रोहतास:कोरोना महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है. दूसरे राज्यों में रहकर कमाने-खाने वाले लोगों के सामने भूखे मरने की नौबत आन पड़ी. ऐसे में घर वापसी के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा. केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद अब जब प्रवासी अपने राज्य पहुंच गए हैं तो उन्हें रोजगार मुहैया कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है.
सालों से बंद पड़ा कारखाना बिहार लौटे कामगरों ने सरकार से गुहार लगाई है कि रोहतास के डालमियानगर रेल वैगन मरम्मत कारखाने को शुरू करने की दिशा में काम किया जाए. ताकि इसकी शुरुआत के बाद उन्हें परदेश न जाना पड़े. पीड़ित मजदूरों को आस है कि फैक्ट्री चालू हो जाएगी तो उन्हें काम मिल जाएगा और वे घर पर रहकर ही गुजर-बसर कर सकेंगे.
36 सालों से बंद पड़ा है कारखाना
एक समय था जब इस इलाके के 'बिहार का पेरिस' कहा जाता था. लेकिन, बीते 36 साल पहले विभिन्न राजनीतिक कारणों से डालमियानगर का उद्योग समूह को बंद कर दिया गया था. जिसके बाद हजारों श्रमिक बेरोजगार हो गए. स्थिति यह हुई कि इस इलाके से भारी संख्या में लोग पलायन कर गए. अब कोरोना के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लागू है तो श्रमिक दूसरे प्रांतों से बिहार लौट रहे हैं. ऐसे में प्रवासी श्रमिकों के सामने पेट पालना एक बड़ा संकट है.
प्रवासियों को आस
बड़ी संख्या में रोहतास लौटे प्रवासियों को यह उद्योग समूह एक आशा की किरण जान पड़ रही है. उनकी मानें तो अगर सरकार ने समय रहते इस उद्योग को पुर्नजीवित कर देती है तो शाहाबाद के हजारों श्रमिकों के हाथों को रोजगार मिल सकता है. स्थानीय लोगों का भी कहना है कि पिछले दशक में रेल मंत्रालय ने बंद पड़े कारखाने को अधिग्रहण कर यहां कप्लर और वैगन निर्माण फैक्ट्री खोलने की घोषणा की थी. अगर समय रहते यह काम शुरू हो जाता है तो इस इलाके के श्रमिकों को बहुत राहत मिलेगी.
उपेंद्र कुशवाहा ने भी उठाई फैक्ट्री खोलने की मांग रालोसपा प्रमुख ने भी उठाई मांग
वहीं, इस इलाके के सांसद रह चुके आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी मानते हैं कि राज्य सरकार को इस दिशा में प्रयास कर केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में वैसी उत्पादन इकाइयां जो आसानी से शुरू की जा सकती हैं उन सभी को दोबारा शुरू करने की आवश्यकता है. इससे कम संसाधन में श्रमिकों को अधिक काम मिल सकेगा. उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि पूरे देश से श्रमिक घर लौटे हैं इन लोगों को अपने ही जिले में काम मिले तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है?