25 फरवरी को महागठबंधन की पूर्णिया में रैली पटना:बिहार का पूर्णिया शहर महागठबंधन के होर्डिंग और पोस्टरों से पट गया है. होर्डिंग में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और राजद सुप्रीमो लालू ही बड़े चेहरे के रूप में दिखाई दे रहे हैं. महागठबंधन की ओर से जारी होर्डिंग्स में लालू के समानांतर नीतीश का होना, क्या इस बात के संकेत हैं कि 2025 में तेजस्वी यादव ही सीएम की कुर्सी संभालने जा रहे हैं?.
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पूर्णिया में महागठबंधन की रैली :गौरतलब है की बीते सितंबर में हुए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सद्भावना रैली के बाद महागठबंधन के सियास दल सीमांचल को साधने की जुगत में जुट गए हैं. राजनीतिक पंडितों की माने तो महागठबंधन की रैली का एक दूसरा पक्ष इस ओर भी संकेत कर रहा है की 2025 के विधानसभा चुनाव में सीएम पद की दावेदारी कोई और नहीं बल्कि तेजस्वी ही करने जा रहे हैं. बदले राजनीतिक परिदृश्य में नए समीकरण के अस्तित्व में आने के बाद ये पहला मौका होगा जब एक मंच पर सियासत का इतना बड़ा जमघट लगने जा रहा है.
25 फरवरी को पूर्णिया में महागठबंध की रैली :यह रैली 25 फरवरी को पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में होगी. रैली में खुद सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव मोर्चा संभाले दिखाई देंगे. इस दौरान न सिर्फ सीमांचल-कोसी के नेता बल्कि महागठबंधन के सभी शीर्ष नेता एक-दूसरे के साथ मंच साझा करेंगे. पोस्टरों की एनालिसिस भी इस ओर साफ सूचना, संदेश और संकेत कर रहे हैं कि 'महागठबंधन रैली' में सियासी दलों के साथ ही सीमांचल के वोटरों को साधने की तमाम कवायदें शामिल होगी. तमाम पोस्टरों में नीतीश-लालू का फोकस में होना भी इस ओर इशारा कर रहा है की बिहार की सियासत के ये दो सुरमा ही 2024 के लोकसभा चुनाव और फिर 2025 के विधानसभा चुनाव की दशा और दिशा तय करेंगे.
रैली को सफल बनाने में जुटे महागठबंधन के नेता :2025 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश कुमार कुमार ही मुख्यमंत्री पद के असल दावेदार होंगे या फिर तेजस्वी? महागठबंधन किसे आगे करेगा?. फिलहाल हर कोई इसपर सामने से कुछ भी कहने से बचता दिखाई दे रहा है. लिहाजा पूरे देश की नजर इस महागठबंधन रैली पर होगी. न सिर्फ बिहार बल्कि देश के सभी बड़े नेताओं और सियासी दलों की आंखें अब महागठबंधन की महारैली पर आकर ठहर गई है. न सिर्फ राजनीतिक पंडित बल्की पॉलिटिकल स्ट्रेटजी बनाने वाली सभी बड़ी एजेंसियों की नजर रैली पर है. मीडिया से लेकर राजनीतिक जानकार माइक्रो लेवल पर रैली के सियासी मायने तलाश रहे हैं. महारैली को कैसे ऐतिहासिक बनाया जाए शीर्ष नेता लगातार मंथन कर रहे हैं.
सीमांचल पर सभी पार्टी की नजर :स्थानीय मंत्री और विधायकों से कार्यक्रम की नीतियों को लेकर विचार विमर्श का दौर तेज है. बीते सप्ताह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर पूर्णिया पहुंचे थे. इसे लेकर बजापते टाउन हॉल में बड़ी बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक में कई नेता मौजूद थे. लिहाजा महागठबंधन रैली के जरिए सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी की ये भरसक कोशिश होगी की वीआईपी और जाप जैसे बाकी दल जो अब भी महागठबंधन की पकड़ से बाहर हैं उन्हें गोलबंद किया जाए.
महागठबंधन की रैली :महागठबंधन की रैली में महाभीड़ जुटे साथ ही सीमांचल के वोट बैंक को साधा जा सके इसे लेकर जिला जदयू ग्रामीण क्षेत्रों में कैंप कर रही है. विधायक बीमा भारती, सैयद रुकनुद्दीन, पूर्व विधायक दिलीप यादव, बरारी के पूर्व विधायक नीरज कुमार यादव, सबा जफर, हाजी सुबहान इसकी कमान संभाल रहे हैं. रैली इसलिए भी अहम है की भाजपा से जेडीयू के ब्रेकअप और फिर इसके बाद राजद से जदयू के पैचअप के बाद बीते साल सितंबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोसी सीमांचल के लिए बड़ी रैली का आयोजन किया था. जिसकी हुंकार रंगभूमि मैदान से ही भरी गई थी. लिहाजा अलग-थलग पड़ी भाजपा और महागठबन्धन दोनों के लिए ही कोसी- सीमांचल का इलाका खासा अहम है.
कोसी- सीमांचल का इलाका खासा अहम :राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कोसी-सीमांचल के 7 जिले में लोकसभा की 6 और विधानसभा की 37 सीटें हैं. इनमे से लोकसभा की 5 सीट और विधानसभा की 27 सीट महागठबन्धन के हाथ में है जबकि बाकी बची लोकसभा की 1 और विधानसभा की शेष 10 सीट भाजपा के कब्जे में है. जाहिर तौर पर राजद के हाथ खाली हैं. वहीं विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो जदयू के पास 12 भाजपा 10 सीट, राजद 9 सीट व भाकपा माले के पास 1 सीट है.
महागठबंधन की रैली के जरिए शक्ति प्रदर्शन :महागठबंधन में शामिल अन्य पार्टियां बल्कि खुद राजद भी इस रैली के बहाने लालू वाली पकड़ सीमांचल-कोसी में मजबूत करने की जुगत में है. वहीं वोट बैंक के फार्मूले पर सीमांचल को सेट करें तो यह इलाका मुस्लिम, यादव, अतिपिछड़ा और महादलित बहुल है. साथ ही कोयरी, कुर्मी और कुशवाहा वोटरों की भी खासी आबादी है. यही वजह है कि महागठबन्धन ने महारैली के लिए सीमांचल को चुना और राजनीतिक केंद्र बिंदु में पूर्णिया को रखा है.