पटना:राजद नेता तेजस्वी यादव के जाति आधारित जनगणना(Bihar Caste Census) की मांग को लेकर पटना से दिल्ली तक पैदल मार्च (Tejashwi foot march for caste census) निकालने का ऐलान करने के साथ ही सियासत तेज हो गई है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ऐसा निर्णय लेने के लिए कुछ अहम कारण हैं. इनमें से तीन कारण प्रमुख हैं, जिसके कारण तेजस्वी ने यह निर्णय लिया है.
पढ़ें: जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी के पैदल मार्च पर गरमायी सियासत, JDU ने की श्वेत पत्र की मांग
इन कारणों से तेजस्वी ने किया पैदल मार्च का ऐलान:जातीय जनगणना के मुद्दे पर सीएम नीतीश कुमार के तेवर नरम पड़ चुके हैं. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर हार मान ली है और अब मामला बीजेपी के पाले में है. वहीं दूसरा और बड़ा कारण प्रशांत किशोर को माना जा रहा है. प्रशांत किशोर ने भी 2 अक्टूबर से पूरे बिहार में पद यात्रा शुरू करने की घोषणा की थी. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण नित्यानंद राय का उदय है, जो केंद्रीय राज्य मंत्री हैं. उन्होंने घोषणा की थी जाति आधारित जनगणना नहीं हो सकती. तेजस्वी दूसरों से ज्यादा स्कोर करने के लिए तीनों मुद्दों पर निशाना साध रहे हैं.
जातीय जनगणना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तैयारी:दरअसल नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की तैयारी कर ली है. उन्होंने जातीय जनगणना कराने की मांग को लेकर पटना से दिल्ली तक पैदल यात्रा करने का ऐलान किया है. सोमवार को मीडिया से मुखातिब होते हुए तेजस्वी ने यह बात कही है. तेजस्वी ने कहा कि जातीय जनगणना को लेकर आरजेडी लगातार मांग करता रहा है. आरजेडी के दबाव के कारण ही दो बार बिहार विधानसभा और विधान परिषद से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा गया है, मगर इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है, जिसके लिए वह पटना से दिल्ली तक पैदल यात्रा करेंगे.
नीतीश कुमार भी खुल कर नहीं दे रहे साथ:बिहार में जातीय जनगणना कोई नया विषय नहीं है. इस मुद्दे को लेकर सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात भी की थी. जिसके बाद नीतीश कुमार ने कहा था कुछ दिन इंतजार करेंगे. अगर कोई फैसला नहीं होता है तो अपने खर्च पर ही बिहार में जातीय जनगणना करायी जा सकती है. हालांकि प्रदेश के लगातार बदलते राजनीति समीकरण में नीतीश कुमार थोड़े हल्के स्वर में जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं. जबकि बीजेपी ने अपना स्टैंड पहले ही साफ कर दिया है. केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में यह बयान भी दिया था कि जातीय जनगणना अभी सम्भव नहीं है.
राजद कर रहा लोगों को गोलबंद: वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का कहना है कि जातीय जनगणना के लिए एक प्रतिनिधिमंडल पीएम से मिलने भी गया था. जातीय जनगणना कराने के मुद्दे पर कुछ तकनीकी पेंच है. हालांकि इस पर केंद्र सरकार ने पहले ही अपना स्पष्टीकरण जारी कर दिया है. नित्यानंद राय ने भी इस बात को दोहरा दिया कि जातीय जनगणना कराने में बाधाएं क्या हैं. हां केंद्र सरकार ने एक छूट जरूर दिया कि अगर राज्य सरकार चाहे अपने स्तर पर इस जनगणना को करा सकती है. जिस राजनीतिक लाभ के लिए जातीय जनगणना की बात कह करके राजद लोगों को गोलबंद करने की कोशिश कर रहा है, वह उत्तर प्रदेश में नाकाम हो चुका है.
यूपी में नहीं चला था ये फॉर्मूला: एक्सपर्ट की मानें तो अखिलेश यादव ने इस बार संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में यह वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो जातीय जनगणना कराई जाएगी. लेकिन लोगों का रुझान क्या था यह सबके सामने है. जातीय जनगणना का मुद्दा अब प्रासंगिक नहीं रह गया है. जहां समावेशी व समेकित विकास की बात हो रही है जहां मंत्रिमंडल से लेकर और नीचे की नौकरियों तक दलितों पिछड़ों के लिए नीतीश कुमार ने कई कदम आगे बढ़ते काम किया है. उन्होंने महादलित , पसमांदा समाज के लिए काम किया है. इस समाज के नेताओं को राज्यसभा में भेजा. अब यह आजमाए हुए नुस्खे हैं तत्कालिक तौर पर अगर हम कहें तो यह एक राजनीतिक झुनझुना के सिवा कुछ नहीं है. इसका कोई लाभ नहीं होना है.