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Bihar Cast Census: जातीय जनगणना पर क्यों लगी रोक, कहां है सरकार की कमजोरी, जानिए सबकुछ...

बिहार में जातीय जनगणना पर अचानक ब्रेक लग गया. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस पर रोक लगा दी. 9 मई को इम मामले में सुनवाई की जाएगी. कोर्ट में पेश की गई दलिल में कहा गया कि राज्य सरकार के पास जनगणना कराने का अधिकार नहीं है. किसी के धर्म, जाति और इनकम के बारे में पूछना निजता के खिलाफ है. इसी दलील पर कोर्ट ने रोक लगाया है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : May 6, 2023, 8:35 PM IST

पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार

पटनाः हाईकोर्ट बिहार में जातीय जनगणना (caste census in bihar) को लेकर 9 मई को सुनवाई करेगी. हाईकोर्ट ने सरकार की अपील को मंजूर कर ली है, हालांकि जातीय जनगणना फिर से शुरू होगी, इसकी गारंटी नहीं है. क्योंकि जातिगत जनगणना का मसला उलझता ही जा रहा है. पटना उच्च न्यायालय ने जातिगत जनगणना पर अंतरिम तौर पर रोक लगा दिया है. इसपर सुनवाई के लिए सरकार की ओर से कोर्ट में एक और पिटीशन लगाई गई थी, जिसपर कोर्ट ने विचार करते हुए पहले 3 जुलाई को सुनवाई का समय दिया था, लेकिन सरकार के आग्रह पर कोर्ट ने इस मामले में 9 मई को सुनवाई करने का विचार किया है. बता दें कि कोर्ट ने 4 मई को इसपर रोक लगा दिया था.

बिहार में जातीय जनगणना

यह भी पढ़ेंःCaste Census in Bihar : जातिगत गणना पर नीतीश सरकार की अपील मंजूर, पटना हाईकोर्ट में 9 मई को सुनवाई

500 करोड़ रुपए खर्चः बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सरकार ने 500 करोड़ रुपए का फंड जारी किया था. आकस्मिक निधि से राशि की आवंटन की गई थी. जनगणना का कार्य शुरू हो गया था. 7 जनवरी 2023 से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू की गई. बिहार सरकार 3327 के अंदर जाति सर्वेक्षण कराने के लिए अधिसूचना जारी की थी. जातिगत जनगणना का कार्य बिहार में तेजी से चल रहा था कि कुछ लोगों ने जातिगत जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने को कहा. सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा 3 दिनों में पूरी कर अंतरिम आदेश देने को कहा.

बिहार में जातीय जनगणना

सरकार के आग्रह पर 9 मई को सुनवाईः पटना उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी कर बिहार में चल रहे जातिगत जनगणना पर रोक लगा दी. जातीय जनगणना पर रोक लगाते हुए सरकार से डाटा सुरक्षित रखने को कहा. इसके साथ ही इसकी अगली सुनवाई की तिथि 3 जुलाई को मुकर्रर की गई थी. कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार की ओर से पहल की गई. महाधिवक्ता की ओर न्यायालय से अनुरोध किया गया कि मामले को रीशेड्यूल किया जाए. राज्य सरकार के अनुरोध पर पटना उच्च न्यायालय ने 9 मई जातीय जनगणना पर सुनवाई करने का विचार किया है.

बिहार में जातीय जनगणना

जनगणना सरकार के क्षेत्राधिकार में नहींःपटना उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए बिहार सरकार 'देशभक्त सर्वे' के नाम पर जनगणना करा रही है, जो सरकार के क्षेत्राधिकार में नहीं है. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि जनगणना के नाम पर जो जानकारी लोगों से ली जा रही है, वह निजता का उल्लंघन है. सरकार को यह भी बताना चाहिए कि 500 करोड़ रुपए किस लक्ष्य के लिए खर्च किया जा रहा है. कोर्ट के रोक से साफ है कि जातिगत जनगणना को लेकर सरकार से कई स्तरों पर चूक हुई है. सरकार ने सब कुछ जल्दबाजी में करना चाहा, जिसके चलते जातिगत जनगणना का मसला कानूनी दाव पेंच में फस गया.

बिहार में जातीय जनगणना

सरकार ने कानून की चिंता नहीं कीः इस बारे में पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार ने खास जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जातिगत जनगणना को लेकर सरकार ने पूर्व में कोई तैयारी नहीं की थी. सब कुछ जल्दबाजी में किया गया. संविधान और कानून की चिंता किए बगैर सरकार ने यह निर्णय लिया. सातवीं अनुसूची के यूनियन लिस्ट के एंट्री नंबर 69 में सेंसस वर्ड का उपयोग किया गया है. देश में सेंसस एक्ट 1948 में बनाया गया था. क्रियान्वयन के लिए कानून 1990 में बनाए गए. इसके अलावा भारत सरकार की ओर से 2008 में सांख्यिकी एक्ट बनाया गया.

राज्य सरकार सिर्फ लैंड सर्वे की अधिकारीः जनगणना केंद्र सूची का विषय है, लिहाजा राज्य सूची में नहीं होने के चलते राज्य सरकार जनगणना नहीं करा सकती है. समवर्ती सूची के एंट्री नंबर 45 में लैंड सर्वे फॉर रिवेन्यू का प्रावधान है, जो राज्य सरकार करा सकती है. सरकार के फैसले को लेकर दीनू कुमार ने कहा कि जनगणना में गिनती का प्रावधान है जबकि सर्वे सैंपल कलेक्ट कर अनुमान लगाने को कहा जाता है, लेकिन सरकार जाति आधारित सर्वे के नाम पर जनगणना करा रही है. इसी कारण यह पेंच फंस रहा है.

आकस्मिक निधि से खर्च कानून सम्मत नहींः कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार ने जातिगत जनगणना के लिए आकस्मिक निधि से 500 करोड़ खर्च करने का प्रावधान किया, जो कानून सम्मत नहीं था. संविधान के अनुच्छेद 267 (2) के अनुसार बिहार सरकार ने बिहार आकस्मिक निधि फंड एक्ट 1950 और बिहार आकस्मिक निधि फंड एक्ट 1953 बनाया था. इसके तहत अदृश्य खर्च के लिए ही आकस्मिक निधि का इस्तेमाल किया जा सकता था. सरकार ने ऐसा नहीं किया जो संविधान सम्मत नहीं था. इसके साथ ही सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर कोई एक्ट नहीं बनाया.

कोर्ट ने निजता का उल्लंघन मानाः सरकार ने यह भी कहा था कि जाति आधारित सर्वे का डाटा जनप्रतिनिधियों को देंगे. सरकार के इस फैसले को निजता का उल्लंघन माना गया. कोर्ट में याचिकर्ता की ओर से यह दलील दी गई कि सुप्रीम ने एस के पूटा स्वामी केस में कहा था कि जाति धर्म और इनकम के बारे में पूछना निजता के अधिकार का उल्लंघन है. हलांकि बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने दलील दी थी कि सरकार लोगों के व्यक्तिगत जानकारी को हासिल करने का अधिकार रखती है. यह एक जातिगत जनगणना नहीं बल्कि सर्वे करा रहे हैं ताकि सरकार को योजना बनाने में सुविधा हो.

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