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लॉकडाउन: भूखे-प्यासे मजदूर पैदल ही अपने गंतव्यों का नाप रहे हैं रास्ता - Workers have to travel on foot

सूबे के अन्य जनपदों दरभंगा, भागलपुर, किशनगंज, औरंगाबाद और जहानाबाद से आए तमाम मजदूर जिले में रहकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. वहीं, लॉकडाउन में फैक्ट्रियां बंद होने से इनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है.

पटना
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Published : Mar 27, 2020, 12:29 PM IST

पटना:लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में यातायात के सभी साधन पूरी तरह से बंद कर दिए गए हैं. जिसे लेकर इन दिनों सड़कों पर पैदल मजदूरों के जत्थे नजर आ रहे हैं. दूरदराज के मजदूर पैदल ही अपने गंतव्यों का रास्ता नाप रहे हैं. आलम यह है कि हाथों में बैग और कंधों पर छोटे बच्चों को लादे मजदूर काफी असहाय नजह आ रहे हैं. इसी क्रम में शुक्रवार को बाढ़ की सड़कों पर राज्य के कई हिस्सों के मजदूर पलायन करते दिखे.

बाढ़ की सड़कों पर मजदूर यात्री

सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल तय रहे हैं मजदूर
गौरतलब है कि सूबे के अन्य जनपदों दरभंगा, भागलपुर, किशनगंज, औरंगाबाद और जहानाबाद से आए तमाम मजदूर जिले में रहकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. वहीं, लॉकडाउन में फैक्ट्रियां बंद होने से इनके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है. इनके पास न तो काम और न ही खाने-पीने के सामान खरीदने के लिए पैसे बचे हैं. जिस कारण सभी मजदूर अपने घरों के लिए पलायन को मजबूर हैं. मजदूर पैदल ही भूखे-प्यासे सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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झकझोर देने वाला मजदूरों का दर्द
पटना से पैदल पलायन कर रहे बाढ़ की सड़कों से गुजरने वाले मजदूरों का दर्द झकझोर देने वाला है. बिहार के दरभंगा निवासी मजदूर का कहना है कि वह परिवार के साथ पटना में रहकर मेहनत मजदूरी कर गुजर बसर कर रहे थे. कोरोना की वजह से ठेकेदार ने मकान निर्माण कार्य बंद करा दिया है. हमारे सामने खाने पीने का संकट हो गया. लोगों से मदद मांगी तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए. घर लौटने के सिवा हमारे सामने कोई अन्य विकल्प ही नहीं बचा.

'घर जाना ही एकमात्र विकल्प'
वहीं, भागलपुर निवासी मजदूर सुरेश ने बताया कि वह पटना में मजदूरी करते थे. लॉक डाउन की वजह से पुलिस वाले कहीं रुकने नहीं दे रहे हैं. बसें और ट्रेनें बंद हैं. जिसकी वजह से वह अपने घर पैदल ही लौट रहे हैं. बिहार के मोतिहारी निवासी मजदूर का कहना है कि वह पटना में रेहड़ी लगाते हैं. काम और न ही कुछ खाने-पीने को मिल रहा है. घर जाना ही एकमात्र विकल्प बचा है.

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