पूर्णियाः समय के साथ मिट्टी के कारीगरों की किस्मत भी अंधेरे में मानों सो गई हो. दीपोत्सव में दीये बनाने वाले कुम्हार चाइनीज लाइटों और दीपों ने इनका धंधा मंदा कर दिया है. मुश्किल से अपने व्यवसाय को चला रहे हैं. वहीं ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कसबा प्रखंड स्थित कुम्हार टोला पहुंची. जहां कुम्हार टोले के कुम्हार परिवारों का मौजूदा हालात का जायजा लिया.
वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कुम्हार परिवारों ने लोगों से चाइनीज दीयों के बजाए मिट्टी के पारंपरिक दीये से दीपावली मनाने की अपील की. ताकि कुम्हारों के घर में भी दीपावली में आंगन रौशन हो सके. 55 वर्षीय जगदीश चौथी पीढ़ी के हैं जो इस पेशे को ढो रहे हैं. वहीं, रामकिशुन पंडित ने बताया कि बाजारों में चाइनीज प्रोडक्ट पांव पसार दिया है जिसके कारण धंधा मंदा पड़ गया है. पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि दीपावली की कमाई साल भर की जमापूंजी बनती थी, बाकी महीनें में मिट्टी से बने सामान बेचकर घर चलाते थे. लेकिन चाइनीज प्रोडक्ट के कारण सब खत्म हो गया.
कुम्हारों की मेहनत और मुनाफे पर महंगाई का ग्रहण
दीपावली में बस चंद दिन ही शेष रह गए हैं. लिहाजा 55 वर्षीय जगदीश पंडित और उनका परिवार रात-दिन एक कर दीये और बाकी दूसरे वस्तु बनाने में लगा है. इस टोले के कुम्हारों की मानें तो वे अब इस पेशे को ढो रहे हैं. मिट्टी महंगा होने के कारण मुनाफा नहीं मिल रहा, वहीं व्यवसाय चौपट होने के कगार पर है. मिट्टी तीन गुणा मंहगा हो गया है, 500 की जगह तिगुनी 1500 में मिट्टी रही है. वहीं, चाक पर मिट्टी की गुथाई के बाद दीये और बाकी चीजों को सूखने में 3 दिन का समय लगता है. जबकि बाजार में आने में 5 दिन तक लग जाता है.