सहरसा:बिहार में शिक्षा विभाग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education in Bihar) का दावा करती है. अच्छी शिक्षा का सूबे में विभाग लाख दावा कर ले लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. अभी हाल में ही नालंदा के वायलर बॉय सोनू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के सामने सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पोल खोल चुका है. वहीं, अब शिक्षा विभाग के दावों का सच सहरसा में खुला है. जहां शिक्षिका को संख्या और पर्यवाची शब्द के बारे में पता ही नहीं था. सहरसा जिलाधिकारी आनंद शर्मा जिले के सोनवर्षाराज प्रखंड के मैना मध्य विद्यालय निरीक्षण करने पहुंचे थे. विद्यालय पहुंचते ही डीएम आनंद शर्मा शिक्षक की भूमिका में आ गए और मध्य विद्यालय मैना की शिक्षिका से सवाल करने लगे, जिसका एक भी जवाब वहां उपस्थित दोनों शिक्षिकाओं में सो कोई एक भी जवाब नहीं दे पाया.
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सरकारी शिक्षकों का हला बेहाल:गुरुजिसे छात्रों को पढ़ा-लिखा कर शिक्षित बनाना होता है, वो छात्र की भूमिका में खड़ा था. और टीचर डीएम साहेब थे. लेकिन शिक्षिका जिलाधिकारी के एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाई. इस दौरान डीएम ने क्लास रूम में मौजूद दोनों शिक्षिका से उनके सब्जेक्ट के बारे में पूछा और उन्होंने अपना सब्जेक्ट हिंदी बताई फिर क्या था, जिलाधिकारी ने क्लास रूम में मौजूद दोनों शिक्षिका से हिंदी विषय में ही पहला सवाल संख्या का परिभाषा पूछें जिसका जबाब वहां मौजूद दोनों शिक्षिका नहीं दे पाई. फिर जिलाधिकारी ने दूसरा सवाल कमल फूल का तीन पर्यावाची शब्द क्या होता है, पूछा. इसका भी जबाब दोनों शिक्षिका नहीं दे पाई. उसके बाद जिलाधिकारी ने पर्यावाची शब्द क्या होता है पूछे. लेकिन तीनों ही सवाल में दोनों शिक्षिका बंगला झांकने लगी.
DM के एक भी सवाल का जबाव नहीं दे पाई शिक्षिका:दोनों शिक्षिकाओं में से किसी एक ने भीजिलाधिकारी आनंद शर्मा के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाई. इस दौरान जिलाधिकारी के साथ वहां मौजूद जिला शिक्षा पदाधिकारी को जिलाधिकारी आनंद शर्मा ने कहा कि इन्हें खुद पता नहीं तो बच्चों को क्या पढायेंगी. अब सवाल उठता है की जिस शिक्षक और शिक्षिकाओं को पढ़ा-लिखा कर बच्चों को देश का जिम्मेदार नागरिक बनाना होता है. वो ही शिक्षित नहीं हैं तो बच्चों को क्या पढ़ाएंगी. शिक्षक और शिक्षिका को खुद अपनी जिम्मेदारी की जानकारी नहीं हो और खुद शिक्षा की उन्हें पहले जरूरत हो तो ऐसे में बच्चों को पढ़ा-लिखाकर देश का भविष्य कैसे सवांरेंगी, बच्चों को देश का जिम्मेदार नागरिक कैसे बना पायेंगी. ऐसे शिक्षक ही शिक्षा विभाग के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावों का पोल खोलकर रख देते हैं.