पूर्णिया: आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए बजट तो बढ़ा दिया. लेकिन अभी भी जिले में कुछ ऐसे आयुर्वेद अस्पताल हैं जो काफी जर्जर हैं. ऐसे अस्पतालों तक लोगों की पहुंच भी नहीं है. ये आयुष अस्पताल आम लोगों की पहुंच से दूर, किसी ऐसी जगह पर बने हुए हैं, जहां कोई जाना नहीं चाहता. ऐसा कुछ हाल पूर्णिया जिले के औषधालयों का है. यहां कई जगह न तो इनके भवन हैं, और न ही इसके लिए प्रचार-प्रसार ही किया जाता है. जो लोग यहां पहुंचते भी हैं तो इन अस्पतालों की बदहाली देखकर वो भी दुबारा नहीं लौटते.
इसी भवन में चलता है औषधालय प्राकृतिक औषधालय को इलाज की जरूरत
पॉलिटेक्निक चौक इलाके में स्थित संकरी गली में स्थित 'आयुर्वेद सह आयुष चिकित्सालय' के हालात इतने बदतर हैं, जैसे इसे खुद किसी वैद्य के इलाज की जरूरत है. औषधालय के चिकित्सक डॉ नंद कुमार कहते हैं कि- कोरोना से बचाव में आयुर्वेद ढाल साबित हो रहा है. वहीं इसे देखते हुए लोगों में भी इस चिकित्सा पद्धति के प्रति विश्वास बढ़ा है. आयुर्वेदिक इलाज से संक्रमित मरीजों के शरीर की इम्यूनिटी पावर बढ़ाकर उन्हें ठीक किया जा रहा है. ये बेहद दुर्भाग्य की बात है कि जिले में अवस्थित 60 वर्ष पुराने आयुर्वेदिक चिकित्सालय की हालत बेहद खराब है.
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किराए के मकान में चल रहा आयुर्वेदिक औषधालय
स्थानीय बताते हैं कि बीते 60 वर्षों से इस औषधालय को अपना भवन तक नसीब नहीं हो सका है. दशकों से यह औषधालय किराए के मकान में चल रहा है. बदहाली ऐसी की बिजली के भारी बकाए के कारण बिजली विभाग ने बिजली तक काट दी है. वहीं औषधालय के पास ही इलाके के सारे कूड़े फेंके जाते हैं. जो बीमारियों को ठीक करने के बजाए उन्हें बढ़ा रही है.
औषधालय के बगल में फेंका जाता है कचरा कौन करेगा प्राकृतिक औषधालय का इलाज
स्थानीय बताते हैं कि आज भी लोगों की पहली पसंद आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है. आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली आज भी एलोपैथ से कहीं ज्यादा कारगर है. यह सस्ती व असरकारक है. वहीं इसकी दवाओं के भी कोई साइडइफेक्ट नहीं होते. फिर भी लोग इस चिकित्सा प्रणाली को अपनाने में क्यों हिचकते हैं, ये बड़ा सवाल है. इस औषधालय में बमुश्किल, 10 पर्चियां दिनभर में कट पाती हैं. इतना ही नहीं एक साल से यह औषधालय चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है. पिछले साल से ही यूनानी चिकित्सक छुट्टी पर हैं.
अस्पताल में लोगों से बात करते डॉक्टर कायाकल्प की बाट जोह रहा राजकीय औषधालय
वहीं कुछ ऐसा ही हाल धमदाहा स्थित राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय का है. चिकित्सकों की भारी कमी से जूझता यह चिकित्सालय महीने में तीन-चार दिन ही खुलता है. कहते हैं चिकित्सा केंद्र में पदस्थापित वैद्य और डॉक्टर काफी अनुभवी हुआ करते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. अब इस चिकित्सालय में बड़े-बड़े जंगली पौधे ऊग आए हैं. चिकित्सालय के कमरे में गंदगी भरी रहती है. तस्वीरों को देखकर आपको लगेगा कि इसे तो खुद ही इलाज की जरूरत है.
औषधालय के जोनल मेडिकल ऑफिसर डॉ. इंतसार अंसारी तो ये है असल माजरा
औषधालय के जोनल मेडिकल ऑफिसर डॉ. इंतसार अंसारी ने बताया कि इसे सदर अस्पताल परिसर में शिफ्ट करने का प्रस्ताव पिछले दो साल से अधर में अटका है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से आयुर्वेदिक सह आयुष औषधालय को सदर अस्पताल परिसर में शिफ्ट करने की चिट्ठी पड़ी हुई है. लेकिन सदर अस्पताल प्रशासन इसे लेकर संजीदा नहीं दिखाई दे रहा है. यही वजह है कि जिले के लोगों को आयुर्वेद चिकित्सा का लाभ नहीं मिल पा रहा.
पूर्णिया आयुष औषधालय का हाल 40 फीसद बढ़ा आयुष मंत्रालय का बजट
दरअसल, कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के बीच भारत समेंत दुनिया भर के मुल्क वैक्सीन को लेकर रिसर्च में डूबे हुए थे. तब आपदा की इस घड़ी में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति ढाल बनकर लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रही थी. केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी वित्तीय बजट 2021-22 के लिए आयुष मंत्रालय को 2970.30 करोड़ रुपए आवंटित किए. जाहिर तौर पर यह रकम आयुष मंत्रालय को आवंटित किए गए. 2122.08 करोड रुपए से करीब 40% अधिक है.
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सिस्टम की अनदेखी से बदहाल?
आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक रही है. एलोपैथ के बनिस्पत आयुर्वेद काफी सस्ता होने की वजह से आज भी देश की अधिकांश आबादी की पहली पसंद आयुर्विज्ञान चिकित्सा प्रणाली ही है. लिहाजा इसे दोबारा प्रचलन में लाने के लिए बजट में आयुष मंत्रालय को शामिल किया गया. वहीं पिछले वित्तीय बजट को ही देखें तो आयुष मंत्रालय के बजट में इस बार करीब 40 फीसद की बढ़ोतरी की गयी. हालांकि इन सब के बीच बड़ी हैरत की बात है कि जिले का आयुर्वेद सह आयुष चिकित्सालय सरकार व सिस्टम की अनदेखी के कारण अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है.
औषधालय में फेंकी पड़ी हैं दवाएं