बिहार

bihar

ETV Bharat / state

पूर्णिया: खंडहर में तब्दील हुआ उप स्वास्थ्य केंद्र, लाखों की लागत से साल 2012 में हुआ था उद्घाटन

पूर्णिया के कृत्यानन्द नगर प्रखंड में साल 2012 में बना उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति इन दिनों बदहाली की चरम सीमा पर है. आलम ये है कि अस्पताल के खंडहर हो जाने से यहां सापों का बसेरा बन गया है. जिससे कोई भी मरीज इस इस स्वास्थ्य केंद्र में जाने से परहेज करता है.

By

Published : Aug 2, 2020, 4:31 PM IST

खंडहर अस्पताल
खंडहर अस्पताल

पूर्णिया:एक तरफ जहां सरकार कोरोना काल में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे कर रही है तो वहीं, दूसरी तरफ हकीकत कुछ ऐसी है कि लाखों की लागत से बने सुशासन के अस्पताल दम तोड़ते नजर आ रहे हैं. दरअसल सरकार के दावों को मुंह चिढ़ाता कृत्यानन्द नगर स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र बदहाल पड़ा हुआ है.

स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली इस कदर है कि दरवाजों पर स्थापना काल के महीने भर के भीतर ही ताला लटक गया. शुरुआती दिनों से ही यहां डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी होने लगी थी. इसके बंद होने के कारण लगभग 15 हजार की आबादी को मीलों का सफर तय कर जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल जाना पड़ रहा है.

खंडहर में तब्दील हुआ अस्पताल

लाखों की लागत से 2012 में हुआ था तैयार
जिला मुख्यालय से तकरीबन 14 किलोमीटर दूर कृत्यानन्द नगर प्रखंड के गणेशपुर पंचायत स्थित गणेशपुर गांव में जर्जर और बदहाल अवस्था में खड़े उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना साल 2012 में हुई. इसका उद्देश्य करवा रहिका, नवतोलिया, डेहरी संथाली टोला, गणेशपुर, सौंसा, निवरी संथाली टोला, बढचरा
जैसे दर्जनों गांवों में निवास करने वाली करीब 15 हजार की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना था. इसके लिए प्रभारी चिकित्सक, सहायक नर्स और एएनएम की नियुक्तियां भी की गई थी. लेकिन, सुविधाओं के अभाव में यह बदहाल होता चला गया.

स्वास्थ्य केंद्र बना सांपों का बसेरा
ग्रामीण कहते हैं कि जिस साल उप स्वास्थ्य केंद्र का उद्घाटन हुआ, उन्हें लगा कि अब इलाज के आभाव में आपात स्थिति में किसी भी ग्रामीण को अपनी जान गंवानी नहीं पड़ेगी. लेकिन दुर्भाग्यवश इनकी यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई. ग्रामीणों के मुताबिक उद्घाटन के महीने भर के भीतर ही उप स्वास्थ्य केंद्र पर स्टाफ की कमी के कारण यह जर्जर हो गया. जिसके बाद यहां सांप और बिच्छू का बसेरा बन गया है. उनका आगे कहना ह कि जिसके चलते उप स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी मजबूरन 18 किलोमीटर का लंबा फासला तय कर इलाज के लिए सदर अस्पताल जाना पड़ता है.

महिलाओं ने बताई आपबीती
'परेशानी में 15 हजार की आबादी
'ग्रामीण महिलाएं कहती हैं कि सबसे अधिक परेशानी जच्चा और बच्चा को होती है. अधिक गर्मी, सर्दी या फिर बेतहासा बारिश के कारण गर्भवती महिलाओं को गांव से जिला मुख्यालय तक ले जाना बेहद कठिनाई होती है. उन्होंने कहा कि कई गर्भवती महिलाओं ने अधिक दूरी, कम समय और उप स्वास्थ्य केंद्र में इलाज की समुचित व्यवस्था न होने के कारण अस्पताल पंहुचने से पहले ही दम तोड़ दिया. कई ऐसे ग्रामीण परिवार भी हैं, जिन्होंने इलाज के आभाव में परिवार के एक सदस्य को खो दिया.
कोरोना काल ने बढ़ाई ग्रामीणों की मुसीबतें
ग्रामीण कहते हैं कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौड़ में एक तरफ जहां घर से बाहर निकलना सुरक्षित नहीं है. वहीं, व्यक्ति बीमार हो जाए तो घर से बाहर निकलना लाचारी हो जाती है. लॉकडाउन होने के कारण गांव से बाहर जिला मुख्यालय तक जाना किसी भी बड़ा कठिन होता है. साथ ही भीड़भाड़ वाले अस्पताल में व्यक्तियों में हमेशा कोरोना संक्रमण फैलने का भय बना रहता है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details