पूर्णिया:प्रधानमंत्री मोदी के एक राष्ट्र एक मंडी का सपना साकार होता दिखाई दे रहा है. अब महज बड़े व्यापारी ही नहीं बल्कि छोटे व्यापारियों के लिए भी देश के किसी भी हिस्से से व्यापार करना बेहद सरल और सुलभ हो गया है. वहीं, इसकी एक ताजा बानगी बिहार के पूर्णिया से सामने आई है. जहां 3 साल के लंबे इंतजार के बाद गुजरात के किसानों की प्याज की रेक पूर्णिया पहुंची.
ये भी पढ़ें... CAG ने 2018-19 के अपनी रिपोर्ट में कई तरह के वित्तीय अनियमितता का किया खुलासा
इससे न सिर्फ सीमांचल व कोसी के लोगों को सस्ते दामों पर प्याज मिलेगा बल्कि सैकड़ों मजदूर एक बार फिर से रेक लोडिंग रोजगार से जेड़ेंगे। वहीं जिले के व्यापारी इसे कृषि बिल का प्रभाव मान रहे हैं और इसके लिए वे प्रधानमंत्री मोदी को शुक्रिया कहने से भी नहीं चूक रहे.
ये भी पढ़ें... विपक्षी विधायकों ने आंखों पर काली पट्टी बांधकर विधानसभा के बाहर किया प्रदर्शन
जब 3 साल बाद स्टेशन पर लगी मालगाड़ी
दरअसल, सोमवार को उस वक्त एशिया की सबसे बड़ी मंडियों में से एक गुलाबबाग मंडी के व्यापारी और यहां काम करने वाले मजदूरों के चेहरे खुशी से खिल उठे. जब 3 साल के लंबे इंतजार के बाद प्याज की रेक लिए मालगाड़ी पूर्णिया जंक्शन पर आकर लगी. खुशी का गुब्बार ऐसा कि मालगाड़ी के पूर्णिया जंक्शन पहुंचते ही गुजरात से आए रेकों की व्यापारियों ने बकायदा पूजा की. नारियल फोड़ शुभ कार्य का श्री गणेश हुआ. लड्डू चढ़ाए गए और बकायदा मंत्रोच्चार के साथ व्यपारियों ने अगरबत्ती दिखाकर अन्नदेवता की आराधना की.
एक राष्ट्र एक बाजार का सपना हो रहा साकार
प्याज की रेकों के आगमन से गदगद व्यापारी सुरेंद्र भगत कहते हैं कि यह कृषि बिल का प्रभाव है. जिसने एक राष्ट्र एक मंडी के उनके वर्षों पुराने सपने को पूरा कर दिखाया है. इसी का परिणाम है कि 3 साल बाद गुजरात से प्याज सीमांचल आई. वे बताते हैं कि यही प्याज जब पहले ट्रक के माध्यम से आती थी. तो ज्यादा ट्रांसपोर्टेशन के कारण लोग महंगे दामों पर प्याज खाने को मजबूर थे. इसके साथ ही माल के आने में अक्सर ही लेटलतीफी होती थी. लिहाजा प्याज की किल्लत से अक्सर ही इसकी कालाबाजारी होती थी और फिर ऊंचे दामों पर प्याज बेचे जाते थे.
7-8 रुपए घटेंगे प्याज के दाम
मगर 3 साल बाद एक बार फिर प्याज की रेकों के पूर्णिया आने से उनकी वर्षों पुरानी समस्या जैसे छूमंतर हो गई है. यह सरकार के एक राष्ट्र एक मंडी के मॉडल के कारण ही संभव हो पाया है, अब बाजारों में 7-8 रुपए के सस्ते दामों पर इलाके में प्याज मिलना शुरू हो जाएगा. साथ ही डिमांड से अधिक प्याज होने से कॉस्ट घटने के साथ ही कालाबाजारी पर भी अंकुश लगेगा.
नहीं रोना होगा प्याज के आंसू
वहीं रेल के माध्यम से गुजरात से प्याज की बड़ी खेपों से मजदूरों में खुशी का माहौल है. मजदूर बताते हैं कि लॉकडाउन के साथ ही इनके रोजगार इनसे छीन गए थे. तब से वे अब तक इधर- उधर भटक रहे थे. वहीं उन्हें उम्मीद तक नहीं थी कि दोबारा प्याज की रेकें पूर्णिया आएंगी. लिहाजा इन रेकों के आने के साथ ही उनका नियमित रोजगार उन्हें मिल गया है. जिले भर रेकों के आने से जहां सस्ते दामों पर लोगों को रोजगार मिल सकेगा. वहीं, अब लोगों को प्याज के आंसू नहीं रोना होगा.