पूर्णिया:बिहार में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बिहार सरकार ने गवर्मेंट अस्पतालों के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सेवाएं शुरू करवाई. इसी कड़ी में जिले में 13 निजी अस्पतालों का चयन किया गया. जहां 50 फीसदी बेड कोरोना मरीजों के लिए सुरक्षित रखे गए. लेकिन इस कोरोना काल में मरीज प्राइवेट अस्पतालों की जगह सरकारी अस्पताल की ओर रूख कर रहे हैं.
हर वक्त मरीजों से भरे रहने वाले निजी अस्पतालों के कोरोना काल में हालात बदले हुए हैं. अस्पतालों के अधिकांश बेड खाली पड़े हैं. निजी अस्पताल संचालकों की मानें तो वे इन दिनों भीषण संकट से जूझ रहे हैं.
कोरोना काल में खाली रहते हैं प्राइवेट अस्पतालों के बेड 13 निजी अस्पतालों का चयन
बता दें कि कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिले में सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल धमदाहा और बनमनखी को कोविड केयर सेंटर के तौर पर विकसित किया गया. जहां कोरोना मरीजों के लिए 210 बेड की सुविधा उपलब्ध कराई गई. इसके ठीक बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर जारी दिशा- निर्देशों को अमल में लाते हुए जिला प्रशासन ने 13 निजी अस्पतालों का चयन किया. जहां सप्ताह भर के भीतर ही कोविड मरीजों के इलाज के लिए सेवाएं शुरू कर दी गई. हालांकि इन सब के बीच सरकार की ओर से दी जाने वाली कोविड क्योर की निःशुल्क सेवा और होम आइसलोशन जैसे विकल्प के बाद बहुत ही कम संख्या में कोरोना मरीज प्राइवेट अस्पतालों में एडमिट हो रहे हैं.
बेड पड़े हैं खाली
कोरोना मरीजों के इलाज के लिए चयनित अस्पतालों में मैक्स 7, फातमा हॉस्पिटल, ग्लैक्सी हर्ट हॉस्पिटल, मां पंचादेवी हॉस्पिटल, सहयोग नर्सिंग होम, हर्ष हॉस्पिटल, क्रिस्चियन मेडिकल सेंटर, शिवम हॉस्पिटल, केके हॉस्पिटल, सद्भावना हॉस्पिटल, यासीन क्लीनिक, अलसफा हॉस्पिटल और एडवांस अर्थीपेडिक स्पिन सेंटर हैं. इन अस्पतालों में सरकारी निर्देश के बाद सप्ताह भर के अंदर इलाज शुरू किया गया. लेकिन अभी के समय में काफी बेड खाली पड़े हैं. फीस और अन्य तरह के शुल्क को लेकर यहां मरीज नहीं आना चाहते.
कागजी हैं कोविड इलाज का रेट, मनमाना वसूल रहे संचालक
ईटीवी भारत से बात करते हुए स्थानीय सैय्यद तहसीन अली ने बताया कि कोविड केयर सेंटर में वैसे ही मरीज एडमिट होना पसंद नहीं करते हैं. कुछ लोग ही है जो निजी अस्पताल जाते हैं. जहां 65 सौ रुपये तो तय दर है लेकिन ट्रीटमेंट और क्योर के नाम पर मनमाना रेट वसूला जाता है. इसीलिए लोग संक्रमित होने के बाद सरकारी अस्पताल या फिर होम आइसोलेट होना बेहतर समझते हैं.
संवाददाता आकाश कुमार की रिपोर्ट छोटे शहरों में फेल हुआ प्राइवेट हॉस्पिटल का कोविड मॉडल
निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों का फ्री में इलाज और होम आइसोलेशन के विकल्प होने की वजह से लोग प्रइवेट अस्पतालों में आना नहीं चाहते. मरीज के परिजन उन्हें इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ही ले जाना सही समझते हैं. इसी वजह से छोटे शहरों में प्राइवेट अस्पताल में कोरोना के इलाज कराने का मॉडल फेल हो गया. सारी फैसिलिटीज होने के बावजूद निजी अस्पतालों के एंट्री रजिस्टर और बेड दोनों ही खाली पड़े हैं. आईएमए प्रेसिडेंट के मुताबिक महीने भर में महज 6 कोविड मरीज ही मैक्स 7 में एडमिट हुए हैं.