पूर्णिया:इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश आजादी की 74वीं वर्षगांठ मना रहा है. स्वराज की खातिर हंसी-खुशी वतन पर मर मिटने वाले आजादी के परवानों की कुर्बानियां आज समूचा देश याद कर रहा है. इसी क्रम में ईटीवी भारत आपको जंग-ए-आजादी की लड़ाई में कूदने वाले एक ऐसे अमर शहीद की कहानी सुनाने जा रहा है, जो महज 13 साल की उम्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' मूवमेंट में कूद पड़े और ब्रिटिश हुकूमत की गोलियों की परवाह किए बगैर बड़ी ही दिलेरी से मौत को गले लगा लिया. लेकिन यह बड़े ही अफसोस की बात है कि बलिदान के 78 साल बाद भी उनके स्मारक स्थल पर एक प्रतिमा तक नहीं लगाई जा सकी है.
जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिलाकर रख दी
दरसअल, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्षकाल के पन्ने पलटे तो ऐसे सैकड़ों वीर सपूत हैं. जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेते हुए अपने प्राण वतन के वास्ते न्योछावर कर दिया. लेकिन 1942 के महात्मा गांधी के 'क्विट इंडिया' मूवमेंट के दौरान सीमांचल की सरजमीं से एक ऐसा वीर बहादुर बालक मुखर होकर निकला, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़े पूरी तरह हिलाकर रख दी.
ध्रुव कुंडू : सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी
असंख्य साहस से अंग्रेजों की नाक में दम करने वाला वीर बहादुर बालक कोई और नहीं था, बल्कि उस दौर के बड़े स्वतंत्रता सेनानी और पेशे से प्रख्यात चिकित्सक डॉ. किशोरी लाल कुंडू के छोटे बेटे ध्रुव कुंडू थे. कहते हैं 13 वर्षीय ध्रुव कुंडू इतने बहादुर थे कि एक दिन स्कूल जाते हुए उनकी नजर ब्रिटिश सिपाहियों के डंडे की मार से चीख रहे किसानों और मजदूरों पड़ गई. जिसके बाद ध्रुव कुंडू ने रास्ते पर पड़े पत्थर से हमला कर ब्रिटिश सिपाही को लहूलुहान कर भागने पर विवश कर दिया.
महज 13 साल की उम्र में अंग्रेजों के छुड़ाए छक्के
प्रख्यात साहित्यकार भोला नाथ आलोक 1942 के स्वर्णिम दौर को याद करते हुए कहते हैं कि जिस उम्र में बच्चे खेलने-कूदने में मस्त रहते हैं. उस उम्र में कुंडू महात्मा गांधी के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन में कूद पड़े. 1942 का यह आंदोलन 13 अगस्त तक आजादी की लहर बनकर फैल चुकी थी. आजादी के परवानों की एक टोली ने तब कटिहार के सब रजिस्ट्रार कार्यालय ध्वस्त कर अंग्रेजी हुकूमत वाली सरकारी दफ्तरों से ब्रिटिश झंडे फेंके और सरकारी दफ्तरों पर भारतीय तिरंगा लहराना शुरू कर दिया. आजादी के परवानों की टोली मुंसिफ कोर्ट पर भारतीय झंडा फहराने के बाद कोतवाली थाने पर झंडा फहराने निकल पड़े थे.
हंसी-खुशी वतन के लिए खा ली सीने में गोली
पेशे से वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम वर्मा बताते हैं कि इसकी सूचना पहले ही अंग्रेजी हुकूमत के अधीन शासन को लग चुकी थी. जिसके बाद सिपाहियों ने हाथों में तिरंगे थामे आजादी के परवानों को लौटने को कहा. सिपाहियों की तनी बंदूके देख सब लोग तो पीछे हट गए. लेकिन हाथ में तिरंगा लिए 13 वर्षीय कुंडू पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ते चले गए. कुंडू ने कहा -'वीरों के पैर वतन पर मर मिटने के लिए आगे बढ़ते हैं वापस लौटने के लिए नहीं'. इस पर ब्रिटिश हुकूमत के अधीन शासन ने उनके ऊपर गोलियां चला दी. इसमें एक गोली उनके सीने में जा लगी.
15 अगस्त को किए गए सुपुर्दे खाक
वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम वर्मा ने बताया कि जिसके बाद आनन-फानन में उन्हें इलाज के लिए पूर्णिया सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन 15 अगस्त 1942 को सुबह होते-होते उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. जिसके बाद अमर शहीद कुंडू की अंतिम यात्रा में लाखों का हुजूम उमड़ पड़ा. वहीं जिन स्थलों पर शव को दर्शनार्थ रखे गए, ऐसे स्थल वाटिका और पार्क के तौर पर विकसित कर दिए गए. शहर के वनभाग से बहने वाली काली कोसी स्थल पर अमर शहीद ध्रुव कुंडू को सुपुर्दे खाक किया गया. वहां शहीद ध्रुव कुंडू का स्मारक विकसित किया गया.
शहीदों के मजारों पर नहीं लग रहे मेले
शहर के जाने-माने समाजसेवी और जयप्रकाश मूवमेंट के दिलीप कुमार दीपक अमर शहीद ध्रुव कुंडू के बलिदान दिवस को राजकीय समारोह के रूप में मनाए जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि बलिदान के 78 साल होने को हैं, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण आज तलक उनके स्मारक पर प्रतिमा खड़ी करना तो बेहद दूर की बात है. नियमित साफ-सफाई और रंग-रोगन तक नहीं कराया जा रहा. वहीं प्रशासनिक उदासीनता के कारण स्मारक से लेकर वाटिका और पार्क तक बदहाल अवस्था में हैं.