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मछली पालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है बिहार, हैचरी उत्पादन के जरिए हो रही अच्छी कमाई

हैचरी उत्पादन के जरिए पूर्णिया के गढ़िया-बलुआ गांव के दर्जनों ग्रामीणों को रोजगार मिल रहा है. यहां के युवा मगन महलदार आज इसके जरिए अपने साथ-साथ कई गांव के लोगों का भी पेट पाल रहे हैं.

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Published : Jun 28, 2020, 4:20 PM IST

पूर्णिया: अब कोसी और सीमांचल को मछली उत्पादन के लिए बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों पर निर्भर नहीं रहना होगा. दरअसल, नीली क्रांति योजना के तहत मत्स्य बीज हैचरी उत्पादन योजना को जिले के गढ़िया-बलुआ गांव में धरातल पर उतारा गया है. युवा मगन महलदार ऐसे पहले लाभुक हैं जो इस योजना से जुड़कर अपने साथ-साथ पूरे गांव की आमदनी बढ़ा रहे हैं.

पूर्णिया के गढ़िया-बलुआ गांव में इस योजना के तहत 3.5 एकड़ में डिमांडिंग रेहु व कॉमन कॉर्प मछली के बच्चे का प्रोडक्शन किया जा रहा है. मत्स्य विभाग की मानें तो इस योजना से जुड़कर सालाना 25-30 लाख तक का मुनाफा कमाया जा सकता है. मत्स्य विभाग और 23 वर्षीय युवा मगन की लग्न से बढ़ रहा मत्स्य बीज हैचरी योजना समूचे कोसी जोन का पहला प्रोजेक्ट है.

देखें पूरी रिपोर्ट

बेरोजगारों को मिला रोजगार
जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर श्रीनगर प्रखंड के गढ़िया-बलुआ गांव में रहने वाले मगन खुद के साथ-साथ 20 ग्रामीणों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं. सबसे खास बात यह है कि गढ़िया-बलुआ में रहने वाले ये ऐसे ग्रामीण थे जो लॉकडाउन के बाद पूरी तरह बेरोजगार हो चुके थे. कुछ यही वजह है कि ग्रामीण मगन और मत्स्य विभाग की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

हैचरी प्रोडक्शन प्लांट

3.5 एकड़ में शुरू किया हैचरी प्रोडक्शन
मगन बताते है कि वे गांव में 3.5 एकड़ के प्लांट में मत्स्य बीज हैचरी उत्पादन योजना का लाभ लेकर हैचरी उत्पादन (मछली का बच्चा) कर रहे हैं. वे मत्स्य पदाधिकारी कृष्ण कन्हैया के निर्देशों पर मौसम के अनुकूल डिमांडिंग रेहू और कॉमन कॉर्प मछली के बच्चे का प्रोडक्शन कर रहे हैं. मगन बताते हैं कि उनका परिवार सालों से इस क्षेत्र से जुड़ा रहा है.

हैचरी उत्पादन से मिल रहा ग्रामीणों को फायदा

मछली पालन के पारंपरिक तरीके से मुश्किल में था मगन का परिवार
मगन कहते हैं कि मछली पालन के पारंपरिक तरीके से आमदनी कम और मेहनत ज्यादा होती थी. मत्स्य विभाग की इस योजना से जुड़ने के बाद उन्हें काफी लाभ मिल रहा है. विभाग की ओर से उन्हें 50 फीसद का अनुदान भी दिया गया है. हैचरी प्रोडक्शन में महज 5 दिन का समय लगता है. इतने कम समय में ही 10 मिलियन हैचरी का उत्पादन किया जा सकता है.

हैचरी उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहे किसान

खत्म होगा बंगाल का दबदबा
वहीं, मत्स्य पदाधिकारी कृष्ण कन्हैया की मानें तो भारी डिमांड और जीरो कॉम्पिटिशन के कारण हैचरी प्रोडक्शन फायदों से भरा है. हैचरी निर्माण में बेहद जल्द बंगाल का दबदबा खत्म होगा. वहीं क्वालिटी सीड के मामले में भी यह बंगाल समेत दूसरे प्रदेशों से बेहतर होगा. इससे बंगाल से हैचरी लाने की समस्या खत्म होगी ही साथ ही पैसे व समय की भी खासी बचत होगी.

कैसे करें हैचरी प्रोडक्शन?

  • इस योजना का लाभ लेने के लिए 3 एकड़ की जमीन की जरूरत होती है.
  • ओवर हेड टैंक- इस टैंक में आयरन फ्री पानी टैंक में डाला जाता है, जिससे पानी साफ और शुद्ध हो जाता है. मछलियों का ग्रोथ कई गुना बढ़ जाता है.
  • वुडर फ्री टैंक- यह मत्स्य बीज हैचरी उत्पादन की दूसरी प्रक्रिया है. इस टैंक में मछली को इंजेक्ट करके छोड़ देते हैं. इसकी क्षमता 10 मिलियन अंडा उत्पादन की होती है.
  • इंजेक्ट की प्रक्रिया से गुजरने के ठीक 12 घंटे के भीतर मछली एग रिलीज कर देती है. इसे वुडर फ्री टैंक या फिर एग प्रोडक्शन चेम्बर भी कहते हैं.
  • हेचिंग टैंक-एग प्रोडक्शन चेम्बर से कलेक्ट किए गए एग को हैचिंग टैंक में डाला जाता है. यहां 24-72 घंटे रखने पर मछली का स्पर्म प्राप्त होता है. जिसके बाद इन्हें सीमेंटेड टैंक में छोड़ देते हैं.
  • हेचिंग टैंक से कलेक्ट स्पर्म को स्पर्म कलेक्शन टैंक में डाला जाता है. यहां वे पूरी तरह मार्केटिंग के लिए तैयार हो जाते हैं. जिन्हें 3 दिनों की अवधि में मार्केट में छोड़ सकते हैं.

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