ढोल नगाड़ों की थाप पर फाग गीत गाते है. एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं. इसके बाद लोग अपने इलाके के छाते के साथ महादेव स्थान के लिए निकलते हैं. दिनभर यह शोभा यात्रा विभिन्न इलाकों से गुजरती है. इस दौरान रौनक देखते ही बनती है. गांव के लोग शोभा यात्रा पर रंग और गुलाल की बरसात करते हैं. इस दौरान टोले के लोग छतरी से अपने आप को बचाते दिखते है. जिन इलाकों से यह यात्रा गुजरती है, वहां ठंडई और शरबत की व्यवस्था होती है.
''आसपास के इलाके से सैकड़ों लोग छतरी होली को देखने के लिए आते हैं. शुरूआत में एक ही छतरी होती थी. लेकिन समय के साथ इन छतरियों की संख्या बढ़ती गई है. गांव के युवक इस परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए है. इस परंपरा से गांव की खुशहाली और बनी रहती है.''- हरिवंश राय, बुजुर्ग धमौन
90 सालों से मनाया जा रहा है जश्न : आखिर में ग्रामीण अपनी टोली के साथ महादेव स्थान के लिए प्रस्थान करते हैं. गांव के लोग और परिवार के साथ मिलते जुलते यह शोभा यात्रा मध्य रात्रि में महादेव स्थान पहुंची है. जब यह टोली महादेव स्थान से लौटती है तो चैता गाते हुए लौटती हैं. इसी दिन फाल्गुन महीना समाप्त होता है और चैत्र की शुरूआत होती है. छतरी होली की शुरूआत कब हुई इसकी प्रमाणिक तो कहीं उपलब्ध नहीं है, लेकिन ग्रामीण बताते है कि इसकी शुरूआत 1930-35 के आसपास हुई थी.
''पांच पंचायत इनायतपुर, हरपुर सैदाबाद, चांदपुर, उत्तरी धमौन और दक्षिणी धमौन की 70 से 80 हजार की आबादी छाता होली में भाग लेती है. टोली में करीब 50 की संख्या में मंडली बनाई जाती है. एक मंडली में 20 से 25 लोग होते हैं.''- ग्रामीण, धमौन