सोलह श्रृंगार कर सुहागिनों ने पति की मांगी लंबी उम्र रोहतास: हरितालिका तीज पर सुहागिनों ने पति के लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखा. बिहार के रोहतास में भी महिलाओं ने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत किया. मान्यता है किहरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. सनातन धर्म में हरतालिका तीज व्रत का विशेष महत्व इस दिन सुहागिन अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं हरतालिका तीज का व्रत कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे वर प्राप्त करने के लिए रखती हैं.
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रोहतास में मनाया गया तीज व्रत: जिले के डेहरी में हरतालिका तीज को लेकर यहां महिलाओं ने व्रत रखा और विधि विधान से पूजा अर्चना की इसके बाद अमर सुहाग की कामना की सुहागिन महिलाएं सोनी कुमारी, किरण कुमारी बताती है कि तीज का व्रत वह काफी समय से करती आ रही हैं. आज भी उन्होंने निर्जला व्रत किया है, ताकि उनके पति की उम्र लम्बी हो और सुहाग सदा अमर रहें. हरतालिका तीज पत्नी और पति के प्रेम का प्रतीक है. उन्होंने बताया कि भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है.
सोलह श्रृंगार कर सुहागिनों ने पति की मांगी लंबी उम्र सोलह श्रृंगार कर सुहागिनों ने पति की मांगी लंबी उम्र: पंडित अनिल कुमार पाठक बताते हैं कि मान्यता है कि हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना का विधान होता है. हरतालिका तीज के दिन शिव पार्वती की पूजा की जाती है. इस दिन गीली मिट्टी से शिव पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाकर सुहागिन महिलाएं उनकी पूजा करते हैं. हरतालिका तीज शादीशुदा महिलाओं यहां तक की कुंवारी लड़कियों के लिए भी खास अहमियत रखता है.
"हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना का विधान होता है. हरतालिका तीज के दिन शिव पार्वती की पूजा की जाती है. महिलाएं सोलह सिंगार कर सजती संवरती हैं. इसके बाद शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं. इस तीज का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है."अनिल कुमार पाठक, पंडित
हरितालिका तीज की मान्यताः भगवान शिव माता पार्वती व गणेश जी की पूजा का महत्व है. इस दिन निर्जला रहकर महिलाएं व्रत करती हैं. रात में नित्य गीत गाते हुए इस व्रत को करती हैं. हरितालिका तीज व्रत से माता पार्वती की कहानी जुड़ी हुई है. माता गौरी पार्वती रूप में वे शिव जी को पति के रूप में चाहती थी, जिसके लिए माता पार्वती को काफी तपस्या करनी पड़ी थी. उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था और इस कारण इस व्रत को हरतालिका कहा गया है.