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Mahashivratri: सोन नदी के बीच धारा में स्थित है दसशीशा नाथ महादेव, जानें क्यों खास है यह मंदिर.. - Etv Bharat News

रोहतास में स्थित दसशीशा नाथ महादेव मंदिर (Dasshisha Nath Mahadev Temple In Rohtas) की महिमा अपरंपार है. यहां स्थित शिवलिंग पर जलाभिषेक करने मात्र से ही सभी मनोकामना भक्तों की पूर्ण हो जाती है. पढ़ें पूरी खबर..

रोहतास में दसशीशा नाथ महादेव
रोहतास में दसशीशा नाथ महादेव

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Published : Feb 18, 2023, 6:05 PM IST

दसशीशा नाथ महादेव मंदिर की महिमा है अपरंपार

रोहतास:बिहार के रोहतास में सोन नदी के बीच (Mahashivratri In Rohtas) धारा में स्थित हैं भगवान भोले बाबा. बाबा के इस मंदिर को दसशीशा नाथ महादेव कहा जाता है. वैसे तो भारत के कण-कण में महादेव का वास है. हर शिवालयों की अपनी-अपनी कहानियां हैं लेकिन हम बात कर रहे हैं रोहतास जिला के नौहट्टा प्रखंड के बान्दू गांव के पास सोन नदी के बीच धारा में स्थित दसशीशानाथ महादेव स्थान की.

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दसशीशा नाथ महादेव मंदिर की महिमा अपरंपार है :ऐसी किदवंती है कि इस जगह रावण ने खुद शिवलिंग की स्थापना की थी. यही कारण है की इसका नाम दसशीशा नाथ पड़ा है. चूंकि साल में लगभग 8 महीना से अधिक समय तक यह शिवलिंग सोन नदी के जल में समाहित रहता है लेकिन तीन से चार महीना ही यह शिवलिंग दर्शनार्थ उपलब्ध होता है. ऐसा माना जाता है कि महिष्मति के राजा सहस्त्रबाहु और रावण के बीच युद्ध स्थली भी है बान्दू गांव.

रावण और राजा सहस्त्रबाहु का युद्ध स्थल है दसशीशा मंदिर :बताया जाता है किएक समय महिष्मति के राजा सहस्त्रबाहु अपने सैकड़ों रानियों के साथ सोन नदी में स्नान करने पहुंचे थे लेकिन उनके चौड़े- चौड़े भुजाओं से सोन नदी का पानी अवरुद्ध हो गया. ठीक उसी समय रावण भी भगवान शिव की आराधना के लिए इसी स्थल पर पहुंचा लेकिन जब भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए सोन नदी का पानी रावण को नहीं मिला तो रावण क्रोधित हो गया. जिसके बाद सहस्त्रबाहु और रावण के बीच इसी स्थल पर युद्ध हुआ. इस युद्ध में रावण की पराजय हुई. रावण ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर पूजा अर्चना की थी. इसलिए इस शिवलिंग को दस शीशानाथ कहा जाता है.

सोन-कोयल तथा सरस्वती का संगम है बान्दू :ऐसी मान्यता है कि इसी स्थल पर कोयल तथा स्थानीय सरस्वती नदी आकर विलीन हो जाती है. दोनों नदियां सोन नदी में मिल जाती है. इस प्रकार यह तीन नदियों का संगम स्थल है और इसी स्थल पर दसशीशानाथ महादेव की स्थापना हुई है. श्रद्धालु यहां नाव से तो कभी पानी में उतर कर किसी तरह यहां पहुंच पाते हैं. यह काफी दुर्गम स्थल पर मंदिर स्थित है. यहां पहुंचना काफी दुर्गम है लेकिन फिर भी शिव भक्त किसी तरह यहां पहुंचते हैं और पूजा अर्चना करते हैं.

प्राचीन काल में कई राजाओं ने यहां लिखवाया है शिलालेख : प्राचीन काल में कई राजाओं ने इस महादेव स्थान पर अपने-अपने शिलालेख लिखवाए हैं. खरवार राजा प्रताप धवल देव की पूरी वंशावली यहां अंकित है. जिन-जिन राजाओं ने अलग-अलग कालखंड में यहां आकर पूजा-अर्चना की है, उन लोगों ने अपने-अपने नाम अंकित करवाए हैं. इसी से पता चलता है कि यह दसशीशानाथ कितना प्राचीन तथा महत्वपूर्ण है मंदिर है. वर्तमान में भी दूर-दराज से शिव भक्त यहां पहुंचते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. बड़ी बात यह है कि सावन में यहां काफी लोग पहुंचते हैं साथ ही महाशिवरात्रि को वहां मेला सा माहौल रहता है.
अपने में रहस्यों का खजाना है दसशीशानाथ मंदिर : इसकी दुर्गमता बताती है कि दसशीशानाथ अपने में रहस्यों का खजाना है. यह त्रेतायुगीन बताया जाता है. यह एक रहस्यमयी शिवलिंग है. जिस प्रकार से इसकी स्थापना की गई है उसके बाद सैकड़ों वर्ष के बाद भी ये अपने स्थल पर यथावत अवस्थित है जो अद्भुत है. साल में ज्यादातर महीना यह पूरी तरह से जल में डूबा रहता है फिर भी आज भी पूरी मजबूती से ये विद्यमान है. दसशीशा नाथ महादेव शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही शिव भक्त धन्य हो जाते हैं.

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