पटना:बिहार में ब्यूरोक्रेसी (Bureaucracy) बेलगाम है, अधिकारी किसी की सुनते ही नहीं हैं. आम आदमी की बात तो छोड़ दीजिए जनप्रतिनिधियों की बात भी कहीं नहीं सुनी जाती है. सड़क से लेकर सदन तक विपक्ष (Opposition) यह आरोप नीतीश सरकार (Nitish Government) पर लगाते रहा है. हालांकि, तब इसे सियासत का दूसरा रंग दे दिया जाता था.
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बिहार में 'लालफीताशाही'
लेकिन, कई अपने ऐसे भी थे जिनकी यह पीड़ा मन में थी कि जिन्हें भी जिले में भेजा जाता है, वह अधिकारी विधायकों की सुनते ही नहीं हैं. ऐसा नहीं है कि ये बात महज चर्चा में थी. नीतीश के सामने भी इसे कई बार रखा जा चुका था, लेकिन मामले में सिर्फ आदेश यह होता था कि जनप्रतिनिधियों की बातों को सुना जाए. उनकी बातों पर अमल किया जाए. लेकिन, यह नीतीश वाला बिहार है जहां की अधिकारी शाही लालफीताशाही का रूप ले चुकी है.
मंत्री मदन सहनी ने दिया इस्तीफा
बिहार के समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी (Madan Sahni) ने 1 जुलाई गुरुवार को नीतीश मंत्रिमंडल (Nitish cabinet) से इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया कि उनके विभाग के अधिकारी उनकी बात को सुनते ही नहीं हैं. विभाग में मनमानी करते हैं. जनता के लिए होने वाले काम को करने के बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. मदन सहनी जदयू कोटे के विधायक हैं.
अधिकारियों पर लगाए गंभीर आरोप
जदयू कोटे से मंत्री हैं, ऐसे में भ्रष्टाचार और अधिकारी शाही का जो आरोप उन्होंने लगाया है, वह नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के सुशासन वाली पूरी छवि पर ही बट्टा लग गया है. अंदर खाने चर्चा चाहे जो हो लेकिन नीतीश कुमार को भी यह पता है कि अधिकारी जनप्रतिनिधियों को तवज्जो ही नहीं देते हैं.
मंत्रियों की नहीं सुनते अधिकारी
शायद नीतीश कुमार खुद नहीं चाहते कि उनके अधिकारी जनप्रतिनिधियों को तवज्जो दें. यह बात इसलिए भी उठने लगी है कि नीतीश के शासन काल में मदन सहनी पहले ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने अधिकारियों के इस रवैये के कारण इस्तीफा दिया है, लेकिन ऐसे मंत्रियों की लिस्ट बहुत लंबी है. जो ये बात लगातार नीतीश कुमार से करते रहे हैं कि उनके विभाग के अधिकारी उनकी बात सुनते ही नहीं हैं.
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अधिकारी मनमर्जी से करते हैं काम
विभाग में मंत्री की बात न सुनने की यह कोई नई परिपाटी नहीं है. बिहार में कई ऐसे आईएएस अधिकारी हैं, जो आम जनता की बात तो दूर मंत्रियों तक से बात नहीं करते हैं. सरकार में मनमर्जी के हिसाब से काम करते हैं. उसमें सबसे पहला नाम नीतीश कुमार के प्रधान सचिव चंचल कुमार (Chanchal Kumar) का ही है. जिस पर जदयू के एक विधायक ने जदयू कार्यकारिणी की बैठक में ही चंचल कुमार पर आरोप लगा दिया था कि फोन करने पर मुख्यमंत्री से मिलने तक का समय चंचल कुमार नहीं देते हैं.
अधिकारियों पर मनमानी का आरोप
वर्तमान में चल रही सरकार में एक विभाग के प्रधान सचिव जिनका नाम श्रवण कुमार (Shravan Kumar) है, अपना तबादला इसलिए भी करवा लिया क्योंकि उनके स्तर की भी फाइलों को मंत्री देखने के लिए मंगवाते थे, जो उन्हें नागवार गुजरता था. स्वास्थ्य विभाग (Health Department) में होने वाले तबादले को लेकर कभी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव रहे बृजेश मल्होत्रा (Brijesh Malhotra) पर भी आरोप लगा था.
वहीं, कला संस्कृति विभाग में प्रधान सचिव रहे विवेक कुमार सिंह (Vivek Kumar Singh) पर भी अपने मंत्री को तरजीह नहीं देने का आरोप लगा था और यह तमाम बातें सीधे मुख्यमंत्री के सामने कही गई थी और जनता के सामने यह बातें आ भी गई थी. लेकिन सिर्फ मान मुनव्वर के बाद हुआ कुछ नहीं. अधिकारियों का मनोबल बिहार में इतना बड़ा हुआ है, जो मनमर्जी करते हैं और उनके विरोध में अगर कुछ बोल दिया जाए तो गलती पर पर्दा डालने के लिए उससे बड़ी गलती कर देते हैं.
अधिकारियों पर नहीं होती कोई कार्रवाई
बिहार में मनमर्जी करते हुए एक आईएएस अधिकारी के चलते गंगा में 14 जनवरी को नाव डूब गई, जिसमें कई लोगों की जान गई. जब उस अधिकारी पर कार्रवाई करने की बात आई तो बिहार सरकार के तमाम नामी-गिरामी यहां तक कि नीतीश के गुड बुक के आईएएस अधिकारी भी राजभवन के सामने गोला बनाकर खड़े हो गए. उनकी मांग थी कि आईएएस चाहे जो भ्रष्टाचार करें, चाहे जितने लोगों की जान ले ले, लेकिन नीतीश उन पर कोई कार्रवाई न करें.
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गांधी मैदान में विजयादशमी के दिन रावण दहन करने गई भीड़ अफवाह के कारण भगदड़ की शिकार हुई. जिसमें कई लोगों की जान गई. उस समय नीतीश की कृपा से जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थे और उन्होंने तत्कालीन पटना के डीएम मनीष कुमार और नीतीश के चहेते आईपीएस अधिकारी और उस समय के पटना के एसएसपी मनु महाराज (Manu Maharaj) को जिम्मेदार माना और उनके तबादले के आदेश भी जारी कर दिए.
लेकिन, यहां भी एक बड़ा विवाद आकर खड़ा हो गया. नीतीश कुमार के दरबार में फरियाद लगाने पहुंचे तमाम अधिकारियों ने उस समय के मुख्यमंत्री के काम पर ही सवाल खड़ा कर दिया. कहा गया कि डीएम और एसपी का तबादला न किया जाए, क्योंकि इससे आईएएस और आईपीएस का मनोबल गिर जाएगा. उस समय का मुख्यमंत्री चाहे जो चाहे, लेकिन आईएएस और आईपीएस लॉबी यह चाहती है कि तबादला न किया जाए. लेकिन, जीतन राम मांझी भी जिद पर अड़ गए मनीष कुमार और मनु महाराज का पटना से तबादला कर दिया गया. लेकिन, इस पर भी सियासत खूब हुई और बताया गया कि बिहार में लालफीताशाही का क्या गुमान है.
जब आग बबूला हो गए CM नीतीश
बिहार में बढ़े अपराध, कोरोना (Corona) के बढ़ते मामले और पुलिस को लेकर नीतीश कुमार के सामने जब यह सवाल रखा गया कि पुलिस महकमे में जवाब देने के लिए कोई आता ही नहीं है और बिहार के डीजीपी तो किसी का फोन ही नहीं उठाते हैं. दीघा पटना रेल लाइन को हटाकर बनाए गए फोरलेन सड़क का उद्घाटन करने पहुंचे नीतीश कुमार से जब यह सवाल किया गया तो वह आग बबूला हो गए.
हालांकि, उन्होंने डीजीपी को फोन लगाया और यह कह दिया कि आप पर आरोप है कि आप फोन नहीं उठाते यह गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए. जनता को सही ढंग से जवाब ना देना और बिहार को सही ढंग से कोरोना के मामले की जानकारी न देने का आरोप स्वास्थ्य विभाग के वर्तमान प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत पर भी लगा. लेकिन, यह ऐसे आईएएस अधिकारी हैं. जिनकी सीधी पहुंच एक अणे मार्ग तक है और उनकी बात को नीतीश कुमार भी नहीं कर पाते, भले ही मंत्रियों की बातें दरकिनार कर दी जाए, यह पब्लिक डोमेन में है और इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता है. जो यह बताता है कि बिहार की सत्ता जनप्रतिनिधियों की नहीं बल्कि अफसरशाही के लालफीताशाही का है.
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विधायक चाहे जदयू (JDU) के हो या भाजपा (BJP) के या फिर राजद (RJD) या दूसरे राजनीतिक दलों के जिलों से लेकर राज्य तक अधिकारियों को तरजीह देने के मामले को लेकर सभी का एक ही नजरिया है. चाहे वह सत्तापक्ष का हो या विपक्ष का उनकी बातें कहीं सुनी नहीं जाती और इसकी सबसे बड़ी हकीकत बिहार सरकार (Bihar government) के मंत्री मदन सहनी के इस्तीफे के बाद साफ हो गया. बिहार सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई जनता शाही कि नहीं रही यहां तो सिर्फ नौकरशाही की लालफीताशाही चलती है.