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ये है बिहार की जमीनी हकीकत: नहर तो तैयार है, पर सिंचाई के लिए पानी नहीं

किसानों की हित की बात तो हर सरकार करती है. पर जमीनी हकीकत क्या है इसकी एक बानगी हम आपको दिखाने जा रहे हैं. कृषि प्रधान राज्य बिहार के किसानों के खेतों तक पानी पहुंचे इसके लिए नहरों का निर्माण कराया गया था. पर यह सिर्फ शोभा की वस्तु बनकर रह गया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Mar 18, 2021, 2:30 PM IST

Updated : Mar 18, 2021, 4:44 PM IST

irrigation project in Purnea
irrigation project in Purnea

पूर्णिया: बिहार की 80 फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है. इस कृषि के लिए सिंचाई एक मुख्य कारक है. लिहाजा मॉनसून की अनिश्चितता व अल्प वर्षापात की स्थिति को देखते हुए कोसी व सीमांचल के 9.96 लाख हेक्टेयर भूमि को नहरों के माध्यम में सिंचित करने के उद्देश्य से सन 1954 में कोसी नहर परियोजना के तहत कोसी नहर परियोजना की बुनियाद रखी गई.

सिंचाई के लिए पानी नहीं

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मगर अफसोस सूबे के अमूमन सभी हिस्सों के साथ ही कोसी और सीमांचल के जिले में कोसी परियोजना की स्थिति बदहाल है. सरकार की अनदेखी और प्रशासनिक रखरखाव के अभाव में सीमांचल के जिलों की अधिकांश नहरें अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

दरअसल, जिले के नहरों में पानी की सर्वथा अभाव रहा है. नहरों में बरसों से एक बूंद पानी उपलब्ध नहीं कराया गया है. इससे किसानों की माली हालत प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है. जिला के विभिन्न प्रखंडों में लगी सरकारी नलकूप की स्थिति भी जर्जर हाल में है. ऐसे में किसान करें तो भला क्या करें. वे सीमित साधन व निजी पंपसेट से सिंचाई करने को बाध्य हैं. जमीनी हकीकत यह है कि नहर सिंचाई परियोजना हो या सिंचाई से जुड़ी दूसरी परियोजनाएं धरातल पर ये योजनाएं पूरी तरह फेल हैं.

पूर्णिया में नहरों पर अतिक्रमण

नहर की जमीन का अतिक्रमण
किसान बताते हैं रखरखाव की कमी से साल दर साल नहरों की हालत खस्ताहाल होती चली जा रही है. नहरों की उड़ाही न होने से मिट्टी की कटाई जारी है. कोई नहर काटकर घर मे मिट्टी की भराई करा रहा है. तो वहीं किसी ने नहर की जमीन का अतिक्रमण कर पशुओं का चारागाह और बैठका बना लिया है. कमोबेश यही स्थिति जिले के सभी 14 प्रखंडों में है. कहने को तो जिले में नहरों का संजाल बिछा है मगर वर्षों पहले नहरों में पानी आना बंद हो गया है. आलम यह है कि वर्षों से सूखे पड़े नहरों में जंगली पौधे निकल आए हैं. वहीं अब इन नहरों में जंगली चूहों का बसेरा है.

सिंचाई परियोजना की हकीकत

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किसानों को सताने लगा चिंता
नहरों की बदहाली की कमोबेश यही स्थिति धमदाहा, के. नगर बनमनखी, रुपौली, भवानीपुर व बड़हरा कोठी सहित दूसरे प्रखण्डों की है. जहां वर्षों से नहरें बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. गर्मी के दस्तक के साथ एक बार फिर किसानों को अपने खेतों के चौपट होने का खतरा सताने लगा है. चूनापुर इलाके में रहने वाले किसान बताते हैं कि 10 वर्ष बीतने को हैं मगर अब तक पूर्वी कोसी नहर से लगे चूनापुर नहर में पानी नहीं छोड़ा गया है. वहीं पंचायतों के खेत में लगाई गई सरकारी नलकूप की स्थिति भी रखरखाव के अभाव में खराब पड़े हैं. किसान बताते हैं कि नहरों में पानी नहीं रहने से सिंचाई में काफी पूंजी निवेश करने के बाद भी अच्छी उपज नहीं हो पाती है.

बिहार की जमीनी हकीकत

दरअसल, इस योजना के तहत हिमालय की कोख से निकलने वाली कोसी नदी के पानी को नहरों के संजाल तक पहुंचाकर पूर्णिया, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और कटिहार के किसानों को सस्ती सिंचाई से लाभान्वित किया जाना था. जाहिर तौर योजना को धरातल पर उतारने का एक मकसद बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी के बाढ़ के पानी को डायवर्ट किया जाता, जिससे बाढ़ की विभीषिका से बहुत हद तक बचा जा सकता था.

सिंचाई विभाग की उदासीनता
किसान श्री सम्मान से सम्मानित किसान यादवेंद्र चौधरी बताते हैं कि कोसी नदी द्वारा उत्पन्न बाढ़ संकट पर नियंत्रण करने व कोसी और सीमांचल के क्षेत्र को सिंचित करने के उद्देश्य से साल 1954 में नेपाल सरकार के साथ हुए समझौते के तहत कोसी नदी पर भीमनगर के समीप बांध बनाकर पश्चिमी कोसी और पूर्वी कोसी नहर का निर्माण कराया गया. हालांकि सिंचाई विभाग की उदासीनता ने नहरों को पानी से महरूम रखा। जिसके चलते नहर होते हुए भी किसानों को अपनी जेब ढीली कर खेतों में पटवन करना पड़ रहा है.

नहरों में पानी की कमी

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जगह- जगह से नहर क्षतिग्रस्त
नहर के स्टाफ सुनील कुमार बताते हैं कि नहर के रखरखाव के लिए जल संसाधन विभाग की ओर से जिले भर में 40 स्टाफ बहाल किए गए थे. मगर अफसोस 10 साल बीत गए और अब तलक किसी को वेतन की एक फूटी कौड़ी तक नसीब नहीं हो सकी है. वहीं नहर का रखरखाव न होने से जगह- जगह से नहर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. लिहाजा कमजोर हो चुके मेड पानी के बहाव को नहीं झेल पाते और टूट जाते हैं. दरअसल ससमय नहरी पानी परियोजना को दुरुस्त कर दिया जाए तो काफी हद तक बाढ़ से बचाव संभव है.

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र
जल संसाधन विभाग से प्राप्त आंकड़ों पर नजर डालें तो उतरी बिहार का 76 फीसदी भूभाग बाढ़ प्रभावित है. जबकि सूबे के 38 जिलों में से 28 जिले प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं. इसके अंतर्गत पूर्णिया जिले का 1260 स्क्वायर किलोमीटर बाढ़ प्रभावित हैं. तो वहीं कोसी प्रमंडल के मधेपुरा जिला का 1030 स्क्वायर किलोमीटर, कटिहार का 1850 स्क्वायर किलोमीटर, अररिया का 1690 स्क्वायर किलोमीटर व किशनगंज का 490 स्क्वायर किलोमीटर भूभाग बाढ़ से प्रभावित है. बता दें कि पूर्णिया जिला में वर्ष 2015 में ही नहरों की उड़ाही हुई थी उसके बाद दोबारा अब तलक नहरों की उड़ाही नहीं हो सकी है.

भूभाग बाढ़ से प्रभावित

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इस बाबत ईटीवी भारत की सिंचाई परियोजनाओं की पड़ताल पर संज्ञान लेते हुए जल संसाधन विभाग के पूर्णिया प्रमंडल के अधीक्षण अभियंता ई बिनोद कुमार दास ने कहा कि जिले में पूर्वी कोसी नहर परियोजना के तहत हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाया जाना था. मगर विभागीय फंडिंग इसमें रोड़ा बना. जिसके चलते इसके रखरखाव का कार्य अवरुद्ध है. हालांकि जहां तक नहरों के क्षतिग्रस्त होने की बात है स्थल निरीक्षण कर इसे तत्काल प्रभाव से दुरुस्त किया जाएगा.

Last Updated : Mar 18, 2021, 4:44 PM IST

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