पटना: शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) में दूर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है. नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) के लिए जाना जाता है. जिन्हें शास्त्रों में अपर्णा (Aparna) भी कहा गया है. मां ब्रह्मचारिणी का दूसरा नाम अपर्णा भी है. इस दिन उन्हीं की पूजा-अर्चना की जाती है. मां के नाम में ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली. इससे ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली.
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देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम बढ़ता है. मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्ष माला और कमंडल सुसज्जित हैं. मां के इस स्वरूप की पूजा-अर्चना भक्त मंत्र और जाप करके करते हैं. शास्त्रों और वेद पुराणों के मुताबिक, भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने वर्षों तक तपस्या की. अंत में उनकी तपस्या सफल हुई. माता ब्रह्मचारिणी की कृपा से सिद्धी की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अराधना करने से भक्तों के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं.
इस दिन सुबह उठकर के नित्य कर्मों से निवृत्त होकर के स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके घर में या मंदिर में आसन बैठकर मां की पूजा आराधना करते हैं. उन्हें फूल, अक्षत, रोली और चंदन आदि अर्पित करते हैं. इस दिन मां को दूध, दही, घी और मधु शक्कर से स्नान कराने के उपरांत भोग लगाते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि माता के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा आज की जाती है. माता के इस स्वरूप की जितनी व्याख्यान की जाए वह कम है.
माता ब्रह्मचारिणी का अद्भुत महिमा है. माता ब्रह्मचारिणी एक हाथ में कमंडल है, एक हाथ में पुष्प है और माता अभय मुद्रा में है. अभय मुद्रा में होने के कारण भक्तों को माता मनवांछित फल देती है. ब्रह्मचारिणी माता का वस्त्र सवेत है. माता को हरा रंग बेहद ही पसंद है, माता के भोग में दूध मिश्री के साथ-साथ भक्त नाना प्रकार फल मिष्ठान का भोग लगा सकते हैं. लेकिन मिश्री और दूध का भोग भक्त जरूर लगाएं. कथा के अनुसार या कहा जाता है की माता पार्वती भी ब्रह्मचारिणी की पूजा की थी और भगवान शिव को पाई थी.
आचार्य ने बताया कि बहुत सारे श्रद्धालु भक्त फलाहार का सेवन करके माता के 9 रूपों का पूजा करते हैं और कई भक्तों सेंधा नमक, अरवा, चावल, दूध और रोटी एक समय में भोजन करके ही पूजा आराधना माता का करते हैं.
मां ब्रह्मचारिणी पूजन के मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।