सहरसा: रौशनी के त्योहार दिवाली (festival of lights diwali) में मिट्टी के दीयों की जगह अब इलेक्ट्रॉनिक चायनीज लाइटों ने ले ली है. इसी कारण बाजारों में मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है और सदियों से मिट्टी के दीयों जलाने की परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. मिट्टी के दीये की मांग कम होने की वजह से कुम्हारों के दीये बनाने के पुस्तैनी कारोबार पर ग्रहण लगने लगा है. एक समय दिवाली से लेकर छठ तक हर तरफ मिट्टी के दीये और पूजा के अन्य बर्तन बाजारों की शोभा बढ़ाते थे लेकिन चाइनीज लाइट की मांग ने कुम्हारों का रोजगार छीन लिया.
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कुम्हारों को होता था अच्छा मुनाफा:पहले दिवाली से लेकर छठ तक कुम्हार मिट्टी के दीये और चुक्के के काम में व्यस्त रहते थे. जिससे कुम्हारों का कारोबार अच्छा होता था. साथ ही साथ कुम्हार एक बार में ही साल भर की कमाई कर लेते थे लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में बाजार चाइनीज सामानों से बने लाइटों और बिजली के झालर और जुगनुओं से जगमगा रहे हैं. स्थानीय कुम्हार बताते हैं कि चाइनीज सामानों के बाजार में आने से उनका कारोबार ठप हो गया है.