बिहार

bihar

ETV Bharat / state

विश्व अंडा दिवस: सेहत के लिए साल में 180 अंडा खाने की सलाह, जानें डॉक्टरों की राय - University of Animal Sciences

डॉ. सरोज कुमार ने कहा कि जिस तरह बिहार में बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. अगर अंडे का सेवन करवाया जाए तो इसमें कमी आ सकती है. उन्होंने कहा कि अंडे में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है.

डॉ. सरोज

By

Published : Oct 12, 2019, 12:06 AM IST

पटना: अंडे को उच्च गुणवत्ता युक्त, पौष्टिक और सस्ता खाद्य पदार्थ बताया गया है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने प्रत्येक व्यक्ति को साल में 180 अंडा खाने की बात कही है. लेकिन, बिहार में अभी भी इसकी उपलब्धता कम है. शुक्रवार को विश्व अंडा दिवस के मौके पर पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पशु प्रजनन से जुड़े प्रोफेसर डॉक्टर सरोज कुमार ने कहा कि बिहार में अभी भी साल में लोग 25 से 30 अंडे ही खाते हैं. इसका कहीं ना कहीं एक कारण यह भी है कि अंडे की उपलब्धता कम हो रही है.

डॉ. सरोज कुमार ने कहा कि जिस तरह बिहार में बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. अगर अंडे का सेवन करवाया जाए तो इसमें कमी आ सकती है. उन्होंने कहा कि अंडे में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. दूध में भी प्रोटीन होता है. लेकिन, उससे ज्यादा अंडा में होता है. इसीलिए लोगों को अंडा का सेवन ज्यादा करना चाहिए.

बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय

क्या कहते हैं डॉक्टर?
डॉ. सरोज ने कहा कि पशु विज्ञान विश्वविद्यालय एक प्रोजेक्ट के तहत अंडे का उत्पादन बढ़ाने का काम कर रहा है. जिसमें हैदराबाद की एक कंपनी से बीज मंगाकर मुर्गी पालकों को दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने मुजफ्फरपुर जिले के कुछ गांव को आदर्श मुर्गी ग्राम बनाया है, जहां गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों को मुर्गी पालन करवाया जा रहा है.

पेश है रिपोर्ट

अंडा खाने से कम होगी कुपोषण की शिकायत
बता दें कि पशु विज्ञान विश्वविद्यालय लगातार पशु की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने और दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी करने के उपाय कर रहा है. इसके बावजूद बिहार में अंडों के उत्पादन में काफी कमी आई है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने माना है कि अंडा एक सस्ता और अच्छा खाद्य पदार्थ है. वहीं, डॉक्टरों का मानना है कि बिहार में अगर लोग अंडे का ठीक ढंग से उपयोग करें तो बच्चों में कुपोषण की जो स्थिति होती है, वो काफी हद तक कम हो सकती है. जरूरत है कि चिकित्सा अनुसंधान परिषद की सलाह को प्रचारित कर लोगों को इसके सेवन के प्रति जागरूक करें.

ABOUT THE AUTHOR

...view details