पटना: नए साल से भाजपा और जदयू के नेताओं को नई उम्मीद है. बिहार की राजनीति में नए बदलाव आए हैं. जदयू छोटे भाई की भूमिका में है और भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है. ऐसे में भाजपा और जदयू के बीच कई मुद्दों पर असहमति है.
साल 2020 में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर उलझन कायम रहा, लेकिन 2021 में सब कुछ ठीक-ठाक होने की उम्मीद है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भले ही विधानसभा चुनाव में कम सीटें आई हों, लेकिन अब भी पार्टी नेता बराबरी का समझौता चाहते हैं. बिहार कैबिनेट हो या फिर राज्यपाल कोटे से विधान परिषद के लिए होने वाले मनोनयन का मामला फिलहाल दोनों ठंडे बस्ते में है.
अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद जदयू नेता आक्रमक हैं. अब बदली परिस्थितियों में अपनी शर्तों पर समझौता करना भी चाहेंगे. पहले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में जदयू ने बराबरी पर समझौता करने में सफलता हासिल की. जदयू नेता यह मान रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में लोजपा की वजह से उनकी हार हुई. ऐसे में पार्टी नेता भाजपा पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि लोजपा को बिहार और केंद्र में जगह ना मिले. बिहार में विधान परिषद के लिए राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन का मामला भी अभी उलझा हुआ है. यहां भी जदयू बराबरी के फार्मूले पर समझौता करना चाहेगी.
भाजपा और जदयू नेताओं ने दबाव की राजनीति से किया इनकार
जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव का मानना है कि हम कोई दबाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं. ना ही हमारा कोई शर्त है. हम जनता की शर्तों पर राजनीति करते हैं. जनता के हितों के लिए हम प्रतिबद्ध हैं. लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और प्रवक्ता श्रवण कुमार का आरोप है कि अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद जदयू भाजपा पर दबाव बना रही है. केंद्रीय और बिहार के मंत्रिमंडल में अधिक से अधिक हिस्सेदारी मिले इसके लिए कोशिशें जारी है.
जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि भाजपा और जदयू के बीच कोई विवाद नहीं है. कुछ मामले लटके हैं. उन्हें भी जल्द सुलझा लिया जाएगा. नीतीश कुमार के नेतृत्व में 5 साल सरकार चलेगी. जहां तक लोजपा का सवाल है तो लोजपा बिहार में एनडीए का हिस्सा नहीं है. केंद्र का मामला केंद्रीय नेतृत्व को देखना है.
भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स करते रहे हैं. राजनीति में कम हिस्सेदारी होने के बावजूद भी अपनी साफ-सुथरी छवि के बदौलत बराबरी का समझौता करने में कामयाब हो जाते हैं. वर्तमान परिस्थितियों में भी कम सीटें होने के बावजूद वह भाजपा से बराबरी का समझौता करना चाहेंगे.