रोहतास:जिले में शनिवार को 74वें स्वतंत्रता दिवस की धूम रही. आजादी की लड़ाई में अपनी जान न्यौछावर करने वाले सासाराम के कई वीर सपूतों का इतिहास आज भी गवाही दे रहा है. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपने प्राण गंवाने वाले महंगू राम जगन्नाथ और जगदीश प्रसाद का नाम आज भी जिंदा है. इन शहीदों की याद में सासाराम के धर्मशाला चौक पर गांधी स्मारक भी बनाया गया है.
रोहतास के धर्मशाला चौक स्थित गांधी स्मारक पर शहीदों का नाम तख्ती पर लिखकर अंकित किया गया है. जानकारी के मुताबिक वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन यानी अगस्त क्रांति में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए तीनों वीर शहीद हो गए थे. जिसके बाद ब्रिटिश हुकूमत से जंग लड़ते हुए छात्र जगदीश प्रसाद भी सासाराम के टाउन हाईस्कूल के कैंपस में अपनी जान की आहुति दी. वहीं इन तीनों शहीदों को आज गुमनामी भरी दुनिया में छोड़ दिया गया है. उदासीनता का आलम देखिए प्रशासन ने शहीदों के परिवारों की खोजबीन तक नहीं की. साथ ही ना ही उनकी याद में कोई स्मारक ही बनाया गया.
अगस्त क्रांति में तीनों हुए शहीद
इस संबंध में रोहतास जिलाधिकारी पंकज दीक्षित ने कहा कि अगर सरकार द्वारा शहीदों के नाम का कोई भी प्रपोजल आता है, तो उनके नाम का स्मारक जरूर बनाया जाएगा. बता दें कि देश को आजाद कराने के लिए 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज हुआ था. जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. इस आंदोलन में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी सिलसिले में सासाराम के गांधी चौक के पास 1942 के आंदोलन में शामिल महंगू राम जगरनाथ राम और जगदीश प्रसाद भी शामिल थे. जहां अंग्रेजी फौजों का रास्ता रोकने के लिए सड़क पर बैलगाड़ी लगा दिया गया था. जिसके बाद ब्रिटिश सैनिकों ने चौक पर आकर युद्ध छेड़ दिया.
धर्मशाला चौक स्थित गांधी स्मारक शहीदों के परिवारों को नहीं मिल पा रहा सम्मान
इसके बाद युद्ध में महंगू राम और जगरनाथ राम शहीद हो गए. जबकि जगदीश प्रसाद अंग्रेजों से लोहा लेते हुए सासाराम के टाउन हाईस्कूल पहुंचे. जहां उन्हें अंग्रेजों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिला प्रशासन द्वारा स्वतंत्रता सेनानी के परिवारों को सम्मान दिया जाता है. वहीं महंगू राम, जगरनाथ राम और जगदीश प्रसाद के परिवारों का आज भी प्रशासन पता नहीं लगा सकी है. जिससे उनके परिवारों को कोई सम्मान तक नहीं मिल पा रहा है.
शहीदों के परिवारों की नहीं हुई खोज
वहीं मामले में स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र नित्यानंद ने बताया कि उनके परिवार की खोज के लिए वह जिलाधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक में आवेदन दिया था. इसके बावजूद अब तक सरकार और प्रशासन द्वारा इन शहीदों के परिवारों की खोज भी नहीं की जा सकी. बहरहाल सरकारी उदासीनता के कारण ही शहीदों के परिवारों को सम्मान और उनके नाम का स्मारक तक नहीं बनाया गया है. ऐसे में जिन क्रांतिकारियों के कारण आज देश को आजादी प्राप्त हुई है. उन्हें सरकार और स्थानीय प्रशासन ने भुला दिया है.