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Published : Aug 8, 2019, 6:12 PM IST

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पूर्णिया: पुल नहीं होने से मुश्किल में लोगों की जिंदगी, चचरी पुल बनाकर करते हैं आवाजाही

चचरी पुल पार कर ही गांव के छोटे बच्चे विद्यालय पढ़ने जाते हैं. आंगनबाड़ी से लेकर सभी 3 विद्यालय और बाजार-हाट भी लोग चचरी पार कर ही जाते हैं.

बांस का चचरी पुल, पूर्णिया

पूर्णिया: जिले के कसबा प्रखंड के फकीर तकिया गांव के 10 हजार की आबादी बांस के बने चचरी पुल के भरोसे नदी पार करने को मजबूर हैं. 8 गांवों के लोग इस चचरी पुल के सहारे आते-जाते हैं. पुल पक्का नहीं होने के कारण छोटे बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आवागमन का कोई दूसरा रास्ता नहीं होने से ग्रामीण बाइक और साइकल भी कमजोर चचरी पुल के भरोसे ही पार करते हैं.

चचरी पुल की हालत जर्जर
चचरी पुल इस वक्त जगह-जगह टूट चुका है. लिहाजा बड़ी अनहोनी को देखते हुए ग्रामीण चचरी पुल बनाने में जुट गए हैं. यह पुल ग्रामीणों के आर्थिक चंदे और श्रमदान से ही बनता रहा है. इस पुल के जर्जर होने के कारण अबतक कई लोग दुर्घटना का शिकार हो चुके हैं. बीते दिनों ही बाइक सवार एक व्यक्ति नदी के तेज बहाव में बह गया था.

चचरी पुल है लोगों की जीवन रेखा

सरकार ने नहीं सुनी तो खुद की पहल
ग्रामीणों की ओर से दशकों से ही सेतू बनाये जाने की मांग की जाती रही है. लेकिन जब इस मांग को सरकार ने अनसुना कर दिया. तो हालात से निपटने के लिए ग्रामीणों ने बांस के चचरी पुल का निर्माण किया. चचरी पुल हर साल बनता है और हर साल टूटता है. ग्रामीणों की मानें तो बरसात के दिनों में इसे पूरा नहीं किया जा सकता. लिहाजा तपती गर्मी में ही इसकी मरम्मती का काम शुरू होता है. जिसे बनाने में 2-3 महीने का समय लगता है. वहीं, पुल बनाने में हर साल 50-70 हजार रुपये का खर्च आता है. आपको बता दें कि
तकरीबन आधा दर्जन गांवों के लोग इस कमजोर चचरी पुल के सहारे हैं. फकीरतकिया, राजाबाड़ी, सिंधिया टोल, घोघा बस्ती, गेरुआ मोड़, कमलपुर, मिर्जाबाड़ी जैसे 8 गांवों के लोगों के लिए आने-जाने का रास्ता चचरी पुल ही है.

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