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किसानों ने पेश की हाइड्रोपोनिक खेती की मिसाल, तालाब में मछली पालन और ऊपर सब्जी उगाकर ले रहे दोगुना लाभ - saharsa news

सहरसा सूबे का पहला जिला है जहां पानी में मछली पालन और उसके ऊपर ऑर्गेनिक सब्जी उगाई जा रही है. किसानों के इस प्रयास की सभी प्रशंसा कर रहे हैं. वनगांव के प्रगतिशील किसान तालाब के बीचों-बीच बांस-बल्ले और चचरी का घर बनाकर मछली पालन के साथ सब्जी उत्पादन का तरीका ग्रामीणों को बता रहे हैं.

saharsa me pani me kheti
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Published : Mar 6, 2021, 5:00 PM IST

Updated : Mar 7, 2021, 1:30 PM IST

सहरसा: कुदरत ने हमें कई नेमते दी हैं. लेकिन उसका सही इस्तेमाल ही उस तोहफे को बचाये रख सकता है. सहरसा के वनगांव के किसान भी इन दिनों कुदरती तरीकों से खेती कर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अपनी अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं. दरअसल यहां किसान फ्लोटेड खेती कर रहे हैं. मछली उत्पादन के साथ सब्जी उगाने का यह नायाब प्रयास नदी और तालाब में हो रहा है.

बांस का चचरी का मचान बनाकर पानी के ऊपर की जा रही खेती

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पानी में खेती
वनगांव के प्रगतिशील किसान टुन्ना मिश्र तालाब के बीचों-बीच चचरी पुल बनाकर मछली पालन के साथ सब्जी उत्पादन कर रहे हैं. इससे इन लोगों को दो फायदे हो रहे हैं. एक मत्स्य पालन भी हो जाता है और दूसरा ऑर्गेनिक सब्जी भी उपजा लेते हैं. मछली पालन में जो खर्च आता है वह सब्जी उत्पादन से प्राप्त हो जाता है.

'जलजमाव से किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है. खेतों में पानी भर जाने से फसल की उपज नहीं हो पाती है. ऐसे में फ्लोटेड खेती नदी या पोखर के बीच चचरी का मचान बनाकर उसपर गमले में ऑर्गेनिक तरीके से विभिन्न प्रकार के बीज से फसल उपजाई जा रही है. यह मचान प्लास्टिक के ड्रम पर बना है जो हम लोगों के आने-जाने से हिलता है और यह मछली के वृद्धि में सहायक सिद्ध होता है'.- टुन्ना मिश्र , पानी में खेती करने वाले प्रगतिशील किसान

देखें रिपोर्ट

कैसे बनी है चचरी का मचान?
तालाब के बीचों-बीच पहले ड्रम रखे गए हैं. फिर उसपर बांस के चचरी का मचान बनाया गया है. उसके ऊपर पॉली बैग में मौसम के अनुरूप रंग बिरंगी सब्जी की खेती की जा रही है. इस मचान को बनाने में लगभग दस हजार तक का खर्च आया है.

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'मैं प्रशिक्षण के दौरान कोलकाता गया हुआ था. वहां मेरी मुलाकात डॉक्टर एच एस से हुई. उन्होंने बताया कि तैरते हुए बांस की चचरी पर आप सब्जी की खेती कर सकते हैं. उससे आपके तालाब में मछली के लिए ऑक्सीजन का भी उत्पादन होगा और आपके इलाके में जलजमाव के दौरान जो जलकुम्भी आती है उसका वर्मी कम्पोस्ट बनवा सकते हैं'- टुन्ना मिश्र , पानी में खेती करने वाले प्रगतिशील किसान

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मत्स्य पालन में लाभकारी
यह हाइड्रोपोनिक खेती है इसलिए जैविक माध्यम से सब्जी उत्पादन होता है. और मछली को ऑक्सीजन भी मिलता है. उसमें जो पटवन किया जाता है उससे वर्मी कम्पोस्ट कम्बाइन्ड वाटर सोर्स से मछली का आकार बड़ा होता है. 6 महीने में मछली एक किलो तक की हो जाती है.

दो जगह हो रही खेती
अभी जिले में मात्र दो जगह इस तरह की खेती होती है. एक बनगांव में और दूसरा नवहट्टा प्रखंड में. लेकिन बहुत जल्द सुपौल में दो जगहों पर तालाब में ऊपर सब्जी और नीचे मछली का उत्पादन करना शुरू होगा.

टुन्ना मिश्र , पानी में खेती करने वाले प्रगतिशील किसान

'टुन्ना मिश्र जी हमारे गांव के प्रगतिशिल किसान हैं. हम भी 10 हेक्टेयर में मछली उत्पादन का काम विगत 10 वर्षों से कर रहे हैं. पेशे से मैं इंजीनियर हूं. देखने के लिए आये हैं कि एक ही तालाब में मछली पालन के साथ-साथ खेती कैसे की जा रही है'.- रौशन झा,स्थानीय किसान

जिस तरह से पानी में मछली और ऊपर सब्जी की खेती हो रही है इससे मछली उत्पादन में भी फायदा हो रहा है. किसानों का यह प्रयास सराहनीय है.-जिला मत्स्य पदाधिकारी

बाढ़ बना वरदान
कोसी क्षेत्र का अधिकांश भाग जल जमाव से ग्रस्त रहता है. जिसकी वजह से किसान से लेकर जमींदार तक सभी जीवनयापन के लिये अन्य प्रदेश जाने को मजबूर होते हैं. ऐसे में हाइड्रोपोनिक खेती की परंपरा निश्चित रूप से वैसे किसानों के लिये वरदान साबित होगी. जिनकी जमीन जलजमाव के कारण खेती योग्य नहीं रहती है. अब ऐसे किसानों के लिए बाढ़ वरदान साबित हो रहा है.

Last Updated : Mar 7, 2021, 1:30 PM IST

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