पटना:बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति 2020 की सियासत के बाद जब आगे बढ़ी तो उनके सामने जो लोग खड़े थे, नीतीश उनके चाचा थे. बाकी उनके भतीजे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) कई मंच से नीतीश कुमार को खुलकर चाचा कह चुके हैं. चिराग पासवान (Chirag Paswan) चाचा नीतीश कहते ही थे. तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) नीतीश की नाराजगी चाहे जैसी पालते रहे हो, लेकिन चाचा की सियासत हमेशा गिनाते रहे हैं.
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उम्र के लिहाज से लगभग सियासत में सम्मान देने वाला शब्द नीतीश के लिए यही रहा है, लेकिन 2021 में जिस तरीके से राजनीति ने डगर पकड़ी है. चाचा की राजनीति के आगे सभी भतीजे आपस में ही लड़ते झगड़ते दिख रहे हैं. चाचा ने डगर जरूर तेजस्वी को दिखाई, तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनाया और लोकसभा चुनाव में चिराग की हर उस बात को मानकर बंगले में रोशनी की जो सीट समझौते का विवाद बना था. इन तमाम चीजों के बाद भी भतीजे ने जो सियासी डगर पकड़ी उसमें भतीजे की राजनीति 2021 तक इतना भटक गई कि अब चाचा की राजनीति के आगे सारे भतीजे घूमते फिरते दिख रहे हैं.
बिहार की राजनीति में अगर सबसे स्थापित कोई रिश्तों की राजनीति रही है, तो लालू बनाम नीतीश रही है. बात बड़े भाई या छोटे भाई की हो या नीतीश और लालू के संबंधों की या फिर राबड़ी देवी के रिश्तों की. अब दूसरी पीढ़ी जब आगे बढ़ी तो तेजस्वी यादव को चाचा नीतीश का खूब समर्थन मिला. जब मौका मिला तो चाचा ने भतीजे को अपना उप मुखिया भी बना दिया, लेकिन विभेद में जो चीजें आई हैं, उसमें राजनीति भी उसी तरीके से भटक गई है. नीतीश का साथ छोड़ने के बाद तेजस्वी यादव को राजद की जिस तरीके से कमान जिम्मेदारी जवाबदेही मिली वह अब तेजस्वी के भाई तेजप्रताप को खटकने लगी है.
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तेज प्रताप ने तेजस्वी यादव और अपने पूरे परिवार पर बहुत बड़ा आरोप लगाते हुए कह दिया कि लालू यादव को दिल्ली में बंधक बना लिया गया है. अब चाचा की राजनीति फिर भतीजे को लेकर सामने आ गई और चाचा की पार्टी के नेता ने कह दिया कि इसके लिए तेज प्रताप को कानूनी तरीके से काम करना चाहिए, क्योंकि बिहार में न्याय के साथ विकास की बात करने वाले सुशासन बाबू इस बात को तो जानते ही हैं कि रिश्तों को कैसे निभाना हैं.
लेकिन, रिश्ते की जो बानगी नीतीश कुमार के नतीजों के बीच भटक गई है, वह निश्चित तौर पर नई राजनीति और उसके दूसरे फलसफे को लिख रही है, जो भतीजे को राजनीति में दबाव और चाचा के चेहरे पर एक अलग चमक दे गई है. टिकेगी कब तक नहीं कहा जा सकता है.
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नीतीश के दूसरे भतीजे चिराग की भी कहानी 2021 में पूरे तौर पर भटक गई. 2020 में चाचा नीतीश के लिए नारा दे रहे थे कि 'तेजस्वी अभी नहीं, नीतीश कभी नहीं'. हालांकि, रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था, तो माना यह भी जा रहा था कि चिराग पासवान इस तरह का नारा दे रहे हैं. तेज प्रताप के भीतर पल रहे गुस्से को चिराग जानते तो नहीं थे लेकिन, यह विरोध शायद उनके मन में राजनीतिक रूप से किसी ने बताकर ही समझाया होगा कि आने वाले समय में तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच गतिरोध होगा.
चिराग पासवान का एक मामला तो साफ हो गया कि तेजस्वी के लिए राजनीति तेज प्रताप ने कड़ी कर दी है, लेकिन नीतीश कुमार का रास्ता बिल्कुल साफ हो गया है. अपने नारे के बाद जिस सियासत में चिराग उलझे उसमें चाचा पासवान से पहले परिवार की लड़ाई हुई, फिर पार्टी की लड़ाई हुई और इस दोनों लड़ाई में चिराग पासवान हार गए. पार्टी हाथ से चली गई, तो दावा कानून में चला गया.
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लेकिन, विधानसभा के उपचुनाव को लेकर जिस तरह की राजनीति चल रही थी कि एक बार फिर नीतीश कुमार के सामने उनका प्रिय भतीजा चिराग चुनौती खड़ा करेगा. निर्वाचन आयोग से आए निर्देश ने इस बात को साफ कर दिया कि बंगला चुनाव चिन्ह किसी को दिया ही नहीं जा सकता है. नीतीश के भतीजे चिराग पासवान ने जिस तरह की राजनीति चाचा से लड़ने के लिए की थी, वह भी पूरे तौर पर बिखर गई और चाचा के चेहरे की वह भी चमक बरकरार रह गई.
बात रिश्तों में सियासत और सियासत के रिश्ते की करें तो कन्हैया कुमार भी नीतीश कुमार के लिए लगभग एक फ्रंट ही थे, 2015 में वामदल भी नीतीश कुमार के साथ था, समर्थन दिया था. कन्हैया कुमार अब कांग्रेस का हिस्सा बन गए तो नीतीश कुमार के सामने मुद्दों की चुनौती जरूर खड़ी हो गई. चेहरे की लड़ाई में जो नए चेहरे बिहार में आ रहे थे उसमें तेजस्वी, तेजप्रताप, चिराग पासवान और कन्हैया कुमार का नाम नए युवा राजनेता के तौर पर रखा जाने लगा था.
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लेकिन, जिस तरह की सियासत में यह सभी लोग उठ गए हैं, उससे एक बात तो साफ है कि सियासत में भतीजे अब चाचा को एकजुट होकर चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. यह तय है कि चाचा की चुनौती सभी भतीजे अपने सियासी राजनीति के राह को ठीक करने की मजमून ही खोजते रह जाएंगे.
बिहार की राजनीति बिल्कुल साफ है कि चिराग पासवान के साथ जिस तरीके से पार्टी के भीतर चीजें हुई हैं. उसकी स्क्रिप्ट कहां लिखी गई, पशुपतिनाथ पारस ने जिस तरीके का निर्णय लिया उसके पीछे किसका दिमाग काम कर रहा है, राम और हनुमान की दुहाई तक चिराग दे दिए लेकिन उसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई तो मामला साफ है कि नीतीश की राजनीति का आधार कहां तक है. अब तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच जिस तरीके का विवाद खड़ा हुआ है इसमें भी चाचा की भूमिका अहम तो नहीं कही जा सकती, लेकिन आधार जरूर बनता दिख रहा है.
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कन्हैया कुमार कांग्रेस में आ गए तो अब चिराग और तेजस्वी की लड़ाई चेहरे के नाम पर सीधे कन्हैया से हो जाएगी. पार्टी के नाम पर सभी लोगों से ऐसे में जो लोग कल तक नीतीश के लिए चुनौती बन रहे थे, भतीजे चाचा पर तंज कस रहे थे, चाचा को राजनीति की सीख दे रहे थे, आज उसी चीज को जोड़ पाने में सभी भतीजे अलग-अलग डगर पर दिख रहे हैं.
जिस डगर पर यह सियासत इन युवा राजनेताओं को ले गई है, उसमें उनका आधार अभी उतना मजबूत नहीं हो पाया है, जो नीतीश कुमार की नीतियों को अब खड़े होकर चुनौती दे पाए, क्योंकि परिवार में चिराग उलझे हैं. परिवार ने ही तेजस्वी को उलझा दिया है और कांग्रेस जिस तरीके से परिवार वाली राजनीति में उलझी हुई है उससे कन्हैया को बाहर निकलने में बहुत समय लगेगा, यह तो बिल्कुल तय है. ऐसे में बिहार वाली राजनीति चाचा की सियासत वाले फार्मूले को भेद पाएगी, अभी इसमें वक्त लगेगा, यह तो बिल्कुल निश्चित है, क्योंकि भतीजे की राजनीति की बात है. लेकिन, बिहार है सियासत में बहार है और एक हकीकत तो यह भी है की भतीजे के लिए नीतीश कुमार हैं.