पूर्णिया: कोरोना काल में हर किसी पर गहरा असर पड़ा है. फिर चाहे इंसानी जीवन की बात हो या फिर व्यपार या रोजगार. इंसानी स्वास्थ्य के साथ साथ रोजगार के तमाम अवसरों की सांस अटका दी है. वहीं इसका सबसे अधिक असर ऐसे मौसमी रोजगार और उन वर्करों पर कहीं अधिक पड़ा है, जो बेहद मामूली तनख्वाह पर मौसमी बैंडपार्टियों में काम करते हैं. वहीं साल के 8 महीने इन धंधों के पूरी तरह ठप रहने के कारण ऐसे वर्करों के लिए अब भी दो जून की रोटी तक जुटाना बेहद मुश्किल रहा है.
भूखे पेट कैसे गूंजेगे शादियों में ढ़ोल-ताशे
शहर के लाइन बाजार व गुलाबबाग जैसे मार्केट में दो दर्जन से अधिक बैंड-बाजा और ढ़ोल-ताशों की दुकान है. जनता कर्फ्यू के बाद से ऐसे रोजगार मध्य नवंबर तक खासे प्रभावित रहें. ऐसे में बैंड बाजे के रोजगार के साथ ही यहां काम करने वाले 1500 से अधिक बैंड कर्मीयों के सामने दो जून की रोटी जुटाने की गहरी समस्या पैदा हो गई.
मौसमी बैंड-बाजे के रोजगार पर कोरोना की मार
इस बाबत ईटीवी भारत की टीम बैंड बाजे से जुड़े रोजगार व इससे जुड़े कर्मियों पर हुए लॉकडाउन इफ़ेक्ट जानने लाइन बाजार व गुलाबबाग जैसे इलाकों में पहुंची. ईटीवी भारत से बात करते हुए हिंदुस्तान बैंड ब्रास के मालिक बताते हैं कि कोरोना काल में सबसे अधिक कोई रोजगार प्रभावित हुआ तो वह है मौसमी वैवाहिक कार्यक्रमों पर टिका बैंड बाजे का रोजगार. मामूली मुनाफे पर जुड़े होने के कारण यह रोजगार कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभावित है. कोरोना संक्रमण के कारण साल के 8 महीने ये रोजगार पूरी तरह चौपट रहा.