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बिहार का ऐसा गांव जहां हर परिवार के पास है अपना तालाब, जानें वजह - village of ponds mahadevpur

बिहार में एक ऐसा गांव है जहां के हर घर से कोई न कोई तालाब दिखता है. यहां के हर परिवार के पास अपना तालाब (village of ponds in patna) है. राजधानी पटना से 45 किलोमीटर दूर मसौढ़ी प्रखंड का महादेवपुर गांव अलग ही नजीर पेश कर रहा है. पढ़ें पूरी खबर..

village of ponds mahadevpur in patna bihar
village of ponds mahadevpur in patna bihar

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Published : May 5, 2022, 7:47 PM IST

पटना:गिरते जल स्तर को लेकर बिहार सरकार मुहिम चला रही है. जल जीवन हरियाली के तहत तालाब खोदने का अभियान भी चलाया जा रहा है. इन सबके बीचबिहार में एक ऐसा गांव है जो सरकार के अभियान से पहले ही तालाब खोदने को लेकर जागरूक है. गांव में डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब हैं. तालाब ही गांव की समृद्धि का कारण है.

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तालाबों का गांव महादेवपुर:जब शहरों से लेकर गांवों तक के तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं. उनको बन्द कर कहीं प्लाटिंग तो कहीं मकान बनाए जा रहे हैं. ऐसे दौर में पटना के मसौढ़ी (village of ponds in masaurhi) में बसा गांवमहादेवपुर (Mahadevpur village of ponds patna) लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस गांव की मिसाल आज हर कोई देते हैं. इस गांव को आत्मनिर्भर बनाने में इन तालाबों का अहम योगदान है. दरअसल पटना जिला में सबसे ज्यादा मसौढ़ी में मछली के तालाब हैं और लोग इसके प्रति आत्मनिर्भर (Fish Farming In Masaurhi) बनते हुए दिख रहे हैं.

हर परिवार के पास अपना तालाब:मसौढ़ी केमहादेवपुर गांव का हर परिवार एक तालाब का मालिक है. राजधानी पटना से 45 किलोमीटर दूर मसौढ़ी प्रखंड के महादेवपुर गांव के लोगों ने मिसाल कायम की है. महादेवपुर गांव के लोग बड़ी ही शिद्दत के साथ मत्स्य पालन करते हैं. गांव में डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब हैं और 100 बीघे से अधिक जमीन पर लोगों ने तालाब खुदवाये है.

ग्रामीण बन रहे आत्मनिर्भर: मत्स्य पालन गांव के लोगों के लिए आजीविका का साधन बन चुका है और गांव पूरी तरह स्वावलंबी है. तमाम आधुनिक सुविधाओं से महादेवपुर गांव लैस है. कोरोना काल में तालाब गांव के लिए वरदान साबित हुआ. जब पूरा देश लॉकडाउन हो गया और बेरोजगारी बढ़ने लगी तो महादेवपुर गांव के युवाओं के सामने विकल्प के तौर पर मछली पालन सामने आया. गांव का युवा वर्ग मत्स्य पालन में लग गया. कोरोना काल में भी कई तलाब खुदवाये गए. आज इस गांव में लगभग 150 के करीब तालाब हैं.

आत्मनिर्भर बन रहे किसान: महादेवपुर गांव पर किसी जमाने में नक्सलवाद का साया था और बंदूकें गूंजती थी. बिहार में सत्ता बदली और लोग खेती की तरफ आकृष्ट हुए. लेकिन खेती में नुकसान के चलते गांव के लोगों ने मत्स्य पालन करने का फैसला लिया. एक दशक से मत्स्य पालन की परंपरा शुरू हुई और आज की तारीख में गांव में जिस किसी के पास भूखंड है उसके पास छोटा या बड़ा तालाब है.

ग्रामणों ने कही ये बात:राजीव कुमार बताते हैं कि पारंपरिक खेती में नुकसान से लोग परेशान हो गए थे. कभी उपज होता था और कभी नहीं होता था. परेशान होकर लोगों ने मत्स्य पालन शुरू किया और आज की तारीख में गांव के समृद्धि का कारण तालाब बन चुका है. वहीं अमरेंद्र कुमार सिंह पुणे में नौकरी करते थे. संकटकाल में लॉकडाउन के बाद गांव लौटना पड़ा. अमरेंद्र को मत्स्य पालन में संभावना दिखी और मत्स्य पालन में ही लग गए.

"हमारे गांव में 150 के करीब तालाब हैं. हमने 10 साल पहले इसकी शुरूआत की थी. हमारा उद्देश्य था कि खेती करने पर हमेशा असमंजस की स्थिति बनी रहती थी. ऐसे में खेती से हटकर हमने मत्स्य पालन शुरू किया. आज हम बहुत अच्छे माहौल में रह रहे हैं."- राजीव कुमार, ग्रामीण

"कोरोना के समय कई लोग बेराजगार होकर घर लौट आए थे. उस दौरान बहुत सारे तालाब खोद दिए गए. सभी अपना काम करते थे. अभी और तालाब खोदे जा रहे हैं. लोगों को रोजगार और लाभ दोनों मिल रहा है. लोग इस काम से जुड़ते जा रहे हैं. सरकार सब्सिडी दे और सहायता करे तो लोगों को और फायदा होगा."-अमरेंद्र, ग्रामीण

गांव के लोगों के लिये ये गर्व की बात है कि उनका इकतौला ऐसा गांव है जहां पर इतने तालाब हैं. गांव का हर शख्स इस बात की कोशिश में लगा रहता है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे. लोगों को रोजगार तो मिल ही रहा है. इन तालाबों के कारण कई दूसरे फायदे हो रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी ये कारगर कदम साबित हो रहा है.

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