सासाराम:आमतौर पर धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालु अपने अराध्य का पूजा-पाठ और उनकी आराधना के लिए पहुंचते हैं, लेकिन बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम में एक ऐसा मंदिर है, जहां आस-पास के इलाकों और गांवों के छात्रों के समूह पढ़ाई करने पहुंचते हैं. यहां आने वाले छात्र रेलवे, बैंकिंग सेवाओं, कर्मचारी चयन आयोग और अन्य सरकारी भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं. यहां पहुंचने वालों छात्रों की पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की रहती है. इस कोचिंग की सबसे बड़ी विशेषता है यह है कि यहां कोई शिक्षक नहीं है, सभी छात्र हैं और ये छात्र नियमित कक्षा, प्रश्नोत्तरी और मॉक टेस्ट में भाग लेते हैं. सासाराम महावीर मंदिर (Sasaram Mahavir Mandir) में सेल्फ स्टडी के माध्यम से कई छात्र कामयाबी का परचम लहरा चुके हैं.
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बताया जाता है कि इसकी शुरूआत करीब 16 साल पहले वर्ष 2006 में तब हुई, जब आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले दो युवा छोटेलाल सिंह और राजेश पासवान अपनी पढ़ाई करने के लिए सासाराम पहुंचे. ये दोनों युवा यहां के कोचिंग संस्थानों में नामांकन कराने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन आर्थिक तंगी के इन महंगे कोचिंग संस्थानों में ये अपना नामांकन नहीं करा सके. छोटेलाल सिंह बताते हैं कि इसके बाद हम दोनों सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी करने के लिए सासाराम के महावीर मंदिर में पहुंचने लगे और दिनभर वहीं रहकर पढ़ाई करते. फिलहाल रेल चक्का कारखाना, बेला, छपरा में कार्यरत छोटेलाल बताते हैं कि इसके बाद और कई छात्र हमलोगों से जुड़ते चले गए और फिर छात्रों का बड़ा समूह बनता चला गया. फिलहाल महावीर क्विज एंड टेस्ट सेंटर (Mahavir Quiz And Test Center) में 700 छात्र जुड़े हुए हैं, जो दैनिक कक्षाओं में भाग ले रहे हैं.
राजेश पासवान वर्तमान में कोलकाता के पास भारतीय रेलवे में ही कार्यरत हैं. उन्होंने बताया कि यहां शिक्षकों को काम पर नहीं रखा जाता है. प्रश्नोत्तरी और मॉक टेस्ट में प्रदर्शन के आधार पर, छात्रों को साथी छात्रों को पढ़ाने के लिए चुना जाता है. आंतरिक परीक्षा में टॉप करने वालों को ही एक मानदेय दिया जाता है, जिससे वे अपने पढ़ाई का खर्च निकाल सके. कई छात्र यहां ऐसे भी हैं जो अपनी पढ़ाई पर आने वाला खर्च भी वहन नहीं कर सकते. वे हालांकि कहते हैं कि कोचिंग चलाने के लिए संसाधन जुटाना बड़ी चुनौती है, लेकिन यहां से निकलने वाले प्रत्येक छात्र कुछ न कुछ स्वेच्छा से दान करते रहते हैं, जिससे यह संस्थान चल रहा है.