बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी शुरू पटनाः बिहार की सियासत के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं. मिशन 2024 को लेकर राजनीतिक दलों ने कमर कस लिया है. पहले भाजपा ने सीमांचल से मिशन का आगाज किया तो अब महागठबंधन नेता भी सीमांचल की धरती से मिशन 2024 में लग गए हैं. दोनों पार्टियां की रैली एक दिन सीमांचल में होगी, जिसको लेकर BJP महागठबंधन वार किया है. कहा कि भाजपा का देखा-देखी से महागठबंधन ऐसा कर रही है लेकिन उससे कुछ नहीं होने वाला है.
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दोनों पार्टी के लिए पूर्णिया बना बैटल ग्राउंडःबिहार में मिशन 2024 की तैयारी शुरू हो चुकी है. राजनीतिक दलों ने रणनीतियों को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है. भाजपा पहले मिशन 2024 का आगाज सीमांचल से कर चुकी है. अमित शाह ने अक्टूबर माह में बड़ी रैली कर महागठबंधन नेताओं को चौंका दिया था. अब जबकि सीएम नीतीश कुमार के लिए पूरे तौर पर NDA में नो एंट्री का बोर्ड लग गया है. अब महागठबंधन नेता भी भाजपा से दो-दो हाथ के लिए तैयार हैं.
25 फरवरी को अमित साह पटना मेंः महागठबंधन की ओर से भी 25 फरवरी को पूर्णिया में मिशन 2024 का आगाज किया जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने पहले से ही किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती के स्मृति में किसान समागम का आयोजन किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित साह कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं. 25 फरवरी को जहां अमित शाह राजधानी पटना में हुंकार भरेंगे वहीं, महागठबंधन नेता पूर्णिया में एकजुटता दिखा कर शक्ति प्रदर्शन करेंगे. अक्टूबर में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्णिया में बड़ी रैली की थी. अमित शाह ने औपचारिक तौर पर सीमांचल से मिशन 2024 का आगाज किया था.
"अमित शाह के प्रस्तावित दौरे से महागठबंधन खेमे में डर समा गया है. जानबूझकर एक ही तारीख को कार्यक्रम रखा गया है. जब बिहार में अमित शाह होंगे तो भीड़ उनके नाम पर उमड़ पड़ेगी, जिससे महागठबंधन को निराशा हाथ लगने वाली है. इसलिए देखा देखी से महागठबंधन सीमांचल में कार्यक्रम करने जा रही है."-अरविंद सिंह, भाजपा प्रवक्ता
महागठबंधन के लिए सीमांचल बड़ी चुनौतीःएक ओर जहां अमित शाह ने पसमांदा सियासत को धार देने की कोशिश की थी तो हिंदू वोट बैंक को भी एकजुट करने की कवायद की गई थी. महागठबंधन ने भी सीमांचल को ही मिशन 2024 के लिए बैटलग्राउंड बनाया है. पूर्णिया में 25 फरवरी को महागठबंधन नेता बड़ी रैली कर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश करेंगे. महागठबंधन के लिए सीमांचल बड़ी चुनौती है. असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी AIMIM ने सीमांचल में पिछले विधानसभा चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी.
सीमांचल से मिशन 2024 का आगाजाःओवैसी की पार्टी को जहां 5 विधानसभा सीटें मिली थी, वहीं 25 से 30 सीटों पर राजद को नुकसान हुआ था. महागठबंधन नेता जहां सीमांचल की धरती से ओवैसी फैक्टर को भी न्यूट्रलाइज करने के लिए जद्दोजहद करेंगे. वहीं, राजद अगड़ी पिछड़ी सियासत को धार देने की कोशिश करेगी. सीमांचल इलाके में पिछड़े मुसलमानों की आबादी 70% से ज्यादा है. इसलिए दोनों पार्टी मिशन 2024 का आगाजा सीमांचल से करना चाहती है.
"सीमांचल से महागठबंधन की एकजुटता दिखेगी और हमारे नेता ने कहा है कि 2014 में जो आए थे 2024 में नहीं आएंगे. इसे लेकर हम पूरी तरह तैयार हैं. रैली के जरिए हम संदेश देने की कोशिश करेंगे कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है. गठबंधन के दलों के साथ सीमांचल की जनता है."-डॉ सुनील, जदयू प्रवक्ता
विपक्षी एकजुटता संभवःरैली कर महागठबंधन नेता देश भर में यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि बिहार से ही विपक्षी एकजुटता संभव है. यहीं से नरेंद्र मोदी को चुनौती दी जा सकती है. बीजेपी के प्लान को भी ध्वस्त करना महागठबंधन नेताओं के समक्ष चुनौती होगी. जिस दिन अमित शाह की सभा है उसी दिन रैली की तिथि मुकर्रर करने का साफ अर्थ है कि महागठबंधन नेता अब सीधे-सीधे चुनौती देने के मूड में हैं. मीडिया की सुर्खियां बनने की भी दोनों गठबंधन में होड़ जैसी स्थिति है.
"सीमांचल से हम अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं. भाजपा के इशारे पर कुछ दल वहां गतिविधियां चला रही है, लेकिन वहां के लोगों ने समझ लिया है कि महागठबंधन अल्पसंख्यक का सबसे बड़ा हिमायती है. यूपीए के सरकार के समय उन इलाकों में सबसे ज्यादा काम हुए थे जो लोग बगैर एयरपोर्ट बने भाषण देकर चले गए उनके बहकावे में वहां की जनता आने वाली नहीं है."- एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता
"सीमांचल दोनों ही गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है. भाजपा जहां पसमांदा वोट को साधना चाहती है वहीं, महागठबंधन के लिए ओवैसी बड़ी चुनौती है. सीमांचल को तेजस्वी साध नहीं पाए थे. ओवैसी के वजह से राजद को बड़ा नुकसान हुआ था. महागठबंधन नेताओं के समक्ष चुनौती यह भी होगी कि सीमांचल में ओवैसी और भाजपा से कैसे मुकाबला किया जाए. रैली में महागठबंधन नेता यह भी साबित करने की कोशिश करेंगे कि जन समर्थन भाजपा के साथ नहीं हमारे साथ हैं."-डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक