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बिहार की सियासत में घुल चुकी है जातिवाद, हवा को स्वच्छ करने के लिए एक और JP की जरूरत

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Published : Sep 9, 2021, 3:28 PM IST

Updated : Sep 9, 2021, 8:23 PM IST

जातिवाद बिहार की सियासत (Bihar politics) की कड़वी सच्चाई है. हर सियासी दल इसके सहारे सत्ता पाने की जुगत में लगा रहता है. जिस लोकनायक ने जात-पात छोड़ने का नारा दिया था, उनके शिष्य भी इसी रास्ते पर चलकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. इससे बाहर निकलने के लिए बिहार एक और जेपी का इंतजार कर रहा है.

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पटना:18 मार्च 1974 को पटना के गांधी मैदान से लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) ने बिहार से भ्रष्टाचार (Corruption) को मुक्त करने और गांधीवादी विचारधारा को जमीन पर उतारने के लिए छात्रों का आह्वान किया, जिसे छात्र आंदोलन (Student Movement) का नाम दिया गया, लेकिन उसके बाद से देश और बिहार की सियासत (Bihar politics) में जो बदला उसमें जेपी जो चाहते थे उसकी बुनियाद भले ही ना मजबूत हुई हो, लेकिन जेपी को चाहने वाले जिस भी तरीके को बिहार में चलाना चाहिए, वह बिहार की राजनीति में चला है.

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एक बार फिर जेपी बिहार में खोजे जा रहे हैं, क्योंकि हर कोई जेपी को लेकर नई राजनीतिक सियासत को छेड़ रहा है. लालू अपने दोस्त और समाजवादी धुरी के नेता रहे रघुवंश प्रसाद सिंह की 13 सितंबर को पुण्यतिथि मनाएंगे. रामविलास पासवान की राजनीतिक सत्ता संभालने का दावा करने वाले चिराग पासवान 12 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि मना रहे हैं, जिसके लिए पटना की सड़कों से रायसीना हिल्स तक दौड़ मची हुई है. इस बीच लालू यादव (Lalu Yadav) के बेटे (तेजप्रताप यादव) ने छात्र जनशक्ति परिषद बना दिया. नीतीश जाति की गिनती का मन बनाए बैठे हैं, लेकिन बिहार के मन में क्या है यह तो सिर्फ जेपी को पता है. अब बिहार एक और जेपी को खोज रहा है.

पहले संपूर्ण क्रांति चलाने वाले जेपी की बात कर लेते हैं, जिन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. उसमें 7 क्रांतियों को जगह दी गई थी. राजनैतिक क्रांति, आर्थिक क्रांति, सामाजिक क्रांति, सांस्कृतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, शैक्षणिक क्रांति और आध्यात्मिक क्रांति. इसके अलावा जेपी का नारा था 'जात-पात छोड़ दो तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो'. जेपी के लिए यह सिद्धांत नए बिहार को बनाने का संकल्प वाला मंत्र था, लेकिन जिन लोगों ने जेपी की विरासत को संभाला, उन्होंने जेपी के नारे को ही उलट दिया.

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जेपी के सिद्धांत जिस तरीके से बिहार में जमीन से दूर हो गए हैं, उसमें वर्तमान हकीकत यही है कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना को लेकर इंतजार कर रहे हैं. यह अलग बात है कि जेपी ने जाति को तोड़ने की बात कही थी. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने दलित और महादलित बनाकर उसे जोड़ दिया. लालू यादव ने 'भूरा बाल साफ करो' का नारा देकर के जेपी के मूल सिद्धांत को जमीन की सियासत दे दी थी. रामविलास पासवान सियासत के ऐसे मुसाफिर थे, जिनकी यात्रा सभी लोगों के साथ रही. बस वह समय जिसके साथ रहा.

अब एक नई राजनीति फिर से जन्म ले रही है, उसमें बीजेपी की सियासत गोलबंदी की मूल वजह है. समाजवाद की जिस धारा को लेकर नीतीश-लालू और रामविलास चले थे, आज वह नए सियासी रास्ते को पकड़ चुकी है, क्योंकि नीतीश की सियासत खुद नीतीश कर रहे हैं तो जाति जनगणना उनके मूल में है. लालू यादव बीमार हुए तो तेज प्रताप ने जेपी वाले आंदोलन की एक दूसरी कड़ी खड़ी की और छात्र जनशक्ति परिषद बना दिया. चिराग पासवान रामविलास पासवान की पुण्य तिथि को पटना की सड़कों से लेकर रायसीना हिल्स तक की दौड़ इसलिए भी लगा दिया क्योंकि समाजवाद और जेपी की बुनियाद के नाम पर कितने लोग इस मंच पर खड़े होते हैं यह अभी ही दिख जाएगा.

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2022 के लिए एक सियासी समीकरण देश में फ्रंट के रूप में खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. उस बुलावे में नीतीश कुमार भी हैं और दूसरे बड़े नेता भी, जाति की कमर टूटी, विकास ने जगह पकड़ा, तो ऐसे नेताओं को सियासत ने किनारे कर दिया, जो लोग सिर्फ जाति की राजनीति की पार्टी के थे. हरियाणा में होने वाली बैठक एक फ्रंट को तैयार जरूर करेगी, जिसकी एक बानगी दिल्ली तक पहुंचेगी. एकजुटता रही तो 2022 के लिए उत्तर प्रदेश से सियासत में जेपी का एक दूसरा रंग भी खड़ा होगा, क्योंकि इसमें दो राय नहीं कि जो लोग भी इस फ्रंट में हैं, वह जेपी की बुनियाद वाली राजनीति से अलग जाएंगे. हां राजनीति से अलग जाकर करेंगे यह बिल्कुल निश्चित है.

अब इस बुनियादी सियासत के बीच बिहार जिस तरह के सियासी कॉकटेल को तैयार कर रहा है, उसकी पहली परीक्षा उत्तर प्रदेश में है. जेपी प्रासंगिक हैं, जाति की गिनती है, जाति पर सियासत है, तो जेपी जाएंगे कहां? बिहार में जिस तरह की राजनीति ने फिलहाल अभी हवा पकड़ रखी है, उसमें तो बिहार जोर-जोर से यह कह रहा है कि बिहार को एक और जेपी दे दो.

Last Updated : Sep 9, 2021, 8:23 PM IST

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