पूर्णिया: सीमांचल के मंडियों से हैरत करने वाली खबर सामने आई है. मोटे चावलों की बहुतायत खेती के लिए सीमांचल मशहूर है. इस क्षेत्र के मोटे चावल से नेपाल और भूटान के रास्ते चीन, बांग्लादेश और वियतनाम में शराब बनाई जा रही है. सीमांचल में लगातार मोटे चावल की कीमतों में उछाल देखी जा रही है. इसके पीछे भी चावल व्यापारी और कारोबारी अहम वजह मान रहे हैं. हालांकि, जिला प्रशासन ने पूरे मामले पर अपनी सफाई देते हुए इसे पूरी तरह भ्रामक बताया है.
इन मंडियों में बेचे जाते हैं मोटे चावल
सहकारिता विभाग की मानें तो जिले में 65 फीसद से अधिक भूमि पर मोटे चावल ही उपजाए जाते हैं. जिसे किसान, पैक्सों में या एशिया की बड़ी मंडी गुलाबबाग में बेचते हैं. वहीं, हरदा और कसबा जैसी दूसरी मंडियों में जाकर बेंचते हैं.
पूर्णिया: सीमांचल के चावल से सीमावर्ती मुल्कों में बन रही शराब
सीमांचल के मोटे चावल से भूटान, चीन और वियतनाम में शराब बनायी जा रही है. यहां के खेतों में मोटे चावल उपजाए जाते हैं. साथ ही राशन की दुकानों में भी मोटे चावल ही मिल रहे हैं. राशन की दुकानों से चावल की कालाबाजारी काफी होती है. इसकी मुख्य वजह चीन, भूटान में इसकी लगातार बढ़ती मांग है.
राशन दुकानों के चावल की कालाबाजारी परवान पर
गुलाबबाग के चावल व्यपारी बताते हैं कि पठारी इलाके के लोग इस तरह के मोटे चावल को भी महंगे दामों पर खरीद कर खाते हैं. लिहाजा प्रतिदिन दर्जनों ट्रक मोटे चावल की खेप लेकर असम, पश्चिम बंगाल समेत दूसरे राज्यों के लिए निकलती हैं. इसमें अधिकांश जन वितरण प्रणाली के दुकानदारों के द्वारा दिए जाने वाले चावल होते हैं. लोग मोटा चावल खाना पसंद नहीं करते हैं. ऐसे में इसे कम दाम में खरीद ऊंचे दामों में बेचा जाता है. यही वजह है कि सीमांचल में चावल की कालाबाजारी इन दिनों परवान पर है. जिसके चलते कसबा, जलालगढ़ और हरदा जैसी मंडियां जन वितरण प्रणाली के चावल के कालाबाजारी का मुख्य अड्डा बन गई हैं. यहां सरकारी चावल की कालाबाजारी धड़ल्ले से किया जा रहा है.