पूर्णियाः किसी जमाने में गांधी की संस्थाओं में सर्वोपरि रहा रानीपतरा सर्वोदय आश्रम इन दिनों बदहाली के आंसू बहा रहा है. 1934 के प्रलयकारी भूकंप के दौरान बापू ने यहीं से भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान की अपील की थी. विनोबा भावे ने तो यहां रहकर भूदान और ग्रामदान परंपरा की शुरुआत की थी. लेकिन आज ये अनमोल धरोहर खंडहर में तबदील हो चुकी है.
आज भी बापू की यादें हो जाती हैं ताजा
जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा सर्वोदय आश्रम आकर आज भी बापू की यादों को ताजा किया जा सकता है. इस संस्थान में रचनात्मक सहयोग के लिए इस सर्वोदय आश्रम का समूचे देश में सर्वोपरि स्थान था. लेकिन समय बीतने के साथ ही सरकार और सिस्टम की बेरूखी के कारण बापू और विनोबा भावे की बुनियाद अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है.
1934 के भूकंप के दौरान यहां पहुंचे थे बापू
आश्रम की देखरेख करते हुए 6 दशक गुजार चुके 80 वर्षीय सारदानंद मिश्र बताते हैं- बापू 1934 की भयानक भूकंप त्रासदी के दौरान यहां पंहुचे थे. वीरान पड़ा वह चबूतरा आज भी यहां मौजूद है. जहां खड़े होकर बापू ने भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान करने की अपील की थी. सारदानंद मिश्र बताते हैं कि उन्होंने सीमांचल-कोसी समेत दो दर्जन जिलों से आए लाखों लोगों को संबोधित करते हुए घण्टे भर में लाखों का चंदा इकट्ठा किया था.
आश्रम से होता था 1.5 करोड़ का कारोबार
आश्रम से जोड़े लोगों की मानें तो 80 के दशक में यानी कि 1984-85 तक इस आश्रम का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ तक का रहा. तब यह आश्रम पूरे सीमांचल और कोसी में खादी ग्रामोद्योग का सेंट्रल गोदाम था. रेशम ,खादी वस्त्र, चरखा, जुट ,कपास ,चर्म, बेंत, तेल पेराई समेत यहां से कुल 22 छोटे-बड़े उद्योग चलते थे. कहते हैं कि इसकी गुणवत्ता के कायल केवल बिहार में ही नहीं बल्कि काश्मीर ,राजस्थान ,पंजाब ,उत्तरप्रदेश जैसे दर्जनों राज्य थे. हजारों लोगों को यहां रोजगार मिला करता था.
खंडहर बन गया सर्वोदय आश्रम
मेंटेनेंस की कमी से दीवारें जर्जर और खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं. इस दीवार पर अब गोईठा सुखाया करते हैं. वहीं दस्तावेज ,लेखा व उधोग सेंटरों में रखे चरखे और दूसरे देशी मशीन पूरी तरह रद्दी हो चुकी हैं. आश्रम की ज्यादातर दीवारों की पपड़ियां छूट चुकी हैं. वहीं, सालों से साफ-सफाई नहीं होने के चलते कमरे में कचरे और मकड़ियों के जाल की भरमार है.