पूर्णिया: बढ़ती जनसंख्या और गांवों से शहर आ बसने की होड़ के साथ जमीन अधिग्रहण मौजूदा दौड़ की गंभीर समस्या बन कर उभरी है. पूर्णिया में कब्रगाह की जमीन पर अवैध कब्जा जारी है. इंसानों के बीच मची यह होड़ न सिर्फ शहर के लिए अनगिनत चुनौतियां ला रही है बल्कि कब्रगाहों को भी बीतते वक्त के साथ समेट दिया है. दशक दर दशक कब्रगाहों के नाम लिखी जमीनें सिकुड़ती चली जा रही हैं, फिर चाहे मुस्लिम कब्रगाह हों या ईसाइयों के ग्रेव्यार्ड.
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कब्रगाहों पर कब्जा
किसी लाईलाज बीमारी की शक्ल लेती ये समस्या रेसिडेंशियल इलाकों से कहीं ज्यादा कब्रगाहों के अस्तित्व के लिए गहरा संकट पैदा कर रहा है. सवाल ये कि कब्रगाहों पर बढ़ते अतिक्रमण के बाद क्या इंसानों को सम्मानजनक अंत्येष्टि भी नसीब नहीं हो सकेगी.
क्रिश्चियन के ग्रेव्यार्ड पर भी संकट क्या अस्तित्व बचा पाएंगे ब्रिटिशकालीन कब्रगाह
शहर से लगे जिले के सबसे बड़े कब्रगाहों में से एक है लाइन बाजार कब्रिस्तान रोड स्थित ब्रिटिशकालीन कब्रगाह. शहर की 40 हजार की आबादी इस कब्रगाह पर पूरी तरह निर्भर है. 40 बीघे में फैले इस कब्रिस्तान पर भी बाकी कब्रगाहों की तरह अतिक्रमणकारियों की नापाक नजर है. अतिक्रमण के मनसूबे से अंजुमन इस्लामिया के अंदर आने वाले कब्रगाह की बाउंड्री पूरी तरह ढाह दी गई है. भविष्य के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक है.
कब्रगाहों पर खड़ी की जा रहीं अवैध इमारतें
रामबाग और सिपाही टोला समेत जिले के करीब एक दर्जन कब्रगाहों पर दशक दर दशक अतिक्रमणकारियों का कब्जा बढ़ा है. बीतते वक्त के साथ जिले के करीब आधा दर्जन कब्रगाहों की करीब 12 बीघा जमीन पर लोगों ने अपनी इमारत खड़ी कर दी और रहने लगे.
फर्जी दस्तावेजों के साथ बेचा जा रहा कब्रिस्तान यह भी पढ़ें- अनंत सिंह की बिगड़ी तबीयत, PMCH में चल रहा इलाज
बढ़ती आबादी और गांव से शहर आ बसने की प्रवृति ने कब्रिस्तानों के सामने गहरा संकट पैदा कर दिया है. शहर में दो बड़े कब्रगाह हैं. मगर अब दोनों पर कब्जे की पुरजोर कोशिशें जारी हैं. करीब 6 बीघे में फैले मौलवी बाड़ी कब्रिस्तान पर भी अतिक्रमण का साया मंडरा रहा है.- हुसैन इमाम, अध्यक्ष, मदरसा अंजुमन इस्लामिया
क्या अस्तित्व बचा पाएंगे ब्रिटिशकालीन कब्रगाह क्रिश्चियन के ग्रेव्यार्ड पर भी संकट
वहीं ऐसी ही कुछ गंभीर संकट ईसाई कम्युनिटी के सामने है. कई दफे ग्रेव्यार्ड को महफूज रखने के लिए इसमें गेट लगाए गए. मगर अतिक्रमणकारियों के आगे उनकी सारी कोशिशें नाकाम रही. किवहीं ग्रेव्यार्ड के नाम लिखी लाइन बाजार होप स्थित करीब 20 एकड़ जमीन चर्च के नाम है। मगर बीतते वक़्त के साथ इस जमीन को फर्जी दस्तावेजों के साथ बेचा जा रहा है.
क्रिश्चियन के ग्रेव्यार्ड पर भी संकट ग्रेव्यार्ड की जमीन सिकुड़ रही है. लंका टोला स्थित ब्रिटिशकालीन ग्रेब्यार्ड खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. सन 1850-60 के दशक में पूर्णिया के कलेक्टर रह चुके एफ ड्रोमोंड और बी आर पैरी को इसी ग्रेव्यार्ड में दफनाया गया था. इस प्रमुख ग्रेव्यार्ड में इसके अलावा कई दूसरे ब्रिटीशनरों की कब्रें हैं. जहां आज भी ब्रिटिशकालीन तख्तियां दिखाई देती हैं.- फादर जैकब जॉनसन दास, एंगेलिकन चर्च
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ग्रेब्यार्ड के 19 एकड़ जमीन पर दलालों का कब्जा
लाइन बाजार स्थित ग्रेब्यार्ड के नाम लिखी जमीनों पर बड़ी ही तेजी से बिल्डिंगे खड़ी हो रही हैं. जिसके बाद अल्पसंख्यक मंत्रालय समेत राज्य के अल्पसंख्यक विभाग जिले के डीएम को पत्र लिखा गया है. ताकि जल्द से जल्द ग्रेब्यार्ड की इन जमीनों को अतिक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त कराया जा सके.
कैसे होगी सम्मानजनक अंत्येष्टि?
कब्रगाहों के अतिक्रमण से जुड़े अनगिनत मामले हैं जो न्यायालय में विचाराधीन है. हालांकि इनका निबटारा कब होगा कहना मुश्किल है. ऐसे में सरकार को कब्रगाहों के बढ़ते अतिक्रमण से निपटना है तो प्राथमिकता देकर ऐसे मामलों के फास्ट ट्रैक निपटारे की व्यवस्था लागू करनी होगी.
जिस प्रकार साल दर साल कब्रिस्तानों पर कब्जे बढ़े हैं, न सिर्फ रेसिडेंशियल बस्ती बल्कि कब्रगाहों के लिए भी गहरा संकट पैदा हो गया है. एक ऐसा संकट जिसके बाद भविष्य में सम्मानजनक अंत्येष्टि भी नसीब होना मुश्किल है.- एम हक, अधिवक्ता
पक्के के कब्रगाह पर लगी पाबंदी
मदरसा अंजुमन इस्लामिया के प्राचार्य अब्ददुल कय्यूम नदवी आंकड़े पेश करते हुए बताते हैं कि 40 बीघा में फैले लाइन बाजार स्थित कब्रगाह में करीब 3000 से अधिक शवों को दफन किया जा चुका है. हर साल सैकड़ों शव दफनाए जाते हैं. लिहाजा बढ़ती जनसंख्या और गांव से शहर की ओर जारी पलायन के बीच कब्रिस्तानों के सिमटते दायरे को देखते हुए भविष्य में कब्रगाहों में जगह की कमी न पड़े. लिहाजा दफ़्नगी के लिए आने वाले लोगों के पक्के के कब्रगाह बनाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है. हालांकि शरीयत के अंदर भी पक्के के कब्रगाह बनाने की सख्त मनाही है. वहीं भविष्य की चुनातियों को देखते हुए भी मिट्टी में ही शवों को दफन किए जाने की सख्त हिदायत है, ताकि तत्काल इस चुनौती से किसी तरह निपटा जा सके.