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कुम्हारों की कारुणिक अपील- मिट्टी के दीये जलाएं, कुम्हारों के घरों में छाए अंधेरे को दूर भगाएं

चाइनीज प्रोडक्ट के बाजारों में पांव पसारने से कुम्हार परिवार अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं. मिट्टी के कारीगरों का कहना है कि चाईनीज प्रोडक्ट के कारण धंधा मंदा पड़ गया है. दीपावली में बिकने वाले दीप और दूसरों सामानों से पूंजी निकालना मुश्किल है. किसी तरह अपने परम्परागत पेशे को ढो रहे हैं.

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Published : Oct 26, 2019, 7:19 AM IST

कुम्हारों की कारुणिक अपील

पूर्णियाः समय के साथ मिट्टी के कारीगरों की किस्मत भी अंधेरे में मानों सो गई हो. दीपोत्सव में दीये बनाने वाले कुम्हार चाइनीज लाइटों और दीपों ने इनका धंधा मंदा कर दिया है. मुश्किल से अपने व्यवसाय को चला रहे हैं. वहीं ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कसबा प्रखंड स्थित कुम्हार टोला पहुंची. जहां कुम्हार टोले के कुम्हार परिवारों का मौजूदा हालात का जायजा लिया.

वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुम्हार परिवारों ने लोगों से चाइनीज दीयों के बजाए मिट्टी के पारंपरिक दीये से दीपावली मनाने की अपील की. ताकि कुम्हारों के घर में भी दीपावली में आंगन रौशन हो सके. 55 वर्षीय जगदीश चौथी पीढ़ी के हैं जो इस पेशे को ढो रहे हैं. वहीं, रामकिशुन पंडित ने बताया कि बाजारों में चाइनीज प्रोडक्ट पांव पसार दिया है जिसके कारण धंधा मंदा पड़ गया है. पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि दीपावली की कमाई साल भर की जमापूंजी बनती थी, बाकी महीनें में मिट्टी से बने सामान बेचकर घर चलाते थे. लेकिन चाइनीज प्रोडक्ट के कारण सब खत्म हो गया.

रामकिशुन पंडित, कुम्हार

कुम्हारों की मेहनत और मुनाफे पर महंगाई का ग्रहण
दीपावली में बस चंद दिन ही शेष रह गए हैं. लिहाजा 55 वर्षीय जगदीश पंडित और उनका परिवार रात-दिन एक कर दीये और बाकी दूसरे वस्तु बनाने में लगा है. इस टोले के कुम्हारों की मानें तो वे अब इस पेशे को ढो रहे हैं. मिट्टी महंगा होने के कारण मुनाफा नहीं मिल रहा, वहीं व्यवसाय चौपट होने के कगार पर है. मिट्टी तीन गुणा मंहगा हो गया है, 500 की जगह तिगुनी 1500 में मिट्टी रही है. वहीं, चाक पर मिट्टी की गुथाई के बाद दीये और बाकी चीजों को सूखने में 3 दिन का समय लगता है. जबकि बाजार में आने में 5 दिन तक लग जाता है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

बमुश्किल हो रहा दो वक्त की रोटी का इंतेजाम
61 वर्षीय बलदेव पंडित ने ईटीवी भारत को अपना दुखड़ा सुनाया. उन्होंने बताया कि कठिन परिश्रम के बावजूद महज 80 रुपये प्रति सैकड़ा की दर से दीया बाजारों में बिकता है. इसपर भी लोग मोल-भाव करते हैं. जिलसके कारण एक दो दिए दीये अतिरिक्त देने पड़ते हैं. चाईनीज दीये की बाजारों में आने से पहले तक पारंपरिक दीयों की खुब डिमांड रही. अच्छा- खासा मुनाफा होता था. मगर चाइनीज प्रोडक्ट बाजार में आने के बाद कुम्हार अपने पेशे को सिर्फ ढो रहे हैं. इस पेशे से बमुश्किल दो वक्त की रोटियों का इंतेजाम हो जाए इतना ही काफी है.

बलदेव पंडित, कुम्हार

कुम्हारों ने की इलेक्ट्रॉनिक चाक की मांग
वहीं बिहार के कुम्हार भी पीएम मोदी से बनारस की तरह इलेक्ट्रॉनिक चाक की मांग कर रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि बनारस में इलेक्ट्रॉनिक चाक से कुम्हारों के जीवनस्तर और व्यवसाय सुधरा है. वहां, इलेक्ट्रॉनिक चाक सहित, कुटीर उद्योग और व्यवसाय हेतु लोन की सुविधा पहुंचाई गई. बिहार के कुम्हार परिवार भी इस योजना से जोड़ने की मांग कर रहे हैं. वृद्ध कुम्हार का कहना है कि मिट्टी को आकार बदल कर एक नया रुप देते हैं. उसी तरह सरकार हमारी सुध ले, ताकि हमारे जीवनस्तर में सुधार हो सके.

मिट्टी के सामान बनाते कुम्हार

ईटीवी भारत का संदेश
दीप बनाकर जिन कुम्हारों ने बढाया मर्यादा पुरुषोत्तम का मान, रौशन हुआ अयोध्या, जगमग घर- आंगन गुलदान. आओ इस दीपोत्सव कुम्हारों के अंधेरे दूर भगाएं. थोड़ी आमदनी, थोड़ा प्यार, अपनापन दिखलाएं. इस आनंदोत्सव मिट्टी के दीये गले लगाएं.

मिट्टी के बने सामान

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