रोहतास:बिहार के रोहतास से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इतिहास को ही बदलने की कोशिश कर डाली है और साथ ही कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. दरअसल रोहतास की चंदन पहाड़ी ( Inscription Of Emperor Ashoka On Chandan Hill) में स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार (Mazar Built On Inscription Of Emperor Ashoka) बना दिया गया है. पूरे देश में अशोक के ऐसे आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है. इस शिलालेख को चूने से पोत दिया गया है और अब चादर चढ़ाई जाती है.
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सम्राट अशोक के शिलालेख को बना दिया मजार:वहीं सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने शिलालेख को अतिक्रमण कर मजार बना दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. स्थानीय बुद्धिजीवियों से लेकर अन्य लोगों ने इसे जल्द से जल्द अतिक्रमणमुक्त कराने की मांग की है. दरअसल सासाराम के चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को कजरिया बाबा का मजार बता कर उसे एक ताले में बंद कर दिया गया है.
"साल 2002 में उसमें लोहे का गेट लगा. उसका कारण था कि कुछ लोगों ने कहा कि इसमें कजरिया बाबा की समाधि है. नवंबर 1875 ई में अलेक्जैंडर कन्निघम भारत आए थे उन्होंने अपनी पुस्तक में इस शिलालेख का जिक्र किया है. कई भाषाओं में इसका ट्रांसलेशन किया गया है. 20 साल पहले तक सबके लिए यह शिलालेख सुलभ था. अभी वर्तमान में बिहार में एक और शिलालेख कैमूर में मिला है. सम्राट अशोक के शिलालेख पर चूना पोतकर धूमिल कर दिया गया है."- डॉ. राजेंद्र सिंह,शिक्षाविद व प्रोफेसर, SP जैन कालेज, सासाराम
क्या है विवाद:2300 साल पहले सम्राट अशोक ने रोहतास के मुख्यालय सासाराम शहर पर एक शिलालेख उत्कीर्ण कराया था. यह शिलालेख पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य स्थित कैमूर पहाड़ी में अवस्थित है. ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे देश में ऐसे मात्र आठ शिलालेख हैं. बिहार में यह एकमात्र शिलालेख है. फिर भी सरकार और शासन के नाक के नीचे 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 20 साल में मिटा दिया गया. इस दौरान जिला प्रशासन को कई बार पत्र लिख कर बताया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. वर्ष 2008, 2012 और 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन DM ने SDM सासाराम को निर्देशित किया था. तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना. आज यहां बड़ी इमारत बन गई है. अब कोई पर्यटक या शोधकर्ता चाहकर भी इस शिलालेख को नहीं देख सकता है क्योंकि यहां एक लोहे की गेट लगवा दी गई है जिसमें ताला लगा रहता है.
कई पुस्तकों में है इस शिलालेख का जिक्र: दरअसल जिला मुख्यालय सासाराम स्थित चंदन पहाड़ी पर स्थित ईसा पूर्व 300 साल पुराना सम्राट अशोक का लघु शिलालेख अधिक्रमित है. उसे कजरिया बाबा का मजार घोषित किया जा रहा है. कुछ लोगों ने इस शिलालेख के ऊपर हरे रंग की चादर चढ़ा दी है और उसके आगे गेट लगाकर ताला बंद कर दिया है. स्थानीय बुद्धिजीवियों ने भी अपने अपने विचार दिए हैं. उनका कहना है कि 1875 में ही अलेक्ज़ैंडर कन्निघम जब भारत यात्रा पर आए थे, उस समय उसने इस शिलालेख को देखा था. उन्होंने अपनी पुस्तक में भी इसे वर्णित किया था. विश्व इतिहास कि यह एक धरोहर है और दुनिया के कई शोधकर्ता एवं इतिहासकारों ने अपने अपने किताबों में इसे स्थान दिया है. साथ ही इस शिलालेख में अंकित शब्दों को पढ़ा भी गया है. जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव की बात लिखी गई है.
'सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना':वहीं इस मामले पर जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU parliamentary board chairman Upendra Kushwaha) ने ट्वीट किया है. उन्होंने कहा हा कि सासाराम अवस्थित सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना है. अबतक इसका निपटारा न होना अफसोसजनक है लेकिन अब जल्दी ही हो जाएगा.