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Bihar Caste Census: 'नीतीश नहीं चाहते कि हो जातीय जनगणना'.. SC का अंतरिम रोक हटाने से इंकार पर बोले उपेन्द्र - बिहार जातीय जणगणना रोक पर उपेन्द्र कुशवाहा का बयान

राष्ट्रीय लोक जनता दल प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक मामले में कहा कि बिहार सरकार नहीं चाहती कि बिहार में जातीय जनगणना हो. यह सरकार की बड़ी विफलता है कि कोर्ट में सरकार अपने पक्ष को सही तरीके में रख नहीं पाई. सिर्फ यहां पर वोट बैंक की राजनीति होती है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : May 19, 2023, 10:03 AM IST

रोहतास: राज्य सरकार को जातीय जनगणनामामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. उच्चतम न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट की अंतरिम रोक हटाने से इंकार कर दिया है. इस मामले पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनता दल के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा (Upendra kushwaha On Bihar Caste Census) ने बिहार सरकार पर बड़ा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि यह बिहार सरकार की बड़ी विफलता है कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से पक्ष भी सही तरीके से नहीं रखी जा सकी. यह सरकार सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीति करना जानती है.

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सरकार ने कोर्ट में सही तरीके से नहीं रखा पक्ष: रोहतास में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि यह पूरे तौर पर बिहार सरकार की विफलता है. जब यह मामला पटना हाईकोर्ट में गया तब भी सरकार ने तथ्यों को कोर्ट के समक्ष सही तरीके से नही रखा. अगर हाइकोर्ट भी अपना पक्ष सही तरीके से रखती तब निश्चित तौर पर कोर्ट की तरफ से सकारात्मक निर्णय आता. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना मामले को लेकर राज्य सरकार ने जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई है. यह सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीति के लिए करने में जुटी है. यही कारण है कि न्यायालय में सही तरीके से पक्ष नहीं रहने के कारण रोक लगाई गई है.

जातीय जनगणना पर बिहार सरकार दोषी: उन्होंने कहा कि कोर्ट ने चाहे जिस भी कारण से रोक लगाया हो. इसके लिए सीधे तौर पर राज्य की सरकार दोषी है. साथ ही कहा कि जातीय जनगणना बहुत जरूरी है.

सुप्रीम कोर्ट ने जांच पड़ताल करने की बात कही: बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पटना उच्च न्यायालय के अंतरिम रोक को हटाने से इंकार कर दिया है. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा है कि इस बात की जांच करनी होगी कि क्या यह कवायद सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं है. हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना को असंवैधानिक बताते हुए रोक लगाने का आदेश दिया था. 3 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की थी. जिसके विरोध में बिहार सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. लेकिन सरकार को वहां से कोई राहत नहीं मिली है.

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