पूर्णिया: आमतौर पर घर में रखे केले जब सड़ जाए तो, इसे बेकार समझ कर फेंक दिया जाता है. हालांकि पूर्णिया के कक्षा 7वीं और 8वीं में पढ़ने वाली दो छात्राओं के एक नायाब इनोवेशन के बाद अब वेस्ट केलों को भी वेल्थ में कन्वर्ट किया जा सकेगा. दरअसल पूर्णिया में रहने वाली बाल वैज्ञानिक रंगोली राज श्रीवास्तव और नव्या शंकर ने इस प्रयोग में सफलता भी हासिल कर ली है. इनका यह इनोवेशन 28वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस प्रतियोगिता में भी राष्ट्रीय स्तर पर चयनित किया गया है.
कृषि कॉलेज ने की सराहना
जिले की इन दो छात्राओं के नायाब इनोवेशन को देश के बड़े आईआईटी कॉलेज और कृषि कॉलेजों की भी सराहना मिल रही है. दरअसल शहर के विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल में पढ़ने वाली रंगोली राज श्रीवास्तव और नव्या शंकर का यह अनूठा प्रयोग केले की खेती करने वाले किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं.
किसानों को होगा फायदा
आमतौर पर वे केले जो अत्यधिक पक जाने के कारण आहार-व्यवहार में नहीं लाए जा सकते. वहीं मौसम की मार के बाद जिन्हें वेस्ट समझकर फेंक दिया जाता है, ऐसे केलों का गुड़ बनाकर लाभ कमाया जा सकेगा. जिससे किसान नुकसान के बजाए फायदे ही फायदे में नजर आएंगे. इस नायाब इनोवेशन के लिए शहर के विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल में पढ़ने वाली रंगोली राज श्रीवास्तव और नव्या शंकर की खूब सराहना हो रही है.
समय का किया सदुपयोग
कोरोना महामारी के बीच समय का सदुपयोग करने वाली बाल वैज्ञानिक रंगोली राज श्रीवास्तव जहां कक्षा आठ की छात्रा है. वहीं नव्या शंकर 7वीं कक्षा में पढ़ रही है. लिहाजा अपने इस इनोवेशन से कोरोना महामारी के बीच इन बाल वैज्ञानिकों ने अपने प्रतिभा का लोहा मनवा कर राज्य भर में जिले का नाम रोशन किया है. बता दें इस प्रोजेक्ट से जुड़े केले की खेती करने वाले किसानों की समस्याओं का हल और मुनाफा दोनों जुड़ा है.
राष्ट्रीय स्तर पर छात्राओं का चयन उम्मीद की एक नई किरण
केले के सड़न के बाद इसकी खेती करने वाले किसानों के लिए नुकसान एक आम सी बात हो चली थी. जिससे निपटने के लिए लंबे वक्त से प्रयास जारी थे. लिहाजा छात्राओं का यह प्रोजेक्ट केले की खेती करने वाले किसानों के लिए अपार मुनाफे से जुड़ी उम्मीद की एक नई किरण बनकर उनके सामने आया है.
"सीमांचल में केला बहुतायत में उपजाए जाते हैं. कभी मौसम की मार तो कभी केले के अत्यधिक पक जाने से वे वेस्ट हो जाते हैं. जिससे केले की खेती करने वाले किसानों को मुनाफे के बजाए लगातार घाटा हो रहा था. इसके चलते किसान बड़ी ही तेजी से केले की खेती छोड़ रहे थे. मेरे जहन में इससे जुड़ा आइडिया काफी पहले से चल रहा था. जिसके बाद अपनी सहयोगी की मदद से शिक्षक का मार्गदर्शन लेकर अपने प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया"-रंगोली राज श्रीवास्तव, छात्रा दो तरह के गुड़ का प्रयोग रंगोली कहती हैं कि इस वक्त देश में दो तरह के गुड़ का प्रयोग किया जा रहा है. गन्ने और खजूर के गुड़ से इतर उन्होंने वेस्ट केलो से गुड़ बनाया है. ये गुड़ गन्ने और खजूर के गुड़ से कहीं ज्यादा जिंक, पोटैशियम, आयरन और मैंगनीज जैसे पौष्टिक न्यूट्रिशनस मौजूद हैं.
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"यह गुड़ खजूर और गन्ने के गुड़ से कहीं ज्यादा सस्ता होगा. इससे चीनी के आसमान छूती कीमतों से भी छुटकारा पाया जा सकेगा. मीठा के तौर पर गुड़ की प्राचीनतम पद्धति दोबारा से प्रचलन में होगी. केले का सड़न किसान, व्यापारी और फल विक्रेताओं के लिए सिरदर्द नहीं होगा. उनके इनोवेशन को अपनाकर केले की खेती करने वाले ये सभी मालामाल हो सकेंगे"-नव्या शंकर, छात्रा अभिभावक और शिक्षकों को गर्व
विद्यालय प्रबंधन व छात्राओं के अभिभावक ने बताया कि उन्हें काफी गर्व है कि उनके पास रंगोली और नव्या जैसी इनोवेटिव बाल वैज्ञानिक हैं. वहीं रंगोली राज श्रीवास्तव और नव्या शंकर की सफलता के बाद जहां उनका परिवार फूला नहीं समा रहा. वहीं विद्यालय प्रबंधन अपनी इन होनहार छात्राओं की तारीफें सुनाता नहीं थक रहा.