पूर्णिया: अब पढ़ेगा पूर्णिया और बढेगा पूर्णिया.ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि परोरा प्रखंड के नगर में अभियान किताब दान शुरू किया गया है. इस अभियान के शुरू होने से पहले यहां की तस्वीर कुछ और ही थी. जिले की साक्षरता दर 51.23% है. यह राज्य के औसत 70.9 फीसद की तुलना में लगभग 30% कम है, जो यह प्रदर्शित करता हैं कि सरकारी स्कूल के बच्चों में पुस्तक न पढ़ने की बेहद बुरी लत थी.
अभियान किताब दान :पिछले साल तक यहां के अधिकांश बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से कोसों दूर रहे. हालांकि 25 जनवरी 2020 से ऐसे बच्चों में तब एक बड़ा बदलाव देखा गया. जब डीएम राहुल कुमार ने सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना के लिए पुस्तकों के दान की अनूठी प्रथा 'अभियान किताब दान' की शुरुआत की.
'हमारा लक्ष्य है आगामी 31 मार्च तक जिले भर में कम से कम 100 पुस्तकालयों को स्थापित कर दिया जाए. हमें इस बात की खुशी है कि इस अभियान में लोग बढ़कर सहयोग कर रहे हैं. महज स्कूली बच्चे या जिला प्रशासन ही नहीं बल्कि वरिष्ठ नागरिक, नवयुवक और नौकरी पेशा महिलाएं भी किताबें दान कर रही हैं.'-राहुल कुमार, डीएम, पूर्णिया
गरीब बच्चों की किताबों तक बनी पहुंच :वहीं 12वीं कक्षा तक के छात्रों से दान के जरिए प्राप्त हुई पुस्तकों के साथ 1 दर्जन से अधिक पुस्तकालय स्थापित किए गए हैं. यह पुस्तकालय गरीब बच्चों के लिए आशा की नई किरण बनकर सामने आया है.
'मेरे पिता पट्टे पर खेती करते हैं. मुझे आईएएस बनना है. पुस्तकालय में दान की गई कई किताबें हैं जो मैं पढ़ती हूं. किताबों की परेशानी और खोज इस पुस्तकालय की वजह से खत्म हो गई है.'-नंदनी कुमारी, 8वीं की छात्रा, आदर्श मध्य विद्यालय परोरा
66 हजार से ज्यादा पुस्तकें :बीते 12 महीनों में अभियान किताब दान से 66 हजार से अधिक पुस्तकें जिला प्रशासन को मिल चुकी हैं. कसबा जैसे अल्प साक्षर प्रखंड से भी 6392 पुस्तकें प्राप्त हुईं. वहीं जिला प्रशासन की ओर से जारी किए गए अभियान किताब दान से जुड़े किताबों की लिस्ट पर नजर डालें तो..
- बायसी - 5072
- बैसा- 5403
- अमौर- 5744
- डगरुआ- 4265
- पूर्णिया- 4482
- जलालगढ़- 2944
- श्रीनगर- 2710
- के नगर -2389
- बनमनखी -4185
- धमदाहा- 4979
- बी. कोठी- 5040
- भवानीपुर-3625
- रुपौली- 4106
जिला स्तरीय कार्यलयों से 5020 पुस्तकों को मिलाकर अब तक 66806 किताबें संग्रह की जा चुकी हैं.
'परोरा में कई साथी हैं जिन्होंने आर्थिक दिक्कतों के चलते अपनी पढ़ाई किसी तरह पूरी की. मगर पाठ्य सामग्रियों के आभाव में अपने सपने को पूरा नहीं कर सके. पुस्तकालय की स्थापना के बाद जॉब से छूटकर रोजाना लाइब्रेरी के लिए समय निकालते हैं. रविवार को ऐसे बच्चों की खासी भीड़ रहती है.' -प्रज्ज्वल कुमार, छात्र
'घर का कामकाज खत्म करने के बाद गांव की महिलाएं एकत्रित होकर गपशप से दिन व्यतीत करती थीं.कोविड काल में यह भी बंद हो गया. हालांकि पुस्तकालय के खुलने के बाद अपना समय पुस्तकालय में सभी दे रही हैं. शादी के बाद छूट चुकी किताबों के अध्ययन की लत फिर से पैदा हो रही है.'- बॉबी चौधरी, स्थानीय
'इस पुस्तकालय का कांसेप्ट क्लियर है. जो ग्रामीणों का ग्रामीणों द्वारा ग्रामीणों के लिए मॉडल पर केंद्रित है. जिला प्रशासन की पहल से शुरू किए गए इन पुस्तकालयों का सभी मिलकर देखभाल करते हैं. पुस्तकों के साथ ही अब लोग कुर्सियां समेत पुस्तकालय में प्रयोग होने वाली दूसरी वस्तुएं भी दान कर रहे हैं. इसके लिए डीएम की ओर से उन्हें सराहना पत्र दिया जा रहा है.'- अवध लाल सिंह, मुखिया, परोरा पंचायत
बदल रही तस्वीर :पढ़ाई के लिए मिल रही किताबें छात्रों के जीवन को एक नई दिशा दे रही है. आशा करनी चाहिए कि जैसे जैसे पुस्तकालयों की संख्या बढ़ेगी वैसे साक्षर बच्चों की संख्या बढ़ेगी. यह अभियान गरीब बच्चों के लिए महादान से कम नहीं है.