रोहतास: बिहार के रोहतास में शनिवार को बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ के बैनर तले निषाद समाज के लोगो ने इंद्रपुरी डैम के पानी मे खड़े होकर विशाल जल सत्याग्रह आंदोलनका आगाज किया. इस दौरान बिहार सहित अन्य राज्यों के तकरीबन पांच से ज्यादा लोग पानी में खड़े होकर तख्ती और बैनर लेकर अपनी मांगों के समर्थन में बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.
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रोहतास में जल सत्याग्रह आंदोलन: दअरसल जल सत्याग्रह आंदोलन को लेकर बिहार सरकार के उस निर्णय के विरोध में मछुआरों ने घंटों जल सत्याग्रह किया जिसमें खुली डाक से जलाशयों की बंदोबस्ती का आदेश जारी किया गया है. मछुआरों ने इंद्रपुरी बैराज में खड़े होकर विरोध जताया और निर्णय को वापस लेने की मांग की है.
जल माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप: इस आंदोलन में मुख्य अतिथि और बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप, विशिष्ट अतिथि व निदेशक धर्मेंद्र साहनी सहित प्रदेश अध्यक्ष प्रयाग चौधरी भी शामिल हुए. कॉम्फेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने कहा कि मछुआरा समाज को अब राजनीतिक दल बरगला नहीं सकते हैं.
"सरकार के जलाशय की बंदोबस्ती खुली डाक से करने के फैसले से मछुआरा समाज प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है. सरकार के फैसला के विरुद्ध पूरे बिहार में कॉम्फेड जल सत्याग्रह एवं धरना प्रदर्शन कर रहा है."- ऋषिकेश कश्यप, प्रबंध निदेशक, कॉम्फेड
खुले डाक से बंदोबस्ती का विरोध: उन्होंने कहा कि सूबे की नीतीश सरकार बड़े-बड़े जलाशयों की खुले डाक से बंदोबस्ती कर मछुआरों के साथ अन्याय कर रही है. वही नेताओं ने नीतीश सरकार पर जल माफियाओं के साथ गठजोड़ का आरोप भी लगाया. सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि अगर वह उनकी मांगे नहीं मानती है तो आंदोलन को और असरदार करेंगे और बैराज में ही आमरण अनशन पर बैठेंगे.
"खुले डाक की बंदोबस्त से निषाद समाज सड़क पर आ जाएंगे और उनका पूरा परिवार भुखमरी की कगार पर आ जाएगा. ऐसे में सरकार को हमारी मांगों पर विचार करना चाहिए अन्यथा हम आमरण करने को तैयार हैं."-लल्लू चौधरी, वीआईपी नेता
जलाशय नीति 2022 की आलोचना:इस आंदोलन में मत्स्य जीवी सहयोग समिति लिमिटेड, तिलौथू, बरुण, नासरीगंज, सासाराम सहित रोहतास और औरंगाबाद जिले के पदाधिकारी सहित मछुआरे शामिल हुए. कार्यक्रम की अध्यक्षता वार्ड पार्षद सोनू चौधरी तथा संचालन पार्षद आनंद चौधरी द्वारा किया गया. आंदोलन के दौरान बिहार सरकार के उक्त फैसले को दमनकारी बताते हुए जलाशय नीति 2022 की जमकर आलोचना की गई और बताया कि इसकी आड़ में गरीब, असहाय एवं परंपरागत मछुआरों को परेशान और भुखमरी के कगार पर ले जाया जा रहा है.