पटना: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2024नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे बिहार के राजनीतिक दल वोट बैंक को मजबूत करने में जुटने लगे हैं. बिहार में जातीय जनगणना का मसला सियासी हथकंडा बन गया है. जेडीयू जातिगत जनगणना के मसले को मुद्दा बनाना चाहता है. 1 सितंबर से 21 सितंबर तक बीजेपी को बेनकाब करने के लिए पार्टी आंदोलन चलाएगी. इसी बहाने नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के पिछड़ा और दलित वोट बैंक में सेंधमारी करने का प्लान तैयार किया है. 2011 की जनसंख्या के मुताबिक बिहार में अति पिछड़ों की आबादी लगभग 51% है.
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क्या है बीजेपी का प्लान?:उधर, जेडीयू की रणनीति से निपटने के लिए बीजेपी ने भी एक्शन प्लान तैयार कर लिया है. पार्टी ने जेडीयू के अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने के लिए मुद्दा ढूंढ लिया है. लगातार अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले नेताओं को पार्टी में शामिल कराया जा रहा है. साथ ही अति पिछड़ों को लेकर कराए गए सर्वेक्षण को लेकर भी बीजेपी हमलावर है. बिहार में अति पिछड़ों की आबादी लगभग 25% है.
अति पिछड़ा सर्वेक्षण पर सरकार को घेरा: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा है कि जातिगत जनगणना के मसले पर हमारा रुख साफ है. हम जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं. सरकार 24 घंटे के अंदर जातिगत जनगणना पर रिपोर्ट प्रकाशित करें. उन्होंने ये भी कहा कि नगर निकाय चुनाव के दौरान राज्य सरकार ने जो अति पिछड़ों का सर्वेक्षण कराया था, उसकी रिपोर्ट भी जारी की जाए.
बीजेपी के खिलाफ जेडीयू को पोल खोल अभियान: जेडीयू प्रवक्ता हिमराज राम का कहना है कि बीजेपी जातिगत जनगणना का विरोध कर रही है और यह उजागर भी हो गया है. इसी वजह से हम लोग चरणबद्ध आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. जहां तक सवाल अति पिछड़ा के सर्वेक्षण का है तो समय आने पर उसे भी जारी कर दिया जाएगा.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?:जाति के बहाने राजनीति साधने के सियासी दलों की रणनीति पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि बिहार में वोट बैंक की राजनीति हो रही है. बीजेपी जहां अति पिछड़ा वोट बैंक को साधना चाहती है तो वहीं जेडीयू की नजर दलित और पिछड़ा वोट बैंक पर है. जातिगत जनगणना और अति पिछड़ा सर्वेक्षण राजनीतिक दलों के लिए हथियार बन गए हैं.
"ये बात सच है कि बिहार में वोट बैंक की राजनीति हो रही है. भाजपा जहां अति पिछड़ा वोट बैंक को साधना चाहती है तो वहीं जदयू की नजर दलित और पिछड़ा वोट बैंक पर है. जातिगत जनगणना और अति पिछड़ा सर्वेक्षण राजनीतिक दलों के लिए हथियार बन गए हैं, इसमें बाकी मुद्दे गौण हो जाते हैं. अब देखना होगा कि जनता पर इसका कितना प्रभाव पड़ता है"- संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक